नींबू के मन के वेदना

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कब तक तुम मुझको दरवाज़े पर लटकाओगे।
मेरे भी कुछ अरमान है,कब तक मुझे सताओगे।।

मैने किए बहुत उपकार बुरी नजरों से बचाया है।
खुद लटक कर मैने ही आज तक बचाया है।।

मै ही था जो मिरचो के संग भी मिल जाता था।
सबको ही मै बुरी नजरो से हर दम बचाता था।।

मैने क्या गुनाह किए हैं,जो मुझे ही फांसी देते हो।
मेरे जैसे और भी है,उनको कुछ नही कहते हो।।

नींबू पानी की जगह,लोग कोल्ड्र ड्रिंक पीते है।
नींबू पानी पीने वालों को हम पिछड़ा कहते है।।

मेरे बिन कोई भी चाट पकोड़ी नही होती है पूरी।
सलाद भी मेरे बिन सबको लगती आधी अधूरी।।

मेरा भी कुछ सम्मान है,मेरा भी कुछ है गरुर।
इसलिए आज हो गया हूं सबकी पहुंच से दूर।।

मै ही दूध को फाड़कर उसके टुकड़े कर देता हूं।
फाड़ कर दूध को पनीर का स्वाद में ही देता हूं।।

बंद करो मुझको लटकाना,ये सलाह सबको देता हूं।
वरना मैं भी अपनी कीमत को आसमान से छूता हूं।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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