जीभ की लम्बाई, चौड़ाई या मोटाई के बारे में तो हमने अधिक बातें नहीं सुनीं, पर उसकी चंचलता के किस्से जरूर प्रसिद्ध हैं। कहते हैं एक बार दांतों ने हंसी-मजाक में जीभ को काट लिया। जीभ ने कुछ गुस्सा दिखाया; पर वह ठहरी कोमल और अकेली, जबकि दांत थे कठोर और पूरे बत्तीस। उसके गुस्से का मजाक बनाते हुए दांतों ने उसे फिर काट लिया।
बस फिर क्या था, जीभ ने तय कर लिया कि इसका बदला जरूर लेना है। एक दिन सामने से एक पहलवान को आते देखकर जीभ ने उसे दो-चार गालियां सुना दीं। पहलवान को आजतक किसी ने गाली देने की हिम्मत नहीं की थी। उसका पारा चढ़ गया। उसने दो घूंसे मुंह पर ऐसे जड़े कि आधे दांत बाहर निकल आये। सारा चेहरा खून से रंग गया।
परिणाम क्या हुआ, यह आप समझ ही सकते हैं। दांतों ने हाथ जोड़कर जीभ से क्षमा मांगी और भविष्य में फिर कभी मजाक न करने का वचन दिया, तब जाकर जीभ का गुस्सा शांत हुआ। किसी ने ठीक ही लिखा है –
जिह्ना कोमल हो भले, देती अकड़ निकाल
गाली दे भीतर घुसे, जूते खात कपाल।
लेकिन इन दिनों एक और महान नेता की जीभ की बड़ी चर्चा है। वे हैं आम आदमी पार्टी (आपा) के सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल यानि केजरी ‘आपा’। शायद ही कोई दिन हो, जब वे नरेन्द्र मोदी और दिल्ली के उपराज्यपाल को बुरा-भला न कहते हों। बिना ऐसा किये उनको खाना हजम नहीं होता। सुना है उन्होंने पंजाब चुनाव के घोषणापत्र में भी प्रमुखता से कहा है कि काम करना तो हमारे स्वभाव में नहीं है, पर अपनी असफलताओं के लिए दिन में दो बार नरेन्द्र मोदी को गाली जरूर देंगे।
इस व्यवहार से उनके विरोधी ही नहीं, समर्थक भी दुखी हैं कि आखिर वे इतना क्यों बोलते हैं ? यद्यपि सार्वजनिक जीवन में होने के कारण राजनेताओं को ‘आम आदमी’ से काफी अधिक बोलना पड़ता है; पर केजरी ‘आपा’ की तो हद है। वे काम की कम और बेकार की बातें अधिक बोलते हैं; पर पिछले दिनों उनके इस अधिक बोलने का रहस्य भी खुल गया।
असल में केजरी ‘आपा’ को खांसी बहुत रहती है। इसके इलाज के लिए वे प्रायः बंगलौर जाते रहते हैं। इस बार वहां के डॉक्टरों ने जरा गहराई से जांच की, तो पता लगा कि केजरी ‘आपा’ की जीभ कुछ अधिक लम्बी है। इसीलिए वह जरूरत से ज्यादा लपलपाती है। डॉक्टरों ने जीभ में कुछ कांट-छांट की है। जब केजरी ‘आपा’ दिल्ली वापस लौटेंगे, तब पता लगेगा कि कुछ सुधार हुआ या नहीं ?
लेकिन हमारे शर्मा जी का कहना है कि असल गड़बड़ जीभ में नहीं, दिमाग में है। दिल्ली के घोषित मुख्यमंत्री तो वही हैं, पर काम न करने का सारा श्रेय उनके साथी मनीष सिसौदिया ले रहे हैं। उन्होंने ‘ऑपरेशन झाड़ूमार’ से केजरी ‘आपा’ को दिल्ली से लगभग बाहर ही कर दिया है। बेचारे कभी पंजाब में टहल रहे हैं, तो कभी गोवा में। बाकी समय इलाज के नाम पर बंगलौर में कट जाता है।
किसी समय प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास ‘आपा’ के चमकते चेहरे हुआ करते थे; पर अमेठी और फिर पंजाब के चक्कर में वे सीन से गायब कर दिये गये। अब वे न पार्टी के मंचों पर दिखते हैं न दूरदर्शनी बहस में। इस ‘ऑपरेशन झाड़ूमार’ का अगला निशाना केजरीवाल हैं। यदि वे ऐसे ही दिल्ली से बाहर टहलते रहे, तो पार्टी और सरकार पर पूरी तरह मनीष सिसौदिया का कब्जा हो जाएगा। जैसी लड़ाई लखनऊ में चाचा और भतीजे में चल रही है, वैसी ही दिल्ली में केजरीवाल और मनीष में छिड़ी है। अंतर बस इतना है कि चुनाव सामने होने के कारण लखनऊ की लड़ाई खुलेआम हो रही है, जबकि दिल्ली में पर्दे के पीछे। इसका ही केजरी ‘आपा’ के दिमाग पर असर पड़ा है।
शर्मा जी चाहे जो कहें, पर मुझे केजरी ‘आपा’ से बहुत सहानुभूति है। जीभ और दिमाग के चक्कर में उनकी जो हालत हो गयी है, वह ठीक नहीं है। फिल्मों में प्रायः किसी झटके से दिमाग पर हुए खराब असर को किसी दूसरे झटके से ठीक होते देखा गया है। हो सकता है पंजाब और गोवा के चुनावी झटके से केजरी ‘आपा’ खुद ही ठीक हो जाएं। वरना जीभ और गले की तरह हमें उनके दिमाग की सर्जरी की खबर सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।