भारत में जैव आयुर्विज्ञान अनुसंधान के सौ साल

देवेन्द्र उपाध्‍याय

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की स्थापना सन् 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (आईसीएमआर) के रूप में की गयी थी, जिसे देश की स्वतंत्रता के बाद सन् 1949 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) नाम दिया गया। परिषद 99 वर्ष पूरा कर 15 नवंबर 2010 से अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रही है। देश में जैव आयुर्विज्ञान अनुसंधान को बढ़ावा देने में परिषद का महत्वूर्ण योगदान रहा है क्योंकि वह देश की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समझने तथा अनुसंधान के माधयम से उनका निराकरण खोजती है। आईसीएमआर नेटवर्क से जुड़े संस्थानों तथा इस नेटवर्क के बाहर के अनेक संस्थानों के अनुसंधान कार्यक्रमों के माध्‍यम से विभिन्न बीमारियों के निदान के लिए परिषद लगातार कार्य कर रही है।

परिषद द्वारा एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को विभिन्न माध्‍यमों से बढ़ावा दिया जाता है। मेडिकल कालेजों, विश्वविद्यालयों और अन्य शोध संस्थानों के चुने हुए विभागों में मौजूदा विशेषज्ञता और मूलभूत ढांचे की सहायता से शोध के विभिन्न क्षेत्रों में उन्‍नत अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की जाती है। इसके अति‍‍रिक्‍त टास्क फोर्स अध्‍ययन तथा देश के विभिन्न भागों में परिषद से गैर-संबद्ध अनुसंधान संस्थानों में वैज्ञानिकों के वित्तीय सहायता हेतु प्राप्त आवेदनों के आधार पर ओपन एंडेड अनुसंधान शामिल हैं।

आईसीएमआर नेटवर्क में चार क्षेत्र हैं, जिनमें उत्तरी क्षेत्र, पूर्वी क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्र तथा पश्चिमी क्षेत्र शामिल हैं। इसका मुख्‍यालय नई दिल्‍ली में स्थित है।

आईसीएमआर के 18 राष्‍ट्रीय संस्थान क्षयरोग, कुष्ठरोग, हैजा तथा अतिसारीय रोग, एड्स सहित विषाणुज रोग, मलेरिया, कालाजार, रोगवाहक नियंत्रण, पोषण, खाद्य एवं औषध विष विज्ञान, प्रजनन, प्रतिरक्षा, रुधिर विज्ञान, अर्बुद विज्ञान, आयुर्विज्ञान सांख्यिकी आदि जैसे स्वास्‍थ्‍य के विशिष्ट विषयों पर अनुसंधान करते हैं। इसके 6 क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र तथा 5 इकाइयां क्षेत्रीय स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने से संबद्ध हैं, जिनका उद्देश्य देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में शोध क्षमताओं को तैयार करना तथा तथा उन्हें सुदृढ़ बनाना है।

जैव आयुर्विज्ञान अनुसंधान में मानव संसाधन विकास को विभिन्न योजनाओं के माध्‍यम से बढ़ावा दिया जाता है। इनमें जूनियर व सीनियर फैलोशिप तथा रिसर्च एसोसिएट के माध्‍यम से रिसर्च फैलोशिप, अल्पकालिक विजिटिंग फैलोशिप; अल्पकालिक रिसर्च स्टूडेंटशिप, विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं का संचालन तथा विदेश में आयोजित सम्मेलनों में भाग लेने हेतु यात्रा के लिए वित्‍तीय सहायता उपलब्ध कराना आदि प्रमुख है। इसके अलावा सेवा- निवृत्‍त वैज्ञानिकों एवं शिक्षकों को जैव आयुर्विज्ञान के विशिष्ट विषयों पर शोध कार्य करने अथवा जारी रखने के लिए इमेरिट्स साइंटिस्ट का पद दिया जाता है। स्वास्थ्य विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत भारतीय जैवआयुर्विज्ञान वैज्ञानिकों (बायोमैडिकल सांइटिस्टों) को उनके विशिष्ट योगदान के लिए परिषद द्वारा पुरस्कार एवं पारितोषिक प्रदान कर सम्मानित किया जाता है।

परिषद् में मौलिक आयुर्विज्ञान प्रभाग, जानपदिक रोग विज्ञान एवं संचारी रोग प्रभाग, अंसचारी रोग प्रभाग, प्रजनन स्वास्थ्य और पोषण प्रभाग तथा प्रकाशन एवं सूचना प्रभाग हैं। स्वास्थ्य प्रणाली अनुसंधान सेल, ट्रांसलेशनल अनुसंधान यूनिट, सामाजिक एवं व्यवहारात्मक अनुसंधान यूनिट, औषधीय पादप यूनिट तथा अंतर्राष्‍ट्रीय स्वास्थ्य प्रभाग भी परिषद के प्रमुख यूनिट हैं। जनशक्ति विकास प्रभाग द्वारा जैव सांख्यिकी सहित लाइफ सांइसेज और समाज विज्ञान में पीएचडी करने के लिए जूनियर रिसर्च फैलोशिप प्रदान करने हेतु अभ्यर्थियों के चयन के लिए राष्‍ट्रीय स्तर पर एक परीक्षा आयोजित की जाती है।

परिषद ने कुष्ठरोग, कालाजार तथा क्षयरोग जैसी बीमारियों पर अपना विशेष ध्‍यान केंद्रित किया है। भारत में ऐसी अनेक बीमारियां हैं जिनको सामान्यतया गंभीरता से नहीं लिया जाता, लेकिन परिषद ने हाल के वर्षों में ऐसी बीमारियों पर किये जाने वाले अनुसंधान के लिए 60 प्रतिशत से अधिक वित्‍तीय सहायता उपलब्ध करायी है। परिषद गरीबों तथा मध्‍यम वर्ग के लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर हल करने की दिशा में अग्रसर है।

परिषद ने वर्ष 2009-10 तथा वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसंबर 2010 तक) अपने विभिन्न संस्थानों एवं केंद्रों में 26 ट्रांसलेशनल यूनिट स्थापित किये हैं। 52 प्रौद्योगिकियों/प्रक्रियाओं की पहचान ट्रांसलेशन प्रोसेस के पहले चरण में की जा चुकी है तथा वर्तमान वर्ष में इन पर कार्यवाही शुरू हो चुकी है। अन्य 20 समीक्षाधीन हैं।

अनुसंधान ढांचे को मजबूत करना

हाल के वर्षों में आईसीएमआर ने अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं जो देश में अनुसंधान आधार मजबूत करने की दिशा में उल्लेखनीय कदम है। इनमें मेडिकल कालेजों, अनुसंधान संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों आदि को 750 एक्स्ट्राम्युरल रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए वित्‍तीय सहायता प्रदान की गयी, जिनमें 500 प्रोजेक्ट गत डेढ़ वर्ष में वित्त पोषित किये गये। वर्ष 2007 से अब तक 557 जूनियर रिसर्च फैलो का चयन/ वित्‍तीय सहायता प्रदान की गयी। इनमें 110 का चयन वर्ष 2010 में किया गया। 450 नये सीनियर रिसर्च फैलो तथा 2009-10 से प्रारंभ पोस्ट डाक्टरल फैलोशिप के अंतर्गत 30 पोस्ट डाक्‍टरल फैलो का चयन किया गया।

परिषद से जो वैज्ञानिक संबद्ध नहीं हैं उनके लिए अंतर्राष्‍ट्रीय सम्मेलनों में भागीदारी के लिए 2010 से वित्‍तीय सहायता की नई योजना शुरू की गयी है, जिसके अंतर्गत 175 युवा वैज्ञानिकों को वित्‍तीय सहायता उपलब्ध की जा चुकी है।

आधुनिक प्रौद्योगिकी

नैनो-मेडीसिन तथा स्‍टैम सैल अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के लिए मानवीय स्वास्थ्य हेतु उम्‍मीद्वारों की पहचान की गयी। भारत के बालिगों में विकसित नार्मेटिव वैल्यूज के अध्‍ययन के लिए पहली बार मल्टी साइट व्यापक अध्‍ययन शुरू किया गया। थैलेसेमिया के मौलेक्युलर करैक्टाराइजेशन तथा सिकल सैल अनेमिया के प्रशिक्षण का कार्य वलसाड, बंगलौर, लुधियाना, नागपुर एवं कोलकाता केन्‍द्रों द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

पूर्वोत्तार राज्यों के लिए पहल

सभी 8 पूर्वोत्तर राज्यों में मधुमेह की व्यापकता के अध्‍ययन हेतु सर्वे किया गया। सौ से अधिक एक्सट्राम्युलर प्रौजेक्ट पर कार्य प्रगति पर है। परिषद के डिब्रूगढ़ केंद्र में ऐसे क्षयरोगियों की पहचान की गयी जो क्षय रोग निरोधक इलाज का लाभ नहीं ले रहे थे तथा इससे उनके फेफड़ों के खराब होने का खतरा हो सकता है। गुवाहाटी में पूर्वोत्तार राज्यों के छात्रों के लिए जूनियर रिसर्च फैलोशिप परीक्षा केंद्र की स्थापना की गयी।

गैर संचारी बीमारियां

देश के 16 केंद्रों से अस्थमा की व्यापकता की जानकारी एकत्र की गयी। मोटापे पर अध्‍ययन की शुरूआत की गयी तथा पंजाब सरकार के सहयोग से संधिवात बुखार एवं संधिवात हृदयरोग बीमारियों (आरएफ-आरएचडी) के लिए स्टेट कंट्रोल कार्यक्रम शुरू किया गया। भोपाल में गैस प्रभावित आबादी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को ध्‍यान में रखते हुए राष्‍ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गयी है। देश के विभिन्न भागों में कैंसर पर अनुसंधान कार्यक्रम संचालित करने के अलावा अनेक कार्यक्रम शुरू किये गये हैं।

जनजाति स्वास्थ्य

परिषद ने अपने 7 संस्थानों/केंद्रों में जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान फोरम शुरू किये हैं। इसमें उनके पोषण से संबंधित ब्यौरों को आंकड़ों के आधार पर तैयार कर उनमें मलेरिया तथा उच्च रक्त चाप आदि के नियंत्रण के लिए कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। मध्‍यप्रदेश में फ्ल्यूओरोसिस प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के लिए राष्‍ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया है। हेप्टाइटिस-बी टीकाकरण कार्यक्रम अंडमान में परिषद द्वारा किये गये अनुसंधान कार्यक्रम के आधार पर प्रांरभ किया गया है।

संचारी रोग

परिषद ने विभिन्न संचारी रोगों के निदान के लिए भी अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्‍यम से कार्य प्रांरभ किया है। संशोधित राष्‍ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम में परिषद का महत्वपूर्ण योगदान है।

वायरस रोगों तथा एच1एन1 इन्फ्ल्यूंजा की रोकथाम तथा उनके निदान के लिए परिषद अपने नेटवर्क के माधयम से कार्य कर रही है

राष्‍ट्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान नीति

परिषद ने राष्‍ट्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान नीति का एक मसौदा तैयार किया है जिस पर पूरे देश में विचार किया जा रहा है। इसमें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नालेज मैनेजमेंट पालिसी पर विचार किया जा चुका है। इसके साथ ही अनेक गाइड लाइन विकसित एवं तैयार की जा चुकी हैं। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

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