सन् 14 अगस्त 1947 को हिन्दुस्तान से धर्म के आधार पर अलग हुआ पाकिस्तान अपने जन्मकाल से ही भारत के लिए कोई न कोई कठिनाई खडी करता रहा है। बार-बार प्रत्यक्ष युद्ध में मुँह की खाने के बाद भारत को कमजोर करने की जिस रणनीति के अंतर्गत आज वह कार्य कर रहा है, वह ॠचता का विषय है। अभी हवाला, आतंकवाद तथा नकली करेंसी खपाने जैसी पाक की भारत विरोधी षडयंत्रकारी योजनाएँ बंद भी नहलृ हो पाई थीं कि उसने आणविक स्तर पर हिन्दुस्तान के प्रत्येक कोने को निशाना बनाने की अपनी मंशा को अमलीजामा पहना दिया। इन कृत्यके लिए उसकी जितनी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा भर्त्सना की जाए उतनी कम है।
आज आर्थिक रूप से चरमराई पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अमेरिका व अन्य यूरोपीय व अरब देशों के सहयोग से बडे मजे में चल रही है और वह है कि अपने पडौसी देश भारत को कमजोर करने के लिए एक के बाद एक रणनीति बना रहा है। स्वयं अमेरिकी अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान ने यूएस से मिली मिसाइल में अमूलचूक परिवर्तन करते हुए उसे जमीन पर हमला करने में सक्षम बना लिया है जिस हार्पून मिसाइल को पाकिस्तान ने समुद्री पोतों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका से प्राप्त किया था, उनमें गोपनीय ढंग से परिवर्तन करने का आखिर पाकिस्तान का क्या उद्देश्य हो सकता है? 1985 से 1988 के बीच । अमेरिका ने उसे 165 मिसाइलें दी गई थीं। अभी तक पाकिस्तान ने इनका उपयोग समुद्री पोतों पर तो नहलृ किया, लेकिन जिस तरह के परिवर्तन पाक ने इन मिसाइलों में किए हैं उससे लगता है कि भारत से छिडी किसी जंग में जरूर वह उनका उपयोग करेगा।
अमेरिका भी अब इस बात को मान रहा है कि पाकिस्तानी सेना तालिबान से लडने के स्थान पर भारत को ध्यान में रखकर अपनी सामरिक क्षमता बढा रहा है। पाकिस्तान की आर्मी इनका उपयोग न केवल भारतीय तटों पर निशाना साधने के लिए कर सकती है बल्कि हिन्दुस्तान के किसी भी शहर को इन मिसाइलों से पलभर में समाप्त कर सकने की क्षमता उसमें आ गई है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसे कोई पाकिस्तान का पहला इस प्रकार का कारनामा नही कह सकता। इसके पहले भी पाक के वैज्ञानिकों ने अब्दुल कादिर खान के नेतृत्व में ईरान, उत्तरी कोरिया और नीबिया के साथ मिलकर परमाणु तकनीक की कालाबाजारी की थी। उसने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का प्रमुख बनते ही कोरिया, ईरान और लीबिया को सेंट्रीफ्यूज और अन्य प्रतिबंधित सामग्री बेची थी। जिसकी जानकारी भी अमेरिका द्वारा तात्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को दी गई, किन्तु पाक ने उल्टे अब्दुल कादिर को सजा देने के स्थान पर उसे भारत के खिलाफ परमाणु शस्त्रविकसित करने के कारण एक नायक की छवि के रूप में प्रचारित किया था।
बीच में खबर आई थी कि आणविक हथियारों के लिए पाकिस्तान, पंजाब प्रांत के खुशाब क्षेत्र में रियेक्टर बना रहा है, सेटलाइट द्वारा लिए गए चित्रों में यह बात साफ भी हो गइ। इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एण्ड इंटरनेशलन सिक्युरिटी (आईएसआईएस) ने यह भी बताया कि पाकिस्तान में बन रहे इस तीसरे परमाणु रियेक्टर के पीछे पाकिस्तान सरकार का वह निर्णय जिम्मेदार है जिसके अनुसार आणविक हथियारों में तेजी लाने के लिए प्लूटोनियम के उत्पादन में वृर्द्धि करना चाहती जरूरी है । 18 जनवरी को प्रकाशित इस रिपोर्ट में यहाँ तक कहा गया था कि भारतीय शहरों को निशाना बनाने के उद्देश्य से ही पाकिस्तान यह सब कर रहा है। एक अन्य वैज्ञानिकों की संस्था फेडरेशन ऑफ अमेरिका साइंटिस्ट (एफएएस) का मानना है कि पाकिस्तान ने भारत की परमाणु शक्ति को ध्यान में रखते हुए दो परमाणु क्षमता सम्पन्न बलिस्टिक मिसाइलों का निर्माण कर लिया है। परमाणु क्षमता वाली कू्रज मिसाइलें भी उसकी बनकर तैयार हैं।
इस बात का भी खुलासा हो गया है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह जिसमें कि अमेरिका ने जापान के दो महानगरों हीरोशीमा और नागाशाकी पर आणविक बम फैक कर उन्हें बर्बाद कर दिया था। उसी तरह कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान भी भारत पर एटमी मिसाइल फैकने की तैयारी कर रहा था। इस जानकारी को अत्यधिक विस्तृत ढंग से ‘डिसेपशन पाकिस्तान द यूनाइटेड स्टेट्स एण्ड ग्लोबल न्यूक्लियर वेपन्स कोन्सपिरसी पुस्तक में बताया जा चुका है। खोजी पत्रकार एडिन्यन लेवी व केथरीन स्कॉट की किताब में यह भी बताया गया कि तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपतिबिल क्लिटन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को चेतावनी तक दे डाली थी कि वह सीमा पर लगी अपनी अतिरिक्त सेना तुरन्त वापिस बुलाए, नहलृ तो उनके पास एक बयान है जिसके खुलासके बाद कारगिल युद्ध की सारी जिम्मेदारी पाकिस्तान पर डाल दी जायेगी। अमेरिका से वित्तपोषित पाकिस्तान तब कहलृ जाकर भारत पर आणविक हथियार फैके जाने वाले घातक निर्णय को वापिस लेने केलिए मजबूर हुआ ।
भारत शुरू से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह बात खासकर अमेरिका के सामने कहता रहा है कि पाकिस्तान जो अमेरिका से आतंकवाद के खात्मे के नाम पर सामरिक व आर्थिक मदद प्राप्त कर रहा है उसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ अपनी सैन्य ताकत बढाने में करता आया है। अभी जिस प्रकार का मामला हारपून मिसाइलों का प्रकाश में आया उससे पाक की मंशा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने स्पष्ट हो जानी चाहिए। उसने न केवल इन मिसाइलों में अमेरिकी इजाजत के बिना अवैध रूप से परिवर्तन किया है, बल्कि पी 3 सी लडाकू विमानों को भी मोडिफाई किया है। यह विमान कम उंचाई पर उडते हुए दुश्मन की हरकतों पर नजर रखने के साथ बम, टाइपीडो, मिसाइल, राकेट आदि भारी भरकम सामान को लाने ले जाने में पूरी तरह सक्षम हैं।
पाकिस्तान की हालिया हरकतों को देखते हुए भारत के लिए अब जरूरी हो जाता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने भविष्य की सुरक्षा को देखते हुए कडाई से अपनी बात कहे । भारत को चाहिए कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के सामने साक्ष्यों के साथ बात करते हुए आग्रह करे कि एशिया महाद्वीप में आणविक हथियारों की होड शुरू करने वाले तथा परमाणु हथियारों का उपयोग भविष्य में भारत के खिलाफ करने की मंशा रखने वाले पाकिस्तान को वह जो पाँच वर्षों के लिए 75 अरब डालर की आर्थिक सहायता देने जा रहे हैं उस निर्णय को शीघ्रता से वापिस लें।
इसके अलावा अन्य देशों से जो सहायता पाक को मिल रही है उनके दरबाजे बंद करने के लिए भी अमेरिका वैश्विक स्तर पर भारत की मदद करे। हिन्दुस्तान को विश्व विरादरी के सामने प्रभावपूर्ण तरीके से उन सभी साक्ष्यों को रखना चाहिए जिनसे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान धन और शक्ति का उपयोग केवल आतंकवाद को बढाने व भारत को कमजोर करने के लिए ही करता है।
आप का लॆख बहुत अच्छा है दॆश् हित् व दॆश् कि समस्यऒ कॊ लॆकर् लिखनॆ वालॆ आज् कम ही लॊग है