—विनय कुमार विनायक
एक ॐकार सतनाम, बाकी सब सिर्फ नाम,
एक ॐ उच्चार सत सत्व सद् सत्य काम!
एक ॐ अनाहत अनहद नाद, बांकी आहत,
एक ॐ धुन निर्गुण एक ॐ ध्वनि शाश्वत!
सारी ध्वनियां घर्षण से उपजती द्वंद्व आवाज
एक ॐ आवाज है जो निकलती बिना साज!
जब आहत होती प्रकृति ध्वनि निकलती तब,
जब शांत होता व्योम तब ॐ ही ॐ का रव!
ॐ ही आदि ध्वनि, ॐ ही है आखिरी ध्वनि
जिसे जपकर ऋषि मुनि पाते जन्म से मुक्ति!
राम राम जपने पर अंततः ॐ ही हो जाता
जितनी पवित्र ध्वनि है सबको ॐ से नाता!
वाल्मीकि ने मरा मरा कहकर ॐ उच्चारा,
कृष्ण की गीता में भी ॐ ही सबसे न्यारा!
ॐ जपो मन ॐ जपो रे ॐकार ही है ईश्वर,
एक ॐकार सतनाम है ॐ है सबसे बढ़कर!
एक ॐ सत्य है, एक ॐ सत सतत शाश्वत,
एक ॐ पर निर्भर त्रिदेव प्रकृति जीव जगत!
ॐ मां है ॐ उमा है ॐ रमा है ॐ ब्रह्माणी,
ॐ बिना शिव शव ॐ ब्रह्म ॐ राम कहानी!
एक ॐ ही ॐ ह्रदय में ॐ रोम-रोम में ॐ,
ॐ ॐ सत ॐ, ॐ के आगे पीछे ॐ हीं ॐ!
—विनय कुमार विनायक