—विनय कुमार विनायक
मनुष्य की उत्पत्ति मन से होती
मनुष्य मन की गति से विचरण करता
मनुष्य मन ही मन मनन करता
मनुष्य जहां ध्यान धरता वहां पहुंच जाता!
मनुष्य के मन से अधिक गतिशील
भौतिक जगत में कोई पदार्थ नहीं होता
मगर मन वहीं तक जा सकता
जहां तक आप जा चुके हैं, देख चुके हैं
मन के विचरण की गति सीमित हो जाती
आपके देखने सुनने अनुभूति करने तक ही!
आपका मन सूर्य चन्द्रमा तारों तक जा सकता
क्योंकि आपने उन्हें उगते डुबते टिमटिमाते देखा
किन्तु आपका मन वहां कभी नहीं जा सकता
जहां आप कभी नहीं गए और ना ही आपने देखा!
अगर आप काबा काशी रोम जेरुसलम वेटिकन
अमेरिका अफ्रीका यूरोप आदि स्थान नहीं गए
तो आपका मन उन स्थानों तक नहीं जा पाएगा,
चाहे लाख कटा दें टिकट ट्रेन प्लेन जहाज का
आपका मन आपके पास अटक भटक रह जाएगा!
स्वर्ग नर्क जन्नत दोजख किसी ने नहीं देखा
अगर किसी ने देखा होता
तो पुत्र पुत्रियों कुटुम्ब को अवश्य दिखाया होता!
फिर चल पड़ता स्वर्ग नर्क जाने देखने का सिलसिला
आपका मन स्वर्ग नर्क जन्नत दोजख अवश्य पहुंच जाता
देव पितर अप्सरा हूर परियों से मिलकर आ जाता!
वस्तुत: मन आपके देखे सुने विचारों का संकलन है
विचार है कि हमेशा बदलते रहता आदान प्रदान से
विचार है कि कोई अपना नहीं परम्परा से लिए गए!
अगर आप जन्मना हिन्दू बौद्ध जैन सिख आदि हैं
और धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम ईसाई आदि बन जाते
तो आपके विचार जन्म पुनर्जन्म के बारे में बदल जाते!
किन्तु आपका मन आपके पूर्व से वर्तमान तक के
सारे संचित विचारों को तह तहाकर रखे हुए होता
आप लाख ना चाहे आपका मन तत्क्षण वहां जाएगा ही
जहां तक आप गए या मन को उड़ान दे पाए थे!
मनुष्य भौतिक तत्वों से बना होता
जबकि मनुष्य का मन सूक्ष्म अभौतिक सत्ता
फिर भी मनुष्य मनुर्भव नहीं हो पाता!
क्योंकि मनुष्य मन के ऊपर निर्भर रहता
मनुष्य मन से ऊपर उठ नहीं सकता
मनुष्य मन की कुत्सा से उबर नहीं पाता!
कहते हैं मन में मैल होता
शरीर में मल होता, दिमाग में छल होता
हृदय कोमल होता, आत्मा में आत्मबल होता!
अस्तु मनुष्य मन के उपर अवश्य कोई सत्ता
जिससे तन मन जीवन मरण नियंत्रित होता
जिसे हृदय में स्थित आत्म चेतना कहा जाता!
किन्तु जबतक मनुष्य मन के
निन्यानबे के चक्कर में फंसा होता
तबतक मनुष्य की बदलती नहीं मनोदशा!
क्योंकि मन सभी संकलित विचारों का अवगुंठन
मन समस्त शारीरिक सूचनाओं का संग्रहण कर्ता!
मन में बहुत बनी बनाई अनुभूति होती
मन में आग्रह दुराग्रह पूर्वाग्रह भावना होती
मन में अच्छा बुरा सोचने की शक्ति होती
लेकिन मनुष्य अपने मनोनुकूल आचरण करता!
किन्तु वैज्ञानिक सत्य यह भी है
कि मनुष्य मन में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर
सुख दुःख का अनुभव करता तत्क्षण निर्णय लेकर!
अगर चिकित्सक निश्चेतक सुंघाकर
मन को दैहिक अंगों की सूचना पाने से वंचित कर देता
और शरीर के अंगों को चीर फाड़ काट देता
बिना दर्द का अनुभव कराए ही मन को अमन कर चैन देता!
अगर दूर से कोई मित्र कुटुम्ब प्रेमी आते दिख जाता
तो चित्त आह्लादित मधुर भाव से आप्लावित हो जाता
और वो सामने आते और अपरिचित या शत्रु निकल जाते
तो आह्लादित मन विचलित, सुख तिरोहित हो जाता!
अगर रात्रि या स्वप्न में अप्रिय भूत प्रेत सा दिखता
तो बिगड़ जाती मनोदशा होती हृदय में दारुण व्यथा!
मगर स्वप्न भंग होते ही
रोशनी के आते ही भूत का भ्रम मिट जाता
सामान्य हो जाती है चित्त की भयभीत दशा!
शारीरिक दुःख दर्द पीड़ा अनुभूति मन की वजह से होती
हमारे अंत: बाह्य अंगों की व्यथा स्नायुतंत्र जबतक
मन को नहीं देता मन अंगों की पीड़ा से हमें उबारे रखता!
मनुष्य मन की वजह से ही
सदा सुखी दुखी भ्रमित स्थिति में होता
मनुष्य मन की वजह से सदा चिंतित व्यथित होता
मन है कि मनुष्य में जन्मों-जन्मों तक गुंफित रहता!
अगर आपने सोच रखा है करोड़ों का धन कमाना
तो मन करोड़ों अर्जन के पहले चित्त को शांत नहीं होने देता
इच्छा वासना कामना सबकुछ मन की वजह से होता!
अगर आपने बम्बई की मिठाई खा ली
मगर चीन के चमगादड़ का सूप, मानव का भ्रूण नहीं चखा,
तो यकीन मानिए आपका मन बम्बई का मिठाई खाने तो जाएगा
मगर चमगादड़ का सूप व मानव के भ्रूण का व्यंजन खाने कभी
चीन नहीं जाएगा क्योंकि आपके मन में नहीं है वैसी कोई अनुभूति!
अस्तु इंद्रियों को जीत लो, भटकते मन को मारो,
आठ घंटे में कमाए धन के तत्काल क्षय और बदहाली को
कौड़ी समझ कर बिना विलंब किए आठ घंटे में ही बिसारो!
धन शोक प्रियजन शोक मिटाने में जितना देर करोगे,
उतने तिल तिल चिंता करके चिता की ओर बढ़ोगे शीघ्र मरोगे!
एकबार सोच लो जो गया सो मेरा नहीं था
जो पाया वो भी मेरा नहीं, जो नेकी किया उधार दिया,
लौटकर नहीं आया,चोर डाकू ले गया, उसे दरिया में डाल दो!
चित्त चिंता रहित निश्चिंत हो जाएगा
जीवन आराम से बीतेगा, राम भी मिल जाएगा!
अन्यथा चाहत की पूर्ति में मरोगे मारोगे
दूसरों को या अपनों की जान गवाओगे
फिर भी इच्छा वासना कामना चाह पूर्ति
जन्मों-जन्मों तक कभी नही कर पाओगे!
लाख मनन जतन प्रयत्न कर लो
अपने पाप दुर्व्यसन दुष्कर्म के लिए
दूसरे को कसूरवार कभी नहीं ठहरा पाओगे!
अस्तु अपने मन के बाहर निकलो
अपने मन से बाहर निकलना ही है
बुद्धत्व को पाना चिंतामुक्त बुद्ध हो जाना
मन के पार उतर जाना भव सागर तर जाना
जितेन्द्रिय जिनत्व को पा लेना महावीर बन जाना!
बुद्धत्व जिनत्व कृष्णत्व
क्राइस्ट खुदाई को पा लेना
मन के पार उतरकर आत्मचेतना
परम तत्त्व परमेश्वर को पाना है!
—विनय कुमार विनायक