परम्पराएँ प्रसारण की (3) पी सी चटर्जी

0
183

on airबी एन गोयल

“चटर्जी साहब, देख भाल कर काम कीजिये ऐसा न हो नौकरी से हाथ धो बैठे”

“प्रसाद साहब, अपनी चिंता करो – आप पुलिस वाले हैं. यहाँ के बाद आप को नौकरी की मुश्किल पड़ेगी. मेरी फ़िक्र मत करो, मेरा स्तीफा हमेशा मेरी जेब मैं रहता है, आज भी तीन युनिवार्सिटी की वाईस चांसलरशिप की ऑफर मेरे पास है.”

‘अरे रे आप तो बुरा मान गए – मैं  तो मजाक कर रहा था’

‘परन्तु प्रसाद साब मैं बिलकुल सीरियस हूँ …….’

 

ये हैं आपात काल में सूचना प्रसारण मंत्रालय में चल रही एक विशेष मीटिंग में सह सचिव आर एन प्रसाद IPS और आकाशवाणी के तत्कालीन महानिदेशक पी सी चटर्जी के बीच बातचीत के अंश. पूर्णतः सत्य.

 

आपात काल एक ऐसा युग था जब हर आफिस में, संस्था में, मीटिंग में, पान की दूकान पर, चाय के खोखे पर, थोडा भी भ्रम होने पर पुलिस को डंडा चलाने की छूट दे दी गयी थी. हर किसी को पुलिस वाला एक जासूस लगता था. जनता की हंसने हंसाने, तंज़ कसने और मजाक करने की आदत छूट गयी थी. लोग कान में भी बात करते डरते थे. आर एन प्रसाद अगर ऐसा बोल रहे थे तो उन के पास यह कहने के अधिकार थे. लेकिन इस का सीधा उत्तर देने का साहस केवल पी सी चटर्जी के ही पास था.

आकाशवाणी के महानिदेशक का पद भारत सरकार के सह सचिव के समकक्ष माना गया है.  प्रशासनिक होते हुए भी यह पद सांस्कृतिक अधिक है. इसी कारण से इस पद को सुशोभित करने वाले लगभग सभी व्यक्ति कला, साहित्य, संगीत आदि के मर्मज्ञ रहे हैं. वी के नारायण मेनन, अशोक सेन, कृष्ण चन्द्र शर्मा भीखू, पी सी चटर्जी, सिविल सर्विस के लोगों में स्व० जगदीश चन्द्र माथुर ICS का नाम प्रमुख है जब की एस एस वर्मा, सुरेश माथुर भी कम नहीं थे. जगदीश चन्द्र माथुर यद्यपि ICS थे लेकिन साहित्यकारों के श्रेणी में भी अग्रगण्य थे. उन्होंने हिंदी ही नहीं सभी भाषाओँ में रेडियो नाटक नाम से एक नयी विधा को जन्म दिया. उन का लिखा नाटक संग्रह ‘भोर का तारा’ इस विधा का सूत्रपात माना जाता है. (बाद में हमारे घनिष्ठ मित्र डॉ जय भगवान गुप्ता ने इस विषय पर पीएच०  डी० की). जिला बुलंदशहर के जेवर नाम के गाँव में जन्मे माथुर साब ने 1939 में अंग्रेजी साहित्य में इलाहबाद विश्व विद्यालय से MA में प्रथम स्थान प्राप्त किया और 1941 में ICS.  जेवर गाँव ने आकाशवाणी को दो और विभूतियाँ दी – स्व० डॉ राजेंद्र  महेश्वरी और स्व० श्री सुरेश गुप्ता. गुप्ता जी मेरे घर के सदस्य की तरह थे उन का निधन अभी अगस्त 2015 में हुआ. इन का मेरे बड़े पुत्र पुनीत के विवाह और छोटे पुत्र अमित के कनाडा विस्थापन में विशेष योगदान था. महेश्वरी जी दिल्ली केंद्र पर मेरे रूम पार्टनर थे.

हम आज बात कर रहे है स्व० श्री पी सी चटर्जी की.  

आकाशवाणी को एक नयी दिशा, साहस और बौद्धिक स्तर देने वाले महानिदेशक श्री पी सी चटर्जी (प्रभात चन्द्र) का नाम प्रसारण के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा. इन का घरेलु नाम था (Tiny) टाइनी – मित्र मंडली इन्हें इसी नाम से पुकारती थी. इन्होनें प्रसारण का अपना जीवन समाचार प्रभाग से प्रारम्भ किया था. समाचार प्रभाग से ये सीधे केंद्र निदेशक चुने गए थे …..बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि ये चटर्जी अवश्य थे लेकिन ये पारंपरिक बाबु मोशाय / भद्र पुरुष नहीं थे. इन्हें बंगला बिलकुल नहीं आती थी. ये ठेठ पंजाबी थे. पंजाबी बोलने वाले, उर्दू लिखने पढने वाले और अंग्रेजी में भाषण देने वाले प्रोफेसर थे. इन के पिता लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे थे. ये लाहौर में पैदा हुए, वहीँ पढ़े लिखे और वहीँ से अपना जीवन शुरू किया. यह एक ऐसा विरोधाभास था जिस का इन्होने प्रायः आनंद भी उठाया.

 पहला महत्व पूर्ण विरोधाभास –

अप्रैल 1967 देश के चौथे चुनाव संपन्न हुए. लोकतंत्र के 20 वें वर्ष में चुनाव  परिणाम ने देश के राजनैतिक कैनवास पर सब उल्ट पुलट कर दिया. कांग्रेस की सीटें 364 से घटकर 283 रह गयी. इसी तरह राज्यों में भी दृश्य पलट गया बिहार, केरल, उड़ीसा, मद्रास, पंजाब उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गैर कांग्रेसी सरकारें बन गयी. पश्चिमी बंगाल में सबसे अधिक खराब स्थिति बनी. पहली बार वाम पंथी दलों को सत्ता सुख मिला यद्यपि उन में परस्पर झगडे चलते रहे. राज्य में राजनीतिक अस्थिरता चलती रही. आठ महीनों के लिए बांग्ला कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड फ़्रंट ने सत्ता संभाली इसके बाद तीन महीने प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक गठबंधन ने राज किया फिर फ़रवरी 1968 से फ़रवरी 1969 तक एक साल राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा. राज नेता प्रायः अपनी असफलताओं को मीडिया के नाम मढ़ते रहते हैं – उस समय सरकारी मीडिया के रूप में आकाशवाणी एकमात्र संस्था थी. नयी सरकार ने केंद्र से कलकत्ता रेडियो स्टेशन के डायरेक्टर को बदलने की मांग की. केंद्र ने पी सी चटर्जी को पोस्ट कर दिया. उस समय राज्य के श्रम मंत्री थे लाहिड़ी साब, उन्होंने आकाशवाणी से अपना सन्देश प्रसारित करना चाहा. चटर्जी साब ने नियमानुसार उन से सन्देश का आलेख माँगा, आलेख आ गया. वह निश्चित रूप से बंगला भाषा में होना था. चटर्जी साब ने केंद्र के एक स्टाफ मेम्बर को यह उत्तरदायित्व सौंप दिया कि वे केंद्र निदेशक के लिए हर बंगला आलेख को पढ़ें और उस के अंग्रेजी अनुवाद के साथ निदशक को दें – ये स्टाफ सदस्य बरुन हालदार थे जो बाद में दिल्ली में अंग्रेजी के समाचार वाचक बने और मेरे रिटायरमेंट तक मेरे अच्छे मित्र बने रहे. वे एक बहुत ही अच्छे इंसान थे. बरुन ने निदेशक को बताया कि आलेख में एक वाक्य है –“अभी तो हमने जो कुछ भी लिया बैलट से लिया अब अगर ज़रूरत पड़ी तो हम बुलेट से भी ले सकते हैं”.

 

यह वाक्य वास्तव में विचलित करने वाला था. चूँकि एक मंत्री के प्रसारण का मामला था तो चटर्जी साब ने इस आलेख को महा निदेशालय को भेज दिया. उस समय कोई फेक्स, ई – मेल तो था नहीं फोन सुविधा भी उतनी अच्छी नहीं थी. अतः डाक से आने जाने में समय लगता था. म. न. ने इसे सूचना प्रसारण मंत्री को भेज दिया और अन्ततः लाहिड़ी साहब का यह प्रसारण नहीं हो सका. इस पर उस समय लोक सभा में काफी हंगामा हुआ. इस का परिणाम हुआ कि सू प्र मंत्रालय ने प्रसारण की मार्ग दर्शिका के रूप में नौ सूत्रीय आकाशवाणी प्रसारण संहिता (AIR CODE) बना दी जो अभी भी जीवंत होनी चाहिए. यह घटना ज्यों की त्यों स्वयं चटर्जी साब ने 1968 में हमारे अनुरोध पर हमारी स्टाफ ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की क्लास में सुनायी थी. उस समय वे दिल्ली में विदेश प्रसारण सेवा के निदेशक थे, बाद बरुन से मित्रता हुई तो उस ने इस की पुष्टि की थी. …..       (क्रमशः …. ….. चटर्जी, अवस्थी जी और मैं)

Previous articleइतिहास की पुनरावृत्ति
Next articleएनआईटी श्रीनगर : देशभक्तों पर लाठियों का मतलब?
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,677 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress