डा. राधेश्याम द्विवेदी
पंचामृत का अर्थ है कि, पाँच तरह के अमृत का मिश्रण। यह मिश्रण दुग्ध, दही, घृत (घी), चीनी और मधु मिलाकर बनाया गया एक पेय पदार्थ होता है, इसलिए इसे पंचामृत कहते है, जो हव्य-पूजा की सामग्री बनता है, और जिसका प्रसाद के रूप में विशिष्ट स्थान है। इसे बहुत ही शुभ माना जाता है और ये पीने में भी बहुत स्वादिष्ट होता है. इसी से भगवान का अभिषेक भी किया जाता है। भारतीय सभ्यता में पंचामृत का जो महत्त्व बताया गया है, वह यह है कि, श्रृद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके पान से मानव जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष की प्राप्ति करता है। वैसे इसे हम कभी भी बना सकते है जैसे अगर घर में कोई पूजा है तो आप इसे प्रसाद में बना सकते है और ये बनाना भी बहुत आसान होता है. तो आइये हम पंचामृत बनाते है. सामग्री का महत्त्व:-पंचामृत निर्माण में प्रयोग की जाने वाली सामग्री किसी न किसी रूप में आत्मोन्नति का संदेश देती है-
1.दूध – दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुद्धता का प्रतीक है, अर्थात् हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए।
2.दही – यह दूध की तरह सफ़ेद होता है। लेकिन इसकी विशेषता यह है कि, यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि, पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएँ और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएँ।
3. घी – स्निग्धता और स्नेह का प्रतिक घी है। स्नेह और प्रेम हमारे जीवन में स्नेह की तरह काम करता है। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हों, यही भावना है।
4. शहद – शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है। शहद इसका ही प्रतीक है।
5. शक्कर – मिठास शक्कर का प्रमुख गुण है। शक्कर चढ़ाने का अर्थ है कि, जीवन में मिठास व्याप्त हो। मिठास प्रिय शब्द बोलने से आती है। प्रिय बोलना सभी को अच्छा लगता है, और इससे मधुर व्यवहार बनता है।
हमारे जीवन में शुभ रहे, स्वयं अच्छे बनें और दूसरों को भी अच्छा बनाएँ।
पंचामृत का पात्र :-तांबे का एक छोटा-सा पात्र जिसमें पानी भरा होता है और जो पूजाघर में रखा होता है। इसमें एक तांबे की ही चम्मच होती है। यह इसलिए पानी से भरा होता है ताकि व्यक्ति इस पानी को प्रतिदिन पीएं। इसके जल के कई प्रकार के लाभ हैं। सबसे बड़ा लाभ यह कि आप यह जल पीते रहेंगे, तो जीवन में कभी भी सफेद दाग की बीमारी नहीं होगी। चरणामृत और पंचामृत पीने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पंचामृत का अर्थ है ‘पांच अमृत’।
चरणामृत(पंचामृत) लेने के नियम :- चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।
चरणामृत(पंचामृत) का लाभ :- आयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है। पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है। पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। पंचामृत उसी मात्रा में सेवन करना चाहिए, जिस मात्रा में किया जाता है। उससे ज्यादा नहीं।
ध्यान देने वाली बातें :-पंचामृत जिस दिन बनाए उसी दिन खत्म कर दे. अगले दिन के लिए न रखे.अगर तुलसी के पत्ते और गंगाजल किसी वजह से नहीं है तो आप उनके बिना भी बना सकते है. तुलसी के पत्ते पवित्र होते है इसलिए डाले जाते है और उससे स्वाद और बढ़ जाता है. गंगाजल भी बहुत शुभ होता है इसलिए सारे शुभ काम में हम इसका इस्तेमाल करते है.