अविकसित मानव बच्चों की सच्ची कहानियां ( 10 )
डा. राधेश्याम द्विवेदी
ओक्साना की कहानी ना तो डरी सहमी लड़की का है और ना तो किसी दोषी लड़की की है, अपितु एक उपेक्षित अथवा निष्कासित लड़की की कहानी है। वह यूक्रेन के नोवाया बलागोवेसचेनका के अपने पारिवारिक घर में रहती थी। उसके घर के पीछे एक बगीचा औेर नहर भी था। उसके शराबी माता पिता उसे पालने में असमर्थ थे। जब वह तीन साल की थी तो उसके माता पिता उसे घर से निकाल दिये थे। वह गरीबी से युक्त उस इलाके में सड़कों पर घूमती थी । उसके घर के पीछे एक आवास था जहां जंगली कुत्ते रहते थे। वह उस जंगली तथा खतरनाक माहौल में अपना 5 साल का समय व्यतीत की थी। वह उन कुत्तो के साथ रह कर ठीक उसी तरह का आचरण व व्यवहार सीख गयी थी।
जब उसे बचाने के लिए एक बचाव दल आया तो प्रथम प्रयास में कुत्ते उस दल पर हमला कर दिये। बचाव के कार्यो से ऐसा लगता था कि उसके बचाव के बजाय उसका मजाक बनाया गया है। जब उसे 1991 में पकड़ा गया तो उसकी उम्र 8 साल की हो गयी थी। उस समय वह चौराहों पर गुर्राई , भौकी तथा जंगली कुत्ते की तरह दुबक कर बैठ गयी थी। वह अपने भोजन को पहले उसका गंध सूंघती , परोसने वाले की आवाज की पहचान करती फिर उसे खाने का कोई निर्णय लेती थी। वह केवल दो प्रकार का निर्णय ले सकती थी हां या नहीं। कोई चीज पसन्द आया तो वह उसे मान लेती अन्यथा ठुकरा देती थी।
जब ओक्साना को खोजा गया तो उसमें सामान्य मानवीय भावनात्मक कौशल के लक्षण नहीं मिले। वह बौद्धिक और सामाजिक उत्तेजना से वंचित कर दी गयी। वह जिन कुत्तों के साथ रह रही थी उनसे उसका भावनात्मक समर्थन था। सामकालिक संदर्भों में उसे भाषागत कौशलता के सुधारने में कठिनाई आ रही थी। जग में वह पहली बार 1991 में देखी गयी थी। वह बहुत मुश्किल से बात कर सकती थी।
ओक्साना के 26 वर्ष के होने पर 2010 में मानसिक रूप से अक्षम लोगों के चिकित्सालय के सुधारगृह रखा गया था जहां वह गायों के देखभाल में मदद करती है। अब उसे कुछ तसल्ली मिल तो रही थी, परन्तु वह यह भी अभिव्यक्त करती थी कि जब वह कुत्तो के सानिध्य में रह रही थी तो ज्यादा प्रसन्न थी।