आने वाले ओलम्पिक खेलों में भारत पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पर होगा क्योंकि केन्द्र सरकार की जो नीतियां अब हैं, वह पहले कभी किसी भी सरकार में नहीं रहीं । कांग्रेस ने तो भारतीय खेलों का आस्तिव , अंग्रेजी क्रिकेट के आगे खत्म कर दिया था लेकिन अब लगता है भारतीय खेलों का ही नहीं बल्कि भारतीयों के लिये खेल में स्वर्णिम दिन आने वाले हैं, जिसे कोई भी रोक नहीं सकता। उन्होने विश्वास जताया कि जिस तरह से भाजपानीत केन्द्र सरकार ने अपना काम शुरू किया है और हाल में ही हाकी , फुटबाल, कुश्ती, कबड्डी, बैटमिटन व अन्य स्पर्धा हुई है और भारतीय प्रतिभायें विश्व विजेता खिलाड़ी के सामने अपने दम खम को प्रदर्शित करने में सफल रहें है, उससे अब लगने लगा है कि आगामी ओलम्पिक में भारत अपना रंग जरूर दिखायेगा। ये बातें भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय विनायक जोशी ने प्रवक्ता.काम के सहसंपादक अरूण पाण्डेय से एक परिचर्चा के दौरान कही।
उन्होने कहा कि खेल को लेकर भारत में अपार संभावनाएँ है । हाकी में भारत को हमेशा गोल्ड मिलता था लेकिन अब उसे पदको के लिये भी जूझना पडता है, आखिर क्यों? इसका एक मात्र कारण यह है कि हम क्रिकेट को जितना आगे ले गये उतना ही हाकी पीछे चली गयी। हमारे भारत से ही हाकी सीखने वाले हमारे ही देश को मैदान में पटखनी दे रहे है। यही हाल कुश्ती का है। कुश्ती में हम विश्व विजेता थे, दारा सिंह ने बहुत कीर्तिमान बनाया और इसी तरह मुहम्मद अली ने कीर्तिमान बनाया लेकिन हैरत की बात यह है जब भारत में कुश्ती का आयोजन विश्वस्तर पर हुआ तो पदक जीतकर करोडो रूप्ये पदक के नाम पर हथियाने वाले मैदान से बाहर बैठकर तमाशा देख रहें थे , उन्हें डर था कि वह हार गये तो बदनामी होगी। उन्होने नरसिंह यादव व विनीशा की तारीफ करते हुए कहा कि यह बहुत आगे तक जायेगें।
संजय जोशी ने कहा कि पता नहीं क्यों खेलों को लेकर हम सजग नहीं रहे, कपिल देव मिल गये तो दूसरे कपिल की तलाश नहीं की , सचिन तेदुलकर मिल गये तो सबकुछ भूल गये,। इसी तरह शाहिद, प्रगट, शहबाज, प्रवीण कुमार आदि का हाकी में विकल्प नहीं तलाशा गया। संघों के अध्यक्ष बन गये और खिलाडियों को प्रतिभा के उपर वरीयता देकर खिला लिया, नतीजा प्रतिभायें विकसित नहीं हो पायी और भारत पिछडता गया। इसी तरह लिंबा राम के बाद खोज बंद कर दी गयी, मेरीकाम पर फिल्म बन गयी लेकिन मेरीकाम के और विकल्पों की तलाश नहीं की जा रही है। साइना नेहवाल की तरह दूसरी क्यूँ नहीं है? टेनिस सानिया मिर्जा पर ही क्यों निर्भर है? यह तमाम सवाल हैं जो जनता जानना चाहती है। उन्होने कहा कि खेलों में चयन को लेकर जिस तरह का भ्रष्टाचार है उसे अब समय रहते खत्म करना होगा , नहीं तो यह ग्रहण लगा ही रहेगा।
संजय जोशी ने कहा अभी कुछ दिनों पहले डब्ल्यू डब्ल्यू ई का कार्यक्रम इंदिरा गांधी इन्डोर स्टेडियम में था जहां विश्व के चर्चित खिलाड़ी आये हुए थे और पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। जबकि टिकट के दाम भी क्रिकेट मैचों के दौरान रखे गये दामों से ज्यादा था। उसे देखकर लगता था कि भारत में और भी खेल है जिन्हें बढ़ावा दिया जा सकता है। उसमें से यह एक प्रमुख है। केन्द्र सरकार को कुछ और योजनायें बनानी चाहिये जिससे इस तरह के प्रतिभा देश से आगे निकल कर आ सके, जो पूरे विश्व में अपना स्थान बना सके। इस देश में प्रायोजकों की कमी नहीं है। लीग हो रहें है, प्रायोजक आ रहें है। पहले भी आ सकते थे लेकिन प्रयास नहीं किया गया। अगर किया गया होता तो आज भारत खेलों में पहले नम्बर पर न सही दूसरे स्थान पर जरूर होता।
संजय जोशी ने पूवोत्तर राज्यों का पक्ष लेते हुए कहा कि वहां के लोग चीन व जापान के जिम्नास्टिक में बढ़े हुए वर्चस्व को तोड सकती है और वह जिम्नास्टिक का बडा हब बन सकता है, पर्वतारोहण व तैराकी मे एक मुकाम हासिल कर सकते है। इसी तरह उडीसा व केरल समुद्र के पास होने के कारण तैराकी का बढिया हब बन सकता है, जबकि चेन्नई भारतोलक में अपना वर्चस्व बनाये हुए है। इन सभी केा अच्छे ट्रेनिंग व सुविधा की जरूरत है, जो अबतक नहीं मिली है। सरकार यदि इन सभी बातों पर ध्यान दे तो पदक तालिका में भारत इन सभी स्पर्धाओं में भी अच्छा स्थान ले सकता है।
संजय जोशी ने कहा कि हरियाणा की पिछली सरकार ने गांवों में स्टेडियम बना दिये लेकिन वहां कोच व सुविधायें नहीं दी जिससे खिलाड़ी आगे बढ़ सके। उन्होने उम्मीद जतायी कि खट्टर सरकार के दौर में हरियाणा का और विकास होगा। उन्होने कहा कि भारत मे हुए राष्ट्रकुल खेलों में हरियाणा ही एक ऐसा राज्य था जिसने सबसे ज्यादा पदक भारत के लिये जीते थे लेकिन वर्तमान समय में वह अन्य राज्यों से पिछडता जा रहा है। उसे अपने दम खम को बढाने की जरूरत है ताकि उसका स्थान बना रहे, नहीं तो उसे भी बाहर बैठकर मैचों को देखना होगा।
नेहरू वाली कांग्रेस चाहती तो आजादी के बाद भारतीय खेलों को बढ़ावा दे सकती थी लेकिन उसके जगह उसने अंग्रेजों के पसंदीदा खेल क्रिकेट को बढ़ावा दिया ताकि वह अंग्रेज बन सकें। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री ने कुछ प्रयास किया तो उनके सहयोगियों ने उन्हें रोका और भारतीय खेलों को आगे नहीं बढ़ने दिया। इसके बाद जब कांग्रेस विभाजित हुई और इंदिरा गांधी ने नयी कांग्रेस बनायी तो उन्होने अपने पिता के राहों पर चलने का क्रम जारी रखा। उसके बाद राजीव गांधी, नरसिंहराव व मनमोहन सिंह की सरकारों ने भी इसी नीति पर काम किया। लेकिन हर बुराई का अंत निश्चित है। हम भारतीय हैं और हमारा खेल ही चलेगा, इस नीति पर केन्द्र सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। आने वाले समय में हमारे भारतीय खेल जिसमें हम अपराजेय थे उसी समय की वापसी होगी । हम ओलम्पिक व एशियाड व राष्ट्रकुल खेलों में अपना परिचम जरूर लहरायेगें ।
अरुण जी , जो खेलों का स्तर है उसे देखते हुए पहले पांच में तो क्या भारत पहले दस में भी कहीं नही होगा | किसी नेता नहीं , खिलाडियों के विचार महत्व रखते है | किसी एक सरकार को दोष देना अपरिपक्व विचार लगता है |सबसे ज्यादा पदक एथलेटिक्स , तैराकी ,कुश्ती और बोक्सिंग आदि में होते और इनमे विश्व स्तर के गिने चुने खिलाडी हमारे पास है |अत :अभी मंजिल दूर हैं |