महत्वपूर्ण लेख

भाग (दो) -तमिलनाडु में हिन्दी प्रचार रणनीति। डॉ. मधुसूदन

सारांश:
***हिन्दी प्रचार हो; पर संवेदनशीलता सहित; यही कुशलता कसौटी है।***
***तमिलनाडु का राजनैतिक इतिहास कट्टर हिंदी विरोधी रहा है।***
***पर, आज तमिल नाडु परिवर्तन चाह रहा है। ***
***राज्य शासित बोर्ड की कुछ शालाएं अनिवार्य हिंदी शिक्षा की माँग उठा रही हैं।***
***हिन्दी शिक्षा को, तमिलों द्वारा, अंतःप्रेरित किया जाए।***
***न्यूनतम विरोध होगा, जब तमिल विद्वान, तमिल छात्र को, तमिल माध्यम से हिन्दी पढाएंगे।*****
***हिन्दी की वर्चस्ववादी, विचारधारा में विश्वास करनेवाले दूर रहें। ***
***अति उत्साही भी काम बिगाड सकते हैं।***

(एक) अनुरोध; आज के आलेख का अध्ययन करें :
यह आलेख शासन के, रणनीतिकारों की दृष्टि से लिखा जा रहा है। इस लिए, पाठक आलेख का अध्ययन करें, मात्र दृष्टिक्षेप करना पर्याप्त नहीं। बहुत तोल-माप कर, आलेख बनाया है।फिर भी शीघ्रता के कारण, मानव-सहज, दोष रह सकते हैं।हिंदी हितैषी सहृदयी पाठकों से प्रार्थना है, कि, रणनीति को पढने के पश्चात सुधार अवश्य दर्शाएँ।

(दो) दूरदर्शी रणनीति:
जानता हूँ, कि, शासन के सामने असंख्य समस्याएँ है। फिर भी निर्देश करना कर्तव्य समझकर प्रस्तुति कर रहा हूँ। विश्वास भी है, कि, उचित ध्यान देकर आलेख का सार आत्मसात किया जाएगा। और संभवतः उपाय भी विचारा जाएगा; अतः यह प्रयास। कुशल रणनीतिकार सभी घटकों के तारतम्य का विचार कर नीति अपना सकता है।

(तीन) तामिलनाडु का इतिहास, कट्टर हिंदी विरोधी:
किसी भी कुशल रणनीतिकार को जान लेना अनिवार्य है, कि, तमिलनाडु का राजनैतिक इतिहास कट्टर हिंदी विरोधी रहा है। इस राज्य का नेतृत्व ही, १९६५ में, हिंदी के कट्टर विरोध और तमिल भाषा की अनुकूलता के आधार पर, चुनाव जीतकर शासन में आया था।करुणानिधि ने, डी. एम. के. (द्रविड मुन्नत्र कळगम) पक्ष की पहचान ही, हिंदी विरोध और तमिल का पक्ष लेकर बनाई थीं।

(चार)संवेदनशीलता से व्यवहार किया जाए:
अर्थात तमिल भाषा भक्ति = डी. एम. के., ऐसा समीकरण समझा जाता रहा है। फिर जयललिता ने भी हिंदी विरोध अबाधित रखा था। वैसे तो हिन्दी-तमिल दंगों के कारण ५०० तमिल प्रजाजन मृत्यु-मुख में जा चुके थे। इस लिए संवेदनशीलता से व्यवहार किया जाए। और चद्दर देखकर पैर फैलाए जाए। हिन्दी की बाँसुरी तो बजे, पर अपनत्व और संवेदनशीलता भुलाए बिना। यही कुशलता की कसौटी है।

(पाँच) आज पवन की दिशा :
उसी तमिल नाडु में आज एक बडे परिवर्तन का पवन बह रहा है। अब राज्य शासित बोर्ड की शालाओ में अनिवार्य हिंदी शिक्षा के लिए माँग उठ रही है। और ऐसी माँग बढती भी जा रही है; इतिहास करवट लेता दिख रहा है। ऐसा समाचार है, कि, तमिलनाडु में, अभिभावकों का बडा संगठित समूह, साथ राज्य शासित बोर्ड की शालाएँ, दोनों मिलकर न्यायालय मे प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर चुके हैं। इस प्रार्थना पत्र द्वारा उन्होंने २००६ की तमिलनाडु शासन की आज्ञा को चुनौती दी है; जिस आज्ञा द्वारा छात्रों को दसवीं कक्षा तक तमिल भाषा अनिवार्य रूपसे पढनी पडती है।
दशकों की हिन्दी विरोधी राजनीति के पश्चात तमिल नाडु अब पूरा चक्कर घूम चुका है। और, हिन्दी विरोधी मानसिकता का घाटा तमिल बुद्धिमानों के ध्यान में भी आ रहा है; और वें अब परिवर्तन चाह रहे हैं।
फिर भी ऐसी जागृति, अनुमानतः, सर्व साधारण जनता तक पहुंचने में समय लग सकता है।प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।

जानकार जानते हैं कैसे तमिलनाडु नें स्वातंत्र्य पूर्व और पश्चात भी हिंदी विरोधी आंदोलन चलाए थे।
१९३८ में राजगोपालाचारीजी ने हिंदी शिक्षा शालाओ में अनिवार्य करने का शासकीय आदेश दिया था।
और रामस्वामी (पेरियार)और उनके हिंदी विरोधी अनुयायियों ने उसका प्रबल विरोध किया था।

(छः) हिन्दी शिक्षा को, अंतःप्रेरित करें:
संक्षेप में, इसलिए, तमिलनाडु पर, हिंदी थोपी ना जाए। पर हिन्दी शिक्षा को, अंतःप्रेरित किया जाए, प्रोत्साहित किया जाए, पर थोपा ना जाए। अंतःप्रेरित होगी तो प्रेरणा चिरजीवी होगी। अंतःप्रेरित से अभिप्राय है, कि, प्रेरणा को तमिलनाडु की प्रजा की ओर से जगाया जाए। ऐसी प्रेरणा चिरजीवी होगी। और ऐसी प्रेरणा जगाने में तमिल बुद्धिमानों का बडा योगदान हो सकता है।

हिंदी की उपयुक्तता तमिल बुद्धिमानों की समझमें आ रही है। इसी का आधार लेनेपर, हिंदी का फैलाव कठिन नहीं होगा। यह, वास्तविकता जो, तमिल बुद्धिमानों की समझमें आ ही रही है; उसी की अभिव्यक्ति है; अभिभावकों के समूह और शालाओं का मिलकर न्यायालय में शासन के आदेश को चुनौती देना।

(सात) हिन्दी का, न्यूनतम विरोध:

(सात१) हमें हिन्दी को न्यूनतम विरोध की दिशा से आगे बढाना होगा।
और, *****हिन्दी का, न्यूनतम विरोध तब होगा, जब संभवतः तमिल भाषी विद्वान ही तमिल छात्र को और तमिल माध्यम से ही हिन्दी पढाएंगे।***** इस से शुद्ध हिन्दी का मार्ग भी आप ही आप, खुलेगा। क्यों कि, जितने भी तमिल विद्वान हिंदी प्रयोग करते, मैंने सुने हैं, उनकी हिन्दी उत्तर भारतीयों की हिन्दी से भी अधिक शुद्ध अनुभव की है। हिन्दी की शुद्धता भी सुरक्षित रहेगी, जब, तमिल भाषी विद्वान ही तमिल छात्र को और तमिल माध्यम से ही हिन्दी पढाएंगे। हो सकता है, कि, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा यही कर रही हो, फिर भी ऐसे उपक्रम का आयाम प्रचुर मात्रा में बढाने की आवश्यकता है। तमिलनाडु के गाँव गाँव में ऐसा प्रचार आवश्यक है।
ऐसे तमिल भाषी हिंदी के जानकार संख्या में, निश्चित पर्याप्त नहीं होंगे। तो उनकी प्रशिक्षा का भी प्रचण्ड प्रकल्प आयोजित करना होगा। शासन की ओरसे, दृढ संकल्प और क्रियान्वयन ही, ऐसे प्रकल्प की, आधारशिला है।मुझे इस क्रियान्वयन के चरण में कुछ अनुचित प्रतीत नहीं होता।

(आठ) शुद्ध शब्दावली की जानकारी:
(आठ१) जान लीजिए, कि, ऐसे कुछ शब्द हैं, जो संस्कृत और तमिल भाषा में समान अस्तित्व रखते हैं।वे सभी शब्द हिन्दी में भी पाए जाते हैं।ऐसे शब्दों का प्रमाण कम है; पर है अवश्य।
वहाँ की इस्लाम धर्मी प्रजाभी प्रायः प्रादेशिक भाषा ही बोलती है। इसलिए प्रायः संस्कृत-तमिल के समान शब्द सेतुपर चलकर ही हिंदी का प्रचार सहज संभव है। { कुछ तथ्यों के आधार पर, कहता हूँ, कि, इस सच्चाई की उपेक्षा भी हमें पहली बार असफल बना गयी है।}
उदाहरणार्थ: (समान शब्द)
(८१)अंकुश‍म्‌ , (८२)अणु, (८३)अंतरंग‍म्‌,(८४) गर्वम्‌, (८५)विषयम्‌,(८६) आडंबरम्‌, (८७)अलंकारम्‌,(८८) रोहण‍म्‌,(८९) विस्तारम्‌,(९०) सुगम, (९१) विशालमान; इत्यादि शब्द अविकृत और शुद्ध संस्कृत रूप में तमिल में पाये जाते हैं।लिपि तमिल होती है; पर शब्द समान ही होते हैं। टिप्पणी :संभवतः कुछ तमिल बंधु ऐसे कुछ समान शब्दों को तमिल (प्राकृत )से संस्कृत में आये हुए मानते हैं।
पर हिंदी के हितैषियों के लिए, इस गौण बिंदू पर विवाद आवश्यक नहीं। ऐसे समान शब्द, तमिल भी हो, तो भी, भारतीय तो अवश्य हैं। हमारे लिए पर्याप्त है।

(नौ) अपभ्रंशित शब्दावली
और, ऐसे भी शब्द हैं, जिनका उच्चारण तमिल भाषा की उच्चारण प्रकृति के कारण शुद्ध न रहकर, अपभ्रंशित हुआ है।
उदाहरणार्थ:
(९१)संकट=संकड़म् (९२) संगीत=संगीदम्, (९३) युद्ध=युद्दम्, (९४)संताप=मनक्कष्टम्,(मन-कष्ट)या वेदनै (वेदना)

(९५संतुष्टि=तिरुप्ति (तृप्ति) (९६)संतोष=तिरुप्ति(तृप्ति) (९७)संदर्भ=सन्दर्बम, (९८)संदेश=समाचरं(समाचार)
(९९)संन्यास=सन्नियासं, (१००) संन्यासी=सन्नियासि, (१०१) संबंध=संबंदम्, (१०२) संरक्षण=पोषणै, संरक्षणै
(१०३)संवेदना=अनुताबम्; (अनुताप) (१०४) संशय=संदेहम्, (१०५) संस्था=स्तापनम्,(स्थापनं)
(१०६) सज़ा= दंडनै (दंड से मिलता जुलता शब्द )(१०७) सजावट=अलंगारम्(१०८)सत्ता=आदिगारम्, (अधिकारं) (१०९)सत्याग्रह=सत्तियागिरहम्, (११०) सफ़र=यात्तिरै,(यात्रा), पिरयाणम् (प्रयाणं) (१११) सभा =(परिषद्, समिति )=सबै, (११२) समर=युद्दम, (११३)समुद्र=समुद्दिरम्, (११४) सम्राट=चक्करवर्त्ति (चक्रवर्ती) (११५)सरल=सुलबमान, (सुलभमान) (११६)सहानुभूति=अनुताबम् (अनुताप) (११७) साधना= उपासनै,(उपासना) (११८)साधु=सादु, महात्मा;
(११९)साफ़=शुद्दमान;(शुद्धमान) (१२०)सामर्थ्य=सामर्त्तियम् (१२१)सामान्य=सादारणमान;(साधारणमान)
(१२२)सिंगार(श्रृंगार)=अलंगारम् (१२३)सिंहासन=शिंगासनम्; (१२४)सिद्धान्त(थिअरी)=तत्तुवम् (तत्वं)
(१२५) सेठ=दनवान्,(धनवान) (१२६ ) स्वाद=रुचि (१२७)स्वास्थ्य=आरोग्गियम्,(आरोग्यम्‌)
{ऐसे शब्द तमिल में ४०% माने जाते हैं। पारिभाषिक विषयों में ५०% का प्रमाण माना जाता है।–लेखक।

(दस) दूर कौन रहें?
***मात्र हिंदी का (तमिल बिना) ज्ञान रखने वाले विद्वान इस चरण में काम नहीं आएंगे।***
जब तमिल छात्रों को अंतःप्रेरित करना है, तो, मात्र हिंदी का (बिना तमिल) ज्ञान रखने वाले विद्वान
इस चरण में काम नहीं आएंगे। हिंदी के हितमें यह सावधानी हमें बरतनी होगी। आगे उनका उपयोग हो सकता है, या अन्य प्रदेशो में भी उनका उपयोग हो सकता है। और दूर रहें वें लोग जो हिन्दी की वर्चस्ववादी(साम्राज्यवादी) विचारधारा में ही विश्वास करते हैं। लठ्ठमार हिंदी के वर्चस्ववादी भी इस
कार्य में सहायता नहीं कर पाएंगे। वे काम को अति उत्साह में, बिगाड सकते हैं।

(ग्यारह ) टिप्पणीकारों के प्रति कृतज्ञता
कोई भी नाम लिए बिना, सभी प्रबुद्ध टिप्पणीकारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ; जिन्हों ने समय देकर भाग एक की टिप्पणियाँ दी थीं। और आप की मार्गदर्शक टिप्पणियों का उपयोग कर के ही यह दूसरे भागका आलेख प्रस्तुत हुआ है। आलेख न्यूनतम समय में बनाया गया, अतः कुछ त्रुटियाँ रह ही गयी होगी। क्षमा करें। टिप्पणी अवश्य दे। एक और आलेख की प्रतीक्षा करें।
वंदे मातरम्