राजभाषा हिंदी – अनुवाद एवं तकनीकी समावेश की सार्थकता

दिलीप कुमार पांडेय, संयुक्त सचिव, राजभाषा, गृह मंत्रालय, भारत सरकार

स्वातंत्र्योत्तर भारत में स्वाधीनता और स्वावलम्बन के साथ-साथ स्वभाषा को भी आवश्यक माना गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद गांधीजी ने खुले शब्दों में कहा कि ‘प्रांतीय भाषा या भाषाओं के बदले में नहीं बल्कि उनके अलावा एक प्रांत से दूसरे प्रांत का संबंध जोड़ने के लिए एक सर्वमान्य भाषा की आवश्यकता है। ऐसी भाषा तो एकमात्र हिंदी या हिंदुस्तानी ही हो सकती है।’ राजभाषा के संबंध में संविधान सभा के सदस्यों ने काफी चिंतन-मनन किया। तदनुसार 14-09-1949 को देवनागरी में लिखित हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करना हमारा संवैधानिक दायित्व है । इस दायित्व की पूर्ति हमारी निष्ठा पर निर्भर करती है । हम सरकारी कार्यों से संबंधित लक्ष्यों को जिस तरह हासिल कर रहे हैं, उसी तरह हिंदी प्रयोग संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए ।

राजभाषा स्वीकारने का मुख्य उद्देश्य है कि जनता का काम जनता की भाषा में संपन्न हो । प्रशासन की भाषा एक अलग तरह की भाषा होती है जो सीधे सीधे अपने विषय पर बात करती है । उसमें साहित्यिक या क्लिष्ट भाषा शैली के लिए कोई स्थान नहीं होता । अत: सरल हिंदी का प्रयोग करते हुए हम राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा दे सकते हैं । हिंदी ध्वनयात्मक भाषा है, जहाँ अंग्रेजी के उच्चारण के लिए भी शब्दकोश देखने की आवश्यकता पड़ती है वहीं हिंदी के लिए सिर्फ अर्थ देखने के लिए ही शब्दकोश की आवश्यकता पड़ती है। अंग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग रटनी पड़ती है, जबकि हिंदी के शब्दों की वर्णमाला – स्वर व व्यंजन तथा बारह खड़ी को रटने से हिंदी के किसी भी शब्द को पढ़ना-लिखना सहज हो जाता है। यही कारण है कि हिंदी में किसी भी भाषा को लिखना या उसका उच्चारण करना सरल होता है। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि ‘माक्रोसॉफ्ट’ के मालिक बिल गेट्स ने हिंदी भाषा और लिपि को विश्व की अन्य भाषाओं की तुलना में सबसे अधिक वैज्ञानिक माना है।

सरकारी काम-काज में हिंदी के प्रगामी प्रयोग के क्षेत्र में प्रगति हुई है, किंतु अब भी लक्ष्य प्राप्त नहीं किए जा सके हैं। सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग बढ़ा है किंतु अभी भी बहुत सा काम अंग्रेजी में हो रहा है। राजभाषा विभाग का लक्ष्य है कि सरकारी कामकाज में मूल टिप्पण और प्रारूपण के लिए हिंदी का ही प्रयोग हो। यही संविधान की मूल भावना के अनुरूप भी होगा। आज भी सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिंदी का कार्य अनुवाद के सहारे चल रहा है | प्राय: अनुवाद भाषा को कठिन बनाता है। इसका कारण दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ की कमी या अनुवादक को हर विषय क्षेत्र की गहन जानकारी नहीं होना है | वैसे भी किसी को हर क्षेत्र की पूरी जानकारी होना भी संभव नहीं है |

चिकित्‍सा, अभियांत्रिकी, पारिस्थितिकी, अर्थशास्‍त्र आदि विभिन्‍न विषयों में होने वाले विकास व अनुसंधान के फलस्वरूप रोज़ नई संकल्पनाएँ जन्म ले रही हैं, नए शब्द गढ़े जा रहे हैं । चूँकि इन विषयों में रोज़ नए अनुसंधान विश्व के कोने-कोने में विभिन्न भाषाओं में हो रहे हैं अत: इनका साहित्य और उपलब्ध जानकारी मूल रूप से हिंदी में मौजूद नहीं है | इसके फलस्वरूप, बदलते वैश्विक परिदृश्य में अनुवादकों की भूमिका काफी बढ़ गई है। इन नए विषयों का अनुवाद करते समय अनुवादकों के लिए मात्र स्रोत भाषा व लक्ष्य भाषा पर ही पकड़ काफी नहीं है अपितु उनके लिए विषय का भी पूरा ज्ञान जरूरी है | परन्तु, यह व्यावहारिक भी नहीं है कि अपेक्षा की जाए कि एक अनुवादक विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि सभी विषयों में पारंगत हो | निस्संदेह यह पूर्णतः अनुवादक की प्रतिभा पर निर्भर करता है कि वह जिस भाषा से और जिस भाषा में अनुवाद कर रहा है उन भाषाओं पर उसका कितना अधिकार है और इन भाषाओं की अनुभूतियों में वह कितनी तारतम्‍यता कायम रख सकता है। यहाँ यह जरूरी है कि विषय को समझने के लिए अनुवादक को उस विषय से संबंधित विशेषज्ञ की सहायता ले लेनी चाहिए क्योंकि विषय ज्ञान के बिना अनुवाद में प्राण नहीं फूके जा सकते | आदर्श स्थिति तो यह होगी कि अनुवाद ऐसे विषय विशेषज्ञ से कराया जाए जिसे स्रोत भाषा व लक्ष्य भाषा का भी पूरा ज्ञान हो | ऐसे तकनीकी साहित्य का अनुवाद करने के लिए उन्हें अच्छा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए | यदि ऐसा हो पाता है तो इससे विषय की मौलिकता बनी रहेगी |

कार्यालयी भाषा की दृष्टि से एक सफल अनुवादक वही है जो अनुदित पाठ को सरल व स्पष्ट बनाए रखे। उसे किसी विषय को स्पष्ट करने के लिए अतिरिक्त वाक्य जोड़ने से परहेज नहीं करना चाहिए। कभी-कभी अंग्रेजी के एक शब्द को स्पष्ट करने के लिए पूरा एक वाक्य भी देना पड़ सकता है। इसे भाषिक संप्रेषण क्षमता की कमी नहीं समझना चाहिए। दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि अंग्रेजी भाषा के पूरे वाक्य के लिए हिंदी भाषा का एक शब्द ही पर्याप्त हो। भाषा का स्वरूप निर्धारित करते समय यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि पत्र या प्रारूप किस व्यक्ति को संबोधित है। उस व्यक्ति की सामाजिक, पदीय स्थिति और हिंदी भाषिक योग्यता के अनुरूप ही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। छोटे-छोटे वाक्य लिखना सुविधाजनक होता है और वैसे भी कई उप-वाक्यों को मिलाकर एक वाक्य की रचना करना हिंदी की प्रकृति नहीं है।

सूचना प्राद्यौगिकी के बदलते परिवेश में हिंदी भाषा ने अपना स्थान धीरे-धीरे प्राप्त कर लिया है। अब हिंदी की उपादेयता पर कोई भी प्रश्न चिह्न लगा नहीं सकता। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने हिंदी के लिए विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर विकसित किए हैं। ‘मंत्र-राजभाषा’ एक मशीन साधित अनुवाद टूल है जो विशिष्ट विषय क्षेत्र के अंग्रेजी पाठ का हिंदी में अनुवाद करता है। ‘मंत्र-राजभाषा’ के संबंध में लोगों के मध्य यह भ्रांति है कि यह अनुवादकों का पूरक है परंतु ऐसा नहीं है क्योंकि ‘मंत्र-राजभाषा’ सॉफ्टवेयर अनुवादकों की सहायता के लिए बना है। अनुवादक उसकी मदद से किए गए अनुवाद का पुनरीक्षण कर अपना कार्य आसानी से एवं शीघ्रता से कर सकता है। सी-डैक, पुणे के इंजीनियर राजभाषा विभाग के साथ मिलकर इस सॉफ्टवेयर को और बेहतर एवं स्वीकार्य बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। इन्टरनेट के क्षेत्र में हिंदी किसी भी मायने में अंग्रेजी से पीछे नहीं है। कंप्यूटर पर हिंदी में काम करते समय अक्सर लोगों को word, Excel, Power point आदि में तैयार किये गये दस्तावेजों में प्रयोग किए जाने वाले फोंटस की इनकम्पैटिबिलिटि के कारण दस्तावेजों के स्‍थानांतरण/विनिमय की समस्‍या का सामना करना पड़ता है।

यह समस्‍या मानक भाषा एनकोडिंग को प्रयोग न करने से पैदा होती है। यूनिकोड इनकोडिंग को सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मानक के रूप में मान्‍यता दे दी गई है । जैसे किसी अंग्रेजी फोंट में कंप्‍यूटर पर तैयार/उपलब्‍ध फाइल को दूसरे कंप्‍यूटर पर अंग्रेजी फोंट में देखा जा सकता है उसी प्रकार अब यूनिकोड इनकोडिंग के जरिए विंडो-2000 एवं उसके बाद वाले विंडोंज ओ.एस. में सहजता से हिंदी में कार्य कर सकते हैं । यूनिकोड समर्थित फोंटस में बनी .doc, .xls, व .ppt फाइल किसी भी यूनिकोड समर्थित कंप्यूटर पर देखी व संशोधित की जा सकती है | इस कंपैटिबिलिटी के लिए आवश्यकता केवल यह है कि हम कोई भी वह फोंट प्रयोग करें जो यूनिकोड समर्थित हो और जो भी सॉफ्टवेयर प्रयोग करें व यूनिकोड को सपोर्ट करता हो । सूचना प्रौद्योगिकी विभाग व राजभाषा विभाग द्वारा कंप्यूटर पर हिंदी प्रयोग को सरलता, कुशलता व प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त संसाधन व समाधान उपलब्ध कराये जा चुके हैं। ये साफ्टवेयर सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की वेबसाइट (https://ildc.gov.in/hindi/hdownloadhindi.htm) व राजभाषा विभाग की वेबसाइट (www.rajbhasha.gov.in) से नि:शुल्क डाउनलोड किए जा सकते हैं ।

निस्संदेह, हिंदी ही ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सकती है और हिंदी में काम करना राष्ट्र सेवा का ही एक रूप है। स्वतंत्रता सेनानी व कवि राम प्रसाद बिस्मिल की इन पंक्तियों के साथ मैं अपनी कलम को विराम देना चाहूँगा –

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी

चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की

स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

(स्टार न्यूज़ एजेंसी)

1 COMMENT

  1. महोदय, ये अर्ध सत्य है की हिंदी की उच्चारप्रधान लिपी है (उच्चार देखणा नही पडता) आप लोणावळा को लोणावला लिखते है, क्या ये सही उच्चार है? आप बँक को बैंक और ऑफिस को आफिस लिखते है. क्या ये सही उच्चार है?

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