इंजीनियर बनेगा बेटा अपना…

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बाप  ने देखा एक सपना,

इंजीनियर बनेगा बेटा अपना,

पढ़ लिखकर कर, यह कुछ काम करेगा,

लाडला  बेटा, देश का ऊँचा नाम करेगा।

 

 

 

 

 

 

बेटा था आज्ञाकारी,

शुरू किया तैयारी ,

FITJEE, Aaksh, BANSAL में

भरी गई फीस भारी,

आखिर क्यों ना हो  ! यह थी युद्ध की तैयारी।

 

 

सपने पूरे हुए, जो थे दिल में,

एडमिशन हुआ  बेटे का  किसी कॉलेज में,

बाप खुशी में लडडू बाँट रहा है,

बेटा भी मग्न हो नॉच रहा है,

माँ भी है अति प्रसन्न , पूरी  बना रही है,

बेटे को भर-भर थाल खिला रही है।

 

 

 

आज ही है कॉलेज में दिवस प्रथम,

खिले है नव स्वपन  के पुष्प प्रथम।

 

 

 

“अब हमें यहाँ पढ़ाया जायेगा, इंजीनियर बड़ा  बनाया जायेगा”

यह बेटा सोच रहा है,

आँख  बिछाये टीचर का , कलाम का मधुर स्वपन देख रहा है।

 

पर होता जैसे दर्शन दुर्लभ हीरे  और मणि का,

था वैसे ही दुर्लभ दर्शन गुरु जी का,

बेटा  था भोला  सोचा,प्रथम दिवस है, गुरु जी व्यस्त रहे होंगे,

या  शोध में कही मस्तक फोड़ रहे होंगे।

 

अरे वह देखो ! अपने टीचर जा रहे है,

बड़े तेजी से कैंटीन की  तरफ कदम बढ़ा  रहे है।

बेटा दौड़ा लिए उत्साह चरम

ह्रदय में नव भाव उठ रहे थे,

ब्रम्हा , विष्णु साक्षात दिख रहे थे।

 

 

शिक्षक अब तक भाँप चुके थे,

वो अन्तर्यामी सब कुछ जान चुके थे,

“अरे बेटे आज प्रथम दिवस है आराम करो ,

अभी बहुत समय अगले हफ्ते से शुरू कोई काम करो।”

 

 

 

 

 

बेटा हफ्ते भर ना आराम किया,

मन ही मन सपनो का वो ध्यान किया,

 

आज पुनः कॉलेज को प्रस्थान किया।

 

दर्शन हुए आज , जिनकी  थी  अभिलाषा,

छात्र मन श्रद्धा से खूब भर आया ,

शिक्षक बोले “आज समय है, आज कहता हूँ,

 

 

समय अब बीत चूका  है, लाडला बेटा  इंजीनियर  बना हुआ है,

सपनो को वह कब का भूल गया है ,

अब कलाम को भूल, सलमान को पहचान गया है,

दर- दर की ठोकर खाकर वो सब कुछ जान गया  है……

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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