डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पाकिस्तानी संसद की विदेशी मामलों की स्थायी समिति की सिफारिश को यदि नवाज़ शरीफ सरकार सचमुच मान ले तो चमत्कार हो जाए। इस समिति ने कहा है कि पाकिस्तान सरकार उन आतंकवादी गिरोहों को ज़रा भी प्रोत्साहित न करे, जो कश्मीर के नाम पर आतंकवाद फैलाते हैं। इस संसदीय समिति की अध्यक्षता अवैस अहमद लघारी कर रहे हैं। अवैस, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फारुक लघारी के पुत्र हैं। फारुक लघारी जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ थे और वे लंबे समय तक पीपल्स पार्टी के सदस्य रहे। अवैस लघारी की इस रपट का समर्थन मियां नवाज़ की मुस्लिम लीग और आसिफ ज़रदारी की पीपल्स पार्टी भी कर रही है। अवैस लघारी मुस्लिम लीग (नवाज) के सांसद हैं।
इस रपट में सिर्फ कश्मीर ही नहीं, संपूर्ण भारत-पाक संबंधों पर भी विचार किया गया है। कश्मीर मुद्दे को बराबर उठाए रखने की वकालत इस रपट में जरुर की गई है लेकिन उसके लिए हिंसक रास्ते अपनाने से परहेज़ करने की बात कही गई है। इस लघारी रपट की मैं तारीफ इसलिए करुंगा कि पहली बार पाकिस्तानी संसद ने यह माना है कि पाकिस्तान की सरकार हिंसक गतिविधियों को प्रोत्साहित करती रही है। पठानकोट-कांड के बाद मियां नवाज़ शरीफ ने जिस साफ़गोई से पाकिस्तान की भूमिका स्वीकार की थी, यह रपट उसी का अगला कदम है। अपनी गलती कुबूल करने के लिए असाधारण साहस की जरुरत होती है। जिस गलती को कुबूल किया गया है, आशा है कि उसे अब ठीक भी किया जाएगा।
जहां तक कश्मीर का सवाल है, पाकिस्तान मांग करता रहे कि भारतीय कश्मीर को आजाद किया जाए और भारत मांग करता रहे कि पाकिस्तानी कश्मीर उसे वापस किया जाए। यह पुराना कर्मकांड बराबर चलता रहे। इसमें कोई हर्ज नहीं है लेकिन इस संसदीय समिति ने भारत-पाक व्यापार, नदियों के पानी, यात्रियों के वीज़ा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा आपसी संवाद को बढ़ाने की भी अपील की है। समिति की राय यह भी थी कि दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बढ़ना चाहिए और सारी बातचीत ठोस होनी चाहिए याने उससे नए रास्ते खुलने चाहिए। इस रपट पर अमल करने का गर्मागर्म मौका इसी वक्त है। यदि पाकिस्तान सरकार एक-दो हफ्तों में ही पठानकोट कांड के षडयंत्रकारियों को पकड़ ले तो सार्थक संवाद होने में कितनी देरी लगेगी?