-जो पाकिस्तान की जमीं पर खड़ा होकर हिन्दुस्तान जिंदाबाद-पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा सके
-जो लाहौर में खड़ा होकर पाकिस्तानी अवाम को गाली दे सके
-जो इस्लामाबाद की सड़कों पर तिरंगा लहरा सके
-जो कराची में रहकर पाकिस्तानी फौज को पाकिस्तानी कुत्ता कह सके
-विशाल आनंद
शायद जवाब मिलेगा (ना), मेरा भी जवाब है (ना)। और अगर ऐसी हिम्मत करने की कोई सोच भी ले तो अंजाम क्या होगा ये सब जानते हैं, बताने की जरूरत नहीं। पाकिस्तान ही क्या कोई भी मुल्क अपनी जमीं पर ऐसा किसी भी सूरत में नहीं होने देगा सिवाय हिंदुस्तान को छोड़ के। जी हां, सारी दुनिया में हिंदुस्तान ही ऐसा इकलौता मुल्क है जहां सब कुछ मुमकिन है यानि ‘इट्स हैपिंड ऑनली इन इण्डिया’। यहां की जमीं पर पाकिस्तान जिंदाबाद -हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने की पूरी आजादी है, कहने को कश्मीर हमारा है पर यहां तिरंगा जलाने और पाकिस्तानी झंडे को लहराने की पूरी छूट है, यहां भारतीय फौज को जी भर के गाली दी जा सकती है। ऐसा क्यों है? तो तर्क समझ लीजिए – क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, दूसरा तर्क – यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, तीसरा तर्क – यहां हर किसी को अपने अधिकारों के लिए लड़ने का पूरा हक है (चाहे वो राष्ट्रविरोधी हक क्यों न हो)। ऐसे तमाम तर्क आपको मिल जाएंगे जो आपके गले उतरें या ना उतरें। अब ताजा उदाहरण 21अक्टूबर दिन गुरूवार दिल्ली स्थित एलटीजी सभागार में आयोजित उस सेमीनार का ही ले लीजिए जिसमें ऑल इण्डिया हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमेन व अलगाववादी नेता जनाब सैयद अली शाह गिलानी, माओवादियों की तरफदारी करने वाली अरूंधती रॉय, संसद पर हमले के आरोपी रहे और बाद में सबूतों के अभाव में बरी कर दिये गये प्रो. एसएआर गिलानी, जाने माने नक्सल समर्थक वारा वारा राव जैसी राष्ट्रविरोधी शख्सियत मौजूद थी। सम्मेलन का विषय था ‘कश्मीर-आजादी द ऑनली वे’। अब आप अंदाजा लगाइये ‘विषय’ पर और चर्चा करने के लिए जुटी इस जमात पर। इस जमात में शामिल थे अलगाववादी, नक्सलवादी, खालिस्तानी सरगना और समथर्क। यह सब कश्मीर में नहीं बल्कि देश की राजधानी में हो रहा था। अब इसे विखंडित देश का सपना देखने वाले इन ‘देशभक्तों’ का साहस कहें या इनके साहस की हौसला अफजाई के लिए दिल्ली में बैठी ताकतों का दुस्साहस। ये वही सैयद अली शाह गिलानी है जिसके एक इशारे पर भारतीय फौज पर पत्थर बाजी शुरू हो जाती है, जिसके इशारे पर श्रीनगर में तिरंगे को जूते-चप्पलों से घसीटकर जला दिया जाता है, जनाब की रैली में लहराते हैं पाकिस्तानी झंडे और हिंदुस्तान- मुर्दाबाद, पाकिस्तान -जिदांबाद के नारों से गूंजने लगती है घाटी। ये जब चाहें घाटी को बंद करने का फरमान जारी कर देते हैं। हाल ही में गिलानी का एक वीडियो मैंने भी देखा है जिसमें कश्मीरी अवाम और ये एक सुर में चीख चीख कर कह रहे हैं – हम पाकिस्तानी हैं- पाकिस्तान हमारा है। इन नारों से घाटी गूंज रही है। 29 अक्टूबर 1929 को उत्तरी कश्मीर के बांदीपुरा में जन्मे गिलानी को पाकिस्तान का घोषित रूप से एजेंट माना जाता है। क्योंकि शुरूआती तालीम को छोड़ दें तो स्नातक तक की पढ़ाई इन्होंने ऑरिएंटल कॉलेज लाहौर से की है। जाहिर सी बात है रग रग में पाकिस्तान की भारत विरोधी तालीम भरी पड़ी है। पांच बेटी और दो बेटे (नसीम और नईम) के पिता जनाब गिलानी साहब ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉफ्रेंस के चेयरमेन हैं और तहरीक-ए-हुर्रियत नाम की अपनी पार्टी चला रहे हैं। इनका और इनकी पार्टी का वजूद सिर्फ भारत विरोध पर टिका हुआ है। कश्मीर को भारत से अलग करना और पाकिस्तान की छत्र छाया में आगे बढ़ना इनका सपना है। घाटी में पाकिस्तानी मंसूबा इन्हीं की बदौलत पूरा होता है। गिलानी की अकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, हाल ही में घाटी के बिगड़ते हालात पर प्र्रधानमंत्री ने एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को घाटी में भेजा था, जनाब ने किसी भी तरह की बातचीत से मना कर दिया था। प्रधनमंत्री की मनुहार पर भी नहीं माने। आखिरकार दल के कुछ नुमाइंदे घुटने के बल इनकी चौखट पर नाक रगड़ने पंहुचे। क्योंकि ये सरकार की कमजोरी-मजबूरी से वाकिफ हैं। सरकार इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, ये सरकार का मुस्लिम समीकरण जरूर बिगाड़ सकते हैं। बावजूद इसके सरकार ने इनकी हिफाजत के लिए स्पेशल सिक्योरिटी दे रखी है। अब जनाब कश्मीर की वादियों से निकलकर दिल्ली में अपनी दहशतगर्दी की दुकान खोलने की तैयारी में हैं। तभी तो ‘आजादी द ऑनली वे’ के बहाने अपनी राष्ट्र विरोधी सोच का मंच दिल्ली में तैयार करने का साहस किया है। और जब चोर-चोर मौसरे भाई (अलगाववादी, नक्सलवादी, खालिस्तानी) एक साथ मिल जाएं तब तो खूब जमेगी, कामयाबी भी मिलनी तय है। इस सम्मेलन में जो लोग इकठ्ठा हुए वो सब के सब देश के गद्दार हैं। लेकिन उनकी मुखालफत करने की हिम्मत किस में है? अगर कोई करेगा भी तो इस देश के तथाकथित और स्वयंभू ‘सेकुलरवादी’ उसे साम्प्रदायिक बता डालेंगे। भगवावादी की श्रेणी में रख देंगे। क्योंकि जब सम्मेलन में गिलानी का विरोध करने कश्मीरी पंडित पंहुचे तो सरकार की तरफ से तुरंत बयान आया कि ये भाजयुमो के कार्यकर्ता थे। यानि सरकार ने कश्मीरी पंडितों के मुंह पर ही थूक दिया। देश के इन गद्दारों पर आंखें बंद कर सब चुप्पी साधे रहें, हैरानी होती है। अब अगर मेरे इस लेख को भी पढ़कर तथाकथित देश के बुद्धिजीवी सांप्रदायिक लेख करार दें तो मेरे लिए हैरानी की बात नहीं होगी। क्योंकि ‘इट्स हैपिंड ऑनली इन इण्डिया’।
आदरणीय तिवारी जी की भी तो सुनो और समझो की वामपंथी सोच क्या होती है और वे कैसे सोचते हैं. जरूरी है की हम सब इस विचारधारा के लोगों के सोचने-समझाने के ढंग व दिशा को अछीतारह से जानें, समझें और इनके प्रति अपना व्यवहार सुनिश्चित करें. पर इनकी वरिष्ठ आयु का ध्यान रखते हुए ये भी देखे कि इनका यथासंभव अपमान न हो. इस आयु में नया कुछ समझना बहुत मुश्किल होता है. बदलना भी कहाँ संभव है. जीवनभर जो पढ़ा है, उसके घेरे से बाहर अब इन जैसे मित्रों के बहार आने की आशा व्यर्थ है.
विशाल आनंद जी सही बात को को जान लेना और बतला देना ही काफी नहीं होता. उसे प्रभावी ढंग से और सही बिंदु को उभार कर कहना और न्यूनतम शब्दों में कहना लेखन कला की जान है. आपने साबित किया है कि यह कला ईश्वर ने आपको दी है. लेख की सबसे ऊपर की चार पंक्तियों में आपने वह सब कह दिया जो लम्बे लेख में भे नहीं कहा जा सकता. बहुत सुन्दर, शुभकामनाएं व साधुवाद !
एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल आगे करने की जो सीख आजादी से पहले “एक बाबा” दे गये हैं… उसी का नतीजा है कि तमाचे मार-मारकर, अब सामने वाला गला कटने पर उतारू है…। सिर्फ़ पहली बार तमाचे के बदले आँख नोच ली गई होती तो इतिहास कुछ और ही होता…@ लाजवाब जब है कास ऐसा होता.
आनंद जी आनंद जी……. जब हम अपने ही देश में देशद्रोहियों का विरोध नहीं कर सकते तो दूसरे देश वह भी पाकिस्तान में पाकिस्तान का विरोध भला कैसे? देशभक्त लोग अगर इन देश के दुश्मनों का विरोध करते हैं तो वे हो जाते हैं साम्प्रदायिक। अब तो बात इससे भी आगे निकल चुकी हैं। भारत को तोडऩे की बात करने वाले सुदंर मंच सजाते हैं और भारत की जय कहने वाले जेल की काली कोठरी पाते हैं।
और हां इस देश की राजनीति नपुंसक हो गई है। हद हो गई अभी तक करोड़ों के खर्च पर पाले जा रहे अफजल और कसाब को भी गोली नहीं मारी जा सकी है। और तो और अब तो कसाब न्यायालय के मुंह पर भी थूकने लगा है तब भी करोड़ो की सुरक्षा में रोज चैन से सोता है।
यह तो सर्वभोम सत्य है की यदि लातों के भूत सावित हो रहें हैं तो चिरोरी की जरुरत नहीं .कोई मुरब्बत भी नहीं .देश की अखंडता से बढ़कर कोई व्यक्ति या विचारधारा भी नहीं .
धर्मेन्द्र जी पूछते हैं की आज जो स्थिति है उसमें हम और आप क्या कर सकते हैं. इस में कोई संदेह नहीं की जो हो रहा है वह हमारी सरकार की अनुमति से ही हो रहा है . यदि विगत वर्षों में हमारी आतंरिक तथा विदेश नीतिओं का विश्लेषण करें तो देश का भविष्य अंधकारमय लगता है. हमारे देश में लोकतान्त्रिक शासन है जिसे निर्वाचन के द्वारा बदला जा सकता है. आवश्यकता इस बात की है की देश का मद्धम वर्ग और विशेषतया युवा वर्ग देश पर जो संकट है उस से भली भांति अवगत हो और संकट का निराकरण करने के लिए कटिबद्ध हो. शिक्षित वर्ग में चेतना जगाने का काम तो हम लोग अपनी अपनी saamarthya के अनुसार कर ही सकते हैं . जो कुछ अधिक कर सकते हैं वे अधिक करें . इस काम का विशेष महत्व देश के सूचना तंत्र पर सरकारी तथा देशविरोधी शक्तिओं का लगभग एकाधिकार होने के कारण है
भाई विशाल आनंद के आलेख से कौन असहमत हो सकता है ? लेकिन भारत एक महान धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र सम्प्रभु राष्ट्र है .और पाकिस्तान का जन्म तो विदेशी हुकूमतों के नापाक कूट मंत्रणाओं का दुष्परिणाम मात्र है .पाकिस्तान से भारत की तुलना करना ,भारत का अपमान है .एक हजार सभ्य लोगों के बीच यदि एक छुरेबाज गुंडा आकर खड़ा हो जाए तो आप हिदुतान में भी दम दबाकर भाग जाओगे ,,पाकिस्तान तो शैतानिएत का प्रतिरूप है किन्तु भारत में दिन दहाड़े गावं ,शहर ,गली घाट सभी जगह बीहड़ों से बदतर हालत हैं .अपना घर सुधारो फिर दूसरों पर आक्षेप लगाओ .ये अलगाववादी सिर्फ भारत में ही नहीं हैं ,पाकिस्तान में हर वलूच ,हर पठान .हर सिन्धी .हर पंजाबी अलगाववादी बन गया है .वहाँ कोई राष्ट्रीयता नाम की चीज नहीं .फ़ौज और इस्लाम के दम पर और अमेरिका की शह पर बकरे की माँ कब तक खेर मनाएगी ?
दिल्ली के प्रोफ़ेसर जिलानी के मुँह पर थूकने वाले और कश्मीर के गिलानी पर जूता फ़ेंकने वाले को सम्मानित किया जाना चाहिये… भारत के बचे-खुचे “मर्दों” में इनकी गिनती तो है ही… 🙂
“नागालैण्ड फ़ॉर क्राइस्ट” के साइन बोर्ड भी “इट हैप्पन्स ओनली इन इंडिया” ही हैं… 🙂
एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल आगे करने की जो सीख आजादी से पहले “एक बाबा” दे गये हैं… उसी का नतीजा है कि तमाचे मार-मारकर, अब सामने वाला गला कटने पर उतारू है…। सिर्फ़ पहली बार तमाचे के बदले आँख नोच ली गई होती तो इतिहास कुछ और ही होता…
विशाल जी विडंबना इसी को कहते हैं.
प्रशन ये है की इस तरह के प्रकरणों को रोकने के लिए हम और आप क्या कर सकते हैं. क्या गुस्से को शब्दों मैं उतरना ही काफी है अथवा हम मिलकर कुछ कदम भी उठा सकते है.
आपसे निवेदन है की अपने लेख के माध्यम से समस्या पर दुखी होने की जगह समाधान सामने रखें. क्योंकि आज़ादी के बाद से ही देशभक्त ऐसी घटनाओ पर रोना रो रहे हैं. क्रांति की मशाल किसी न किसी को तो थामनी ही होगी. क्या आप तैयार हैं……….?
धन्यवाद
विशाल जी,
आपका रोष हम सबके साथ साझा है . राजनीति की बिसात पर हमारा देश हमसे छीन कर हमारे ही वोट की ताकत के बल पर सत्ता पाने वालों ने बाजी पर लगा दिया है . और हम अपमानित हो रहे हैं … हर रोज . चूंकि रोष साझा है तो ताकत भी साझी कर अगले चुनाव में जोर अजमायिश की जा सकती है . यही एक रास्ता है हमारे पास …!
श्री आनंद जी ने बिलकुल सही प्रश्न किया है. देश की राजधानी दिल्ली में इस तरह की सभा (दुर्भाग्यपूर्ण आयोजन) हो और सर्कार आँख बंद कर बैठे, शर्म, घोर चिता का विषय है. यह तो पूर्ण रूप से देश द्रोह है और देश द्रोहियों को स्पेशल सिक्योरिटी दे रखी है! …
है किसी में दम….-by- विशाल आनंद
देश के गृह-मंत्री, जिनको कुछ समय से हर तरफ भगवा ही दिखाई देता है, गिलानी का कथन दिल्ली पुलिस को विचारने के लिये कहा है “क्योंकि ‘इट्स हैपिंड ऑनली इन इण्डिया’” !
कुछ करने का दम्म तो है नहीं, फिर जल्दी काहे को ?
– अनिल सहगल –
विशाल आनद जी आपने इन सेक्युलरों को मूंह तोड़ करार जवाब दे दिया है| किन्तु मई जानता हूँ ये लकीर के फ़कीर नहीं सुधरने वाले| अब ये इस सठियाये हुए बुड्ढे गिलानी के बचाव में जरूर कुछ न कुछ बकेंगे|
बहरहाल इस शानदार लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
धन्यवाद्