पाकिस्तान पर नहीं वामिस्तान पर हो कार्यवाही

uri-1

मृदुल चंद्र श्रीवास्तव

वर्त्तमान परिस्थिति में यदि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सूक्ष्म अवलोकन करें तो आप देखेंगे कि देश के लिए आतंकवाद कितना गंभीर विषय बन चुका है l बात केवल अस्मिता के चोटिल होने की नहीं,बल्कि अन्य कई गंभीर पक्ष और भी हैं जो देश के सवा सौ करोण लोगो को परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं,चोटिल और कुंठित करते हैं l ये प्रभाव हम पर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है,इसके अतिरिक्त ये कि आतंकवाद का प्रभाव समय के साथ साथ अपने प्रभाव क्षेत्र को ही नहीं अपितु आतंक की गुणवत्ता को भी बढ़ाते जा रहा है ,जो धीमे-धीमे बिना कोई शोर गुल किये हमारे बीच पल,बढ़ रहा है,और हमें इसके दुष्प्रभावो का अनुमान ही नहीं लग रहा l

प्रभाव/कारण,

— सामाजिक दायित्व का पतन, आक्रोश,
— समाज का दो ध्रुवो में विघटन,
— एक दूसरे के प्रति भय की भावना,
— आतंक समर्थको का मीडियाकरण,
— विकास, कल्याण आदि से भटकाव,
— युवाओ का आतंकियों से संवाद,
— शोसल मीडिया बेहतर मंच,
— क़ानून व्यवस्था का भय समाप्त,
— कुछ राजनेताओ द्वारा तुस्टीकरण,
— विदेशी मूल के कुछ लोगो द्वारा प्रायोजित,
— अखण्डता एवं बन्धुता का ह्रास,
— कुछ तत्वों को स्वलाभ की परम इच्छा,

गौर करने योग्य बात ये है कि उपरोक्त विन्दुओं में समस्या-कारण की बात अपने भौगोलिक क्षेत्र के दायरे में ही की गई है और ये हमारे लिए पहली प्राथमिकता भी है l बुजुर्गो ने कहा है—

बुरा जो देखन में चला…… जो दिल खोजो आपना मुझसे बुरा न कोय l

इसका ये अर्थ नहीं कि आतंक की जड़ हम में है बल्कि भाव यह है कि यदि स्वयं को स्वस्थ रखा जाय तो बीमारिया खुद बाखुद दूर रहती है l
अब देखना ये है कि हमारे भीतर वो कौन से कमजोर बीमार पक्ष है जो कि ऐसे लोगो को बढ़ने का वातावरण बना रहे ?

गौर करे और भाव को समझें —–

हर आतंकी घटना अमानवीय पीड़ा,निर्दयता का ऐसा साक्षात्कार कराती हैं कि एक मध्यम वर्गीय साधारण सी सोच रखने वाले व्यक्ति के भीतर गहरा आक्रोश और खीज उत्पन्न करती है, ध्यान रहे कि इस स्थिति में जो कोई भी व्यक्ति होता है वो अब स्वाभाविक रूप से इस आक्रोश और झुझलाहट से मुक्त होने के लिए, अपनी भड़ास के रूप में इस आक्रोस को बाहर निकालने का यत्न करता है और फिर शोसल मीडिया इस हेतु बिलकुल उपयोगी और उचित स्थान है क्योंकि यहाँ आप की बात का समर्थन किया जाएगा और चर्चा होगी, क्रिया की और भी गंभीर अंदाज में प्रतिक्रया की जाएगी वजह ये है कि समाज का एक बड़ा वर्ग इससे गुजर रहा होता है l अब धीरे धीरे इस मुद्दे का ज्वार मन में शांत होने लगता है और फिर हम सब भूल भाल कर अगले आतंकी हमले तक शांत हो जाते है l

खैर यहाँ देखना दिलचस्प होगा कि लोगो के आक्रोश के गुबार को अपनी भड़ास को किसके सर फोड़ा जा रहा सरकार एक वजह है , में इससे अलग और तत्वों पर ध्यान लाना चाह रहा l
इस सूची में पाक के बाद कश्मीरी और पुनः अपने अन्य महत्व के भू भाग के लोग जैसे बौद्धिक महाविद्यालय एवं इस आतंक को मूक समर्थन देने वाले कुछ लोग,
आतंक की वजह को खुद के भीतर से निकाल फेकने की बजाय इसका जिम्मेदार अमेरिका और होने वाले घरेलू झगड़ो को बताने वाले चंद संगठित लोग l में इनके द्वारा दिए गए तर्क को सिरे से खारिज नहीं करता मानता हूँ कश्मीरियो द्वारा सेना के विरोध किये जॉने के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं लेकिन फिर वही बात आती है कि सर्वप्रथम अपने भीतर सुधार हो एवं मनगढंत ख़्वाब कुरीतियो कुप्रथाओ को तत्काल दूर किया जाय l

किंतु विडम्बना ये है कि सेकुलरो के झूठे रूप धारण करने वालो और नौनिहाल बौधिक केंद्र के बुद्धिजीवियों को खुद के भीतर कोई वजह नहीं दिखती सारा का सारा दोष सरकार और सेना का है ?
आप को क्या लगता है कि ये लोग इतने भोले हैं कि
दीपावली एवं होली में पर्यावरण के लिए हो हल्ला करते है किंतु घुटनो तक सडको पर बहती खून की धार इन्हें इकोफ्रेंडली मालूम होती है ?
बुरहान वाणी, अफज़ल,याकूब इनके आदर्श नहीं पर कार्य क्षेत्र के केंद्र जरूर हैं ,अन्यथा क्या सम्बन्ध है वजह क्या है ? इनकी क्या पीड़ा है ?
सेना स्थानीय निवासियों के साथ दुर्व्यवहार, दुराग्रह का भाव रखती है ये बात इन्हें दिखती है फिर सेना पर अमानवीय कृत्य को अंजाम देने वालो का नाम क्यों नहीं लिया जाता ? ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती,ये स्वतः मूर्ख है यदि इन्हें लगता हो कि वे लोगो को मूर्ख बना लेंगे,
कश्मीरी पंडितों की पीड़ा के समय इनकी संवेदनाएं गर्त में क्यों चली जाती है ? यदि आप मानवता को सबसे बड़ा मज़हब मानते है और सच्चे सेकुलर है तो दोनों पक्षो का समालोकन करते l
कैसे सत्य माने आप के इस क्षद्म रूप को कि आप के चिंतन संहिता में कश्मीरियो के हित हैं किंतु आये दिन आतंक का शिकार हो रही सेना आप को नहीं दिखती और दिखी भी तो इस पर जश्न मनाएंगे l
छुपा क्या और बचा क्या,जो अब भी देश में बैठ कर सेकुलर के क्षद्मावरण में छुपे कुछ घोर सांप्रदायिक लोग इस मूर्खता का समर्थन करें l

वो क्षद्म सहिष्णु,जो हर आतंकी पर कार्यवाही किये जाने के बाद बेवा हो जाने जैसी प्रतिक्रिया दे तो फिर आज जब 18 सैनिको को भून दिया गया, तो इन्हें क्यों साँप सूंघ गया है ? क्या मानवता और मानवाधिकार केवल आतंकी एवं अपराधियो के ही होते हैं ? उस अमानवीय परिस्थिति को झेलते हुए वो देश के सैनिक, क्या मानवाधिकारों की सूची से बाहर है ?

कदाचित नहीं, और यहीं पर ये लोग बेनकाब हो जाते हैं l ऐसे लोगो को शिक्षण संस्थानों को शिक्षा के मंदिर कहे जाने पर तो आपत्ति होती है किंतु जब बुरहान वाणी की मृत्यु के बाद मृतक का पिता उसे जन्नत नसीब होने की बात करता है तो इस पर ये क्यों चुप रहते है ?

यदि इन प्रश्नों का दो पंक्ति में उत्तर दू तो ये बस मामूली प्यान्दे है जिसका रिमोट कंट्रोल विदेशो से संचालित होता है l ये उन्ही की फेकि रोटियों पर जिंदा हैं l अथवा तुस्टीकरण और स्वाहित की कीमत पर मातृ भूमि से सौदा कर चुके लोग है, इसलिये उनपर कार्यवाही करने से कोई बेवा हो जाता है तो कोई अनाथ l

कार्यवाही का श्री गणेश —

जी बिल्कुल, निःशंकोच,बेवाक,त्वरित कार्यवाही हो ऐसे तत्व जहां कही भी हो उन पर कड़ी नजर रखी जाए,एवं शोसल मिडिया पर आये दिन पाक को पैतृक संपत्ति बताने वाले लोगो की गंभीरता से खबर ली जाय,ये छोटी घटनाएं कितने बड़े परिणाम खड़ी कर सकती है,ये बात किसी से नहीं छुपी है l

देश और सैनिको की अस्मिता पर जो तृण मात्र भी आघात हो,तो ऐसे लोगो की ईंट से ईंट बजनी चाहिए,इन्हें मालूम हो वो सैनिक जो देश की रक्षा अपने प्राण दे कर करता है उसके सम्मान की रक्षा करना हमें भी आता है l ये कार्य सर्वप्रथम हो,पाक का झंडा और नारा तो दूर की बात, जिसे भी इस दोजख की याद भी आ जाय तो उसे बिल्कुल इल्म भी करा दिया जाना चाहिए l

इतने भर से ही हमारी आधी समस्या ख़त्म हो जाएगी और आधी से फिर एक हाथ से भी लड़ लेंगे l

—भारत हमारी शान–
!! सिपाही देश का अभिमान !!
!! जय हिन्द !!

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,673 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress