भारत के 2 अरब यात्री उत्सर्जन मुक्त/सौर ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं
प्रधान मंत्री मोदी ने हाल ही में घोषणा की है कि भारत में रेलवे का विद्युतीकरण तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, और भारतीय रेलवे के लिए लक्ष्य 2030 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक बनना है। विद्युतीकरण, ऊर्जा दक्षता और रिन्यूएबल ऊर्जा की तरफ़ स्विच का एक मिश्रण इस लक्ष्य को सक्षम करने के लिए आवश्यक है।
भारत के रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय रेलवे को कंपनी की नेट ज़ीरो प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में सौर विकास के लिए अनुत्पादक भूमि के विशाल क्षेत्रों को चिह्नित करने का निर्देश जारी किया है। ट्रेनों को चलाने के लिए ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 20GW सौर उत्पादन प्रदान करने की योजना पहले से ही चल रही है।
इस बीच भारत से क्लाइमेट ट्रेंड्स और यूके स्थित ग्रीन टेक स्टार्ट-अप, राइडिंग सनबीम्स, के एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय रेलवे लाइनों को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति से, रेलवे के राष्ट्रीय नेटवर्क में चार में से कम से कम एक ट्रेन को चलाने के साथ-साथ सालाना लगभग 7 मिलियन टन कार्बन की बचत होगी। भारतीय रेलवे 2019/2020 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उस अवधि में 8 बिलियन से अधिक का यात्री यातायात था, जिसका मतलब यह होगा कि 2 बिलियन यात्री सीधे सौर ऊर्जा द्वारा संचालित ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं।
नए विश्लेषण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस नई सौर क्षमता का लगभग एक चौथाई – 5,272 मेगावाट तक – बिजली नेटवर्क पर खरीदे जाने के बजाय सीधे रेलवे की ओवरहेड लाइनों में फीड किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा के नुकसान कम होंगे और रेल ऑपरेटर के पैसे बचेंगे।
शोधकर्ताओं ने पाया कि कोयला-प्रधान ग्रिड से आपूर्ति की गई ऊर्जा के बजाय सौर से निजी-तार की आपूर्ति भी हर साल 6.8 मिलियन टन CO2 तक उत्सर्जन में तेज़ी से कटौती कर सकती है – जो भारतीय शहर कानपुर के पूरे वार्षिक उत्सर्जन जितना है।
रिपोर्ट के सह-लेखक, राइडिंग सनबीम्स के संस्थापक और नवाचार के निदेशक लियो मरे ने कहा,
“अभी भारत दो महत्वपूर्ण जलवायु सीमाओं – रेल विद्युतीकरण और सौर ऊर्जा परिनियोजन – पर दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय रेलवे में इन दो कीस्टोन लो-कार्बन प्रौद्योगिकियों को एक साथ जोड़ने से भारत को कोविड महामारी से आर्थिक सुधार और जलवायु संकट से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन को बंद करने के प्रयासों दोनों को बढ़ावा मिल सकता है।”
रिपोर्ट की सह-लेखक और क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, “भारतीय रेलवे प्रत्येक भारतीय के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल परिवहन का सबसे अमली साधन है, बल्कि यह देश में सबसे प्रसिद्ध और सबसे बड़ा नियोक्ता भी है। सरकार रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च करती है, जो बदले में, राष्ट्र की नेट-ज़ीरो दृष्टि में एक बड़ी भूमिका निभाएगा। यह विश्लेषण किया गया है कि सभी डीज़ल इंजनों को इलेक्ट्रिक में परिवर्तित करने से वास्तव में अल्पावधि में उत्सर्जन में वृद्धि होगी, हालांकि, यह रिपोर्ट लोकोमोटिव सिस्टम का सौर पीवी इंस्टालेशनों से सीधा कनेक्शन बनाकर, जो कुल मांग का एक चौथाई से अधिक पूरा करे, इसे पहली बार में ठीक से करने का जबरदस्त अवसर दिखाती है।”
हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी भी दी कि 2023 तक सभी मार्गों के पूर्ण विद्युतीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ-साथ अल्पावधि में CO2 उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है क्योंकि वर्तमान में बिजली उत्पादन के लिए भारत कोयले पर निर्भर है।
टीम ने भारत के प्रत्येक रेलवे ज़ोन पर ट्रैक्शन एनर्जी डिमांड (कर्षण ऊर्जा की मांग) का विश्लेषण किया और प्रत्येक क्षेत्र में संभावित सौर संसाधन के साथ इसका मिलान करके सौर ऊर्जा की कुल मात्रा का एक आंकड़ा तैयार किया, जिसे रेलगाड़ियों को चलाने के लिए सीधे रेलवे से जोड़ा जा सकता है। सबसे बड़ी सौर-से-रेल क्षमता वाले शीर्ष पांच क्षेत्र हैं:
● दक्षिण मध्य रेलवे (394-625MW): [तमिलनाडु, केरल, (कर्नाटका और पांडिचेरी में भी कार्य करता है)]
● मध्य रेलवे (299-475MW) [महाराष्ट्र]
● उत्तर रेलवे (290-459MW) [पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली]
● पश्चिम रेलवे (280-443MW) [महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश]
● पश्चिम मध्य रेलवे (278-440MW) [मध्य प्रदेश, राजस्थान और कुछ उत्तर प्रदेश में]
गणना करने में माना गया है कि सौर द्वारा उत्पन्न सभी ऊर्जा रेलवे द्वारा उपयोग की जाती है, और इसमें बैटरी भंडारण एकीकरण की क्षमता शामिल नहीं है। कम उपयोग दरों और भंडारण को शामिल करने से भारतीय रेलवे की ट्रैक्शन एनर्जी डिमांड की सौर-से-रेल क्षमता को 40% से अधिक का बढ़ावा मिल सकता है।
अध्ययन में यह पता लगाया गया है कि समर्पित माल गलियारों और नए उच्च गति मार्गों में रणनीतिक निवेश कैसे यात्रियों और माल ढुलाई को बढ़ावा देने के लिए भारतीय रेलवे का समर्थन कर सकता है, और यह भारत की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। रिपोर्ट में भारतीय रेलवे की कोयले पर निर्भरता की समस्या पर भी प्रकाश डाला गया है, दोनों ऊर्जा स्रोत के रूप में और इसकी प्रमुख माल ढुलाई वस्तु के रूप में, जो 2018-19 में IR के राजस्व का लगभग एक तिहाई हिस्सेदार रहा। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि कोल् पावर्ड ट्रैक्शन (कोयले से चलने वाले कर्षण) की जगह सौर को प्रतिस्थापित करने के साथ-साथ, IR को अपनी नेट ज़ीरो प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में अपने व्यापार मॉडल को कोयला भाड़े से दूर करना चाहिए।
डॉ अजय माथुर, महानिदेशक, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “भारत के ऊर्जा और परिवहन क्षेत्रों ने 2014 में भारत के कुल उत्सर्जन में 65% से अधिक का योगदान दिया, और भारत के महत्वाकांक्षी रिन्यूएबल ऊर्जा लक्ष्यों ने बिजली क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़ेशन मार्ग पर डाला दिया है। भारतीय रेलवे का 2030 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य उसके बाद हर साल उत्सर्जन मुक्त 8 बिलियन से अधिक यात्रियों को यात्रा करते हुए देख सकता है। नए अध्ययन क्लाइमेट ट्रेंड्स और राइडिंग सनबीम से पता चलता है कि भारतीय रेलवे सूर्य की शक्ति दोहन (का उपयोग) कर सकता है और डीकार्बोनाइजेशन की राह पर ले जा सकता है। भारतीय रेलवे का स्वच्छ संक्रमण भारत और दुनिया के लिए प्रेरणा का एक प्रमुख स्रोत हो सकता है। “
आगे, अरुणाभा घोष, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) कहते हैं, “मैं भारतीय रेलवे के डीकार्बोनाइजिंग पर इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के लिए क्लाइमेट ट्रेंड्स और राइडिंग सनबीम्स की टीमों को बधाई देती हूं, एक महत्वपूर्ण मुद्दा जिसे CEEW भी आधे दशक से अधिक समय से हाईलाइट करता रहा है। रेलवे के 100% विद्युतीकरण के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर निर्माण करते हुए, हमारे रेलवे के 2030 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए सौर और पवन को अपनाना और बढ़ाना तार्किक होगा। तत्काल रूप में, रेलवे अपने विद्युतीकरण प्रणाली और सबस्टेशनों की ग्रीनिंग (को हरित करने) पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। स्टेशन भवनों और कार्यशालाओं पर रूफटॉप सिस्टम स्थापित करने से भी लागत में महत्वपूर्ण बचत हो सकती है। लंबी अवधि में, ग्रीन हाइड्रोजन ट्रेनों को बिजली देने का एक और आशाजनक विकल्प है।”