मेरा खुला पत्र

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jnuअमित राजपूत

हाल ही में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में हुई घटना को देखते हुए मेरा अनुमान है कि इस राष्ट्रविरोधी घटना के तार निश्चित रूप से हाफ़िज सईद से जुड़े हुए हैं। इससे पहले, जो छात्र इस घटना के सूत्रधार हैं उसके मास्टरमाइण्ड और अगुवा जिन्होने कुछ अतिमहत्वाकांक्षी और निरा स्वार्थी कथित विद्यार्थियों का जोकि युवा हैं, ब्रेनवॉश किया है उनके सम्पर्क भारत में छिपे स्लीपर सेल्स से हैं जो यहां बैठकर बड़ी आसानी से जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थाओं में पाकिस्तान के समर्थन में अपने प्रोजेक्ट ड्रॉ कर पाते हैं, और इसकी भी कड़ी अमेरिका सहित दुनिया के दूसरे कोनों में कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल संस्थाओं और लोगों से जुड़ी हो सकती है। कुल मिलाकर यह निश्चित है कि पूरा मामला वैश्विक पटल पर कश्मीर को लेकर भारत की छवि ख़राब करने की है जो ये दर्शाए कि पाकिस्तान तो मासूम है, असली ग़ुनहगार तो भारत है, तभी तो वहां के बड़े शैक्षिक संस्थानों से ही भारत विरोधी आवाज़े उठ रही हैं।

अब बात करते हैं निज जेएनयू की जहां ये घटना घटी। इस घटना ने ये तो साफ कर दिया है कि यहां दक्षिणी विचारधारा के लोग कितने मज़बूर और कमज़ोर हैं। जो कथित रूप से दक्षिणी विचारधारा से सम्बन्ध रखने वाले लोग भी है वो या तो असहाय हैं, शक्तिविहीन हैं या फिर वो मात्र राजनैतिक चमचागीरी के प्रयास में ही प्रयत्नशील रहते हैं, अन्यथा इस तरह की घटनाओं का मौका-ए-वारदात पर ही कड़ा विरोध होता है। लेकिन मैं इस बात से भी इन्कार नहीं करता कि जेएनयू में वामपंथियों का दबदबा है, जिनके चोले के भीतर ये राष्ट्रविरोधी तत्व फलते-फूलते हैं। ऐसे में वाम संगठनों को भी सचेत रहने की आवश्यकता है। जेएनयू में तो एक आम छात्र की बातें, उसके विचार और राय स्पष्ट ही नहीं हो पाते, अन्यथा इस घटना के तुरन्त बाद का नज़ारा ही कुछ और होता।

मैं अपने इस ख़ुले पत्र के सहारे हाफ़िज सईद, भारत में उसके स्लीपर सेल्स और जेएनयू में हंगामा काट रहे कुछ छुद्र खल युवक/युवतियों को ये चुनौती देता हूं कि अपनी यही हरक़तें आकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दिखाकर देख लो, प्रतिक्रिया का असली रस मिल जाएगा। फिर न तो विश्वविद्यालय इस घटना से जुड़ पाएगा और न ही उसे ज़रूरत ही पड़ेगी, न तो प्रशासन तक ये पहुंच पाएगा और भारतीय मीडिया तो इससे अस्पृश्य ही बनी रहेगी। यदि एक छात्र की हैसियत से तुमने आज़ादी मांगी तो एक छात्र के नाते ही वहां के आम विद्यार्थी तुम्हे आज़ादी भी दे देंगे क्यों कि वहां के हर छात्र के ख़ून में कुछ भी महसूस करने की अपार क्षमता है और वो उसकी प्रतिक्रिया भी देना जानते हैं। सब्र करो कि जेएनयू जैसी भौगोलिक स्थिति वहां नहीं है वरना हॉलैण्ड हाल, हिन्दू, केपीयूसी और ताराचंद जैसे छात्रावासों के छापामार युद्धों से तुम सब स्वतः ही प्राणों की दुहाई मांगोगे।

यद्यपि वामपंथ को संस्थागत रूप देने वाला इलाहाबाद किसी भी विचारधारा को अपने सिर पर चढ़कर मूतने की इजाज़त नहीं देता, तथापि ऐसी ज़ुर्रतों की जोहमत उठाने वाले लोग अपनी हरक़तें कर भी दें तो उसका परिणाम जेएनयू जैसा तो कतई ही नहीं होगा। हफ़्तेमें तीन दफ़ा मांस, बीच में अण्डों की भरमार और इफरात भात का आहार लेकर, गांजे और कोकीन के मद में डूबे पिशाची हवस की भूख को मिटाने के बाद भी कुछ चंद दिशाहीन लोगों की जाने कौन सी ग़ुलामी है जिसके लिए उन्हें भारत के टुकड़े करके व पाकिस्तान की ज़िन्दाबादी और मुर्दाबादभारत के अरमानों के साथ आज़ादी चाहिए, शायद जिसके लिए ये रात दिन ‘ले के रहेंगे आज़ादी’ के राग अलापा करते हैं। यदि जेएनयू के छात्र चाहें जो फिलहाल चे’ और भगत सिंह को टी-शर्ट के सहारे अपने सीने से चिपकाए घूमते रहते हैं इन कुछ कथित परतंत्र लोगों को इनकी आज़ादी दे सकते हैं। बाक़ी आप लोगों की मर्जी विश्वविद्यालय का मुंह ताकते रहो, दिल्ली सरकार की ओर निहारो या केन्द्र सरकार की आशा में उम्र गुजारो। याद रखो साथियों ‘खग समझे खग ही की भाषा’ यानी एक युवा ही इन युवाओं की बात समझ सकते हैं और अपने स्तर से ही इनको इन्ही की भाषा में भरपूर आज़ादी का स्वाद चखा सकते हैं आप, जैसा कि अन्य विश्वविद्यालयों में होता है। और हाँ, मीडिया की माया से भी दूर रहें तो बेहतर होगा, इससे अपने काम पर फोकस रहता है। कुछ करो यारो, सब्र बहुत कर लिया तुमने। इनकी आज़ादी का ख़्याल करो, ये जो बोल गए उसे समझो और उत्तर दो…

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अमित राजपूत
जन्म 04 फरवरी, 1994 को उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर ज़िले के खागा कस्बे में। कस्बे में प्रारम्भिक शिक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास और राजनीति विज्ञान विषय में स्नातक। अपने कस्बे के रंगमंचीय परिवेश से ही रंग-संस्कार ग्रहण किया और इलाहाबाद जाकर नाट्य संस्था ‘द थर्ड बेल’ के साथ औपचारिक तौर पर रंगकर्म की शुरूआत की। रंगकर्म से गहरे जुड़ाव के कारण नाट्य व कथा लेखन की ओर उन्मुख हुए। विगत तीन वर्षों से कथा लेखन व नाट्य लेखन तथा रंगकर्म के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों में सक्रिय भागीदारी, किशोरावस्था से ही गंगा के समग्र विकास पर काम शुरू किया। नुक्कड़ नाटकों व फ़िल्मों द्वारा जन-जागरूकता के प्रयास।

1 COMMENT

  1. जेएनयु के किरदारों के पीछे मूल अपराधी कौन है, इस प्रश्न का उत्तर अहम है, मुझे लगता है की उनकी फंडिंग पश्चिमी देश करते है. हाफिज सईद जैसे हार्ड कोर आतंकवादी भी पश्चिमी साम्रज्यवादी शक्तियो का मोहरा भर है. वस्तुतः जेएनयु के विद्यार्थी तो कठपुतलियां है. जेएनयु का प्रयोग के पीछे उन साम्राज्यवादी शक्तियो का अभीष्ट क्या है :- (1) भारत और सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में द्वन्द, फसाद और आतंकवाद को बौद्धिक बल देना (2) धार्मिक, भाषिक, क्षेत्रीय, जातीय अहंकारों को मल जल देना (3) भाररतीय विदेश एवं प्रशासनिक सेवा में अपने मानस पुत्रो को प्रवेश दिलाना (4) भारतीय राजनीति में राष्ट्रवादी शक्तियो के विरुद्ध बौद्धिक आक्रमण करवाना.

    अब जब रोग का पता चल चुका है तो उसका उपचार भी सही होना चाहिए. जीर्ण रोग है, उपचार लम्बा चलेगा. शल्य चिकत्सा की भी आवश्यकता पड़ेगी. देश के प्रत्येक नागरिक को इस उपचार में सक्रीय होना होगा.

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