हम सब को पता है की प्लास्टिक गंभीर रूप से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। ये एक जहरीले रसायन से बना होने के कारण यह पृथ्वी, हवा, पानी सभी को प्रदूषित करता है। प्लास्टिक अपने उत्पादन और डिस्पोजल के दौरान पर्यावरण को प्रदूषित करता है। प्लास्टिक के खतरों को कम करने का एक ही तरीका है कि इसका उपयोग कम से कम किया जाए तथा इसका उत्पादन भी कम किया जाए।
हम जिन प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग अपने रोजाना की ज़िंदगी मे करते हैं, बाद मे ये ही कूड़े के रूप मे पर्यावरण के लिए संकट बनते हैं। पिछले साल देश मे 29 लाख टन प्लास्टिक कचरा था, जिसमे से 15 लाख टन सिर्फ प्लास्टिक का ही था। एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे संसार हर वर्ष 100 मीलीयन टन से भी ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है। देश में हर साल 30-40 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। इसम से करीब आधा यानी 20 लाख टन प्लास्टिक रिसाइकिलिंग के लिए मुहैया होता है।
प्लास्टिक बनाने का तरीका काफी आसान है और वे एक लंबे समय तक चलता है। लेकिन यह वातावरण को प्रदूषित करने मे भी अहम भूमिका अदा करता है। प्लास्टिक रिसाइकिलिंग बहुत महंगी और श्रम प्रधान विधा है। प्लास्टिक रिसाइकिलिंग के दौरान निकलने वाला जहरीला धुआँ सांस से संबन्धित बीमारियों का कारण बनता है।
हालांकि पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रिसाइकिलिंग प्लास्टिक मेनुफैक्चर ऐंड यूसेज रूल्स 1999 जारी किया था। इसे 2003 मे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1968 के तहत संशोधित किया गया है, ताकि प्लास्टिक के डिब्बे और थैलों का नियमन सही तरीकों से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे मेँ अधिसूचना जारी की है। लेकिन इसके बाद भी कोई परिवर्तन नही आया।
प्लास्टिक के कचरे से निजाद पाने के लिए अनेक राज्यों ने समय समय पर कई कदम भी उठाए हैं, लेकिन इससे भी कोई अधिक असर नही पड़ा जैसे जम्मू एवं कश्मीर, सिक्किम व पश्चिम बंगाल ने पर्यटन के केन्द्रों पर प्लास्टिक थैलों और बोतलों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है।
हिमाचल सरकार ने एक कानून के तहत हिमाचल में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है। जिसमें पोलिथीन बैग का उपयोग करते हुए पाए जाने पर किसी भी व्यक्ति को सात साल तक की सज़ा हो सकती है या उसे एक लाख रूपए यानि लगभग दो हज़ार डॉलर तक जुर्माना देना पड़ सकता है। राजनीतिज्ञों के अनुसार हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है और पर्यटकों का एक लोकप्रिय स्थल रहा है इस कारण भी प्लास्टिक हिमाचल मे एक बड़ी समस्या बन गयाहै।
इतना ही नहीं हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लोक निर्माण विभाग के सहयोग से नमूने के तौर पर शिमला के बाहरी हिस्से मे प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल से तीन सड़क का निर्माण किया है। इस कामयाबी से उत्साहित हिमाचल सरकार ने अब सड़क निर्माण मेँ प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। एक सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक राज्य मे ‘पॉलिथीन हटाओ, पर्यावरण बचाओ’ मूहीम के तहत करीब 1381 क्विंटल प्लास्टिक कचरा जुटाया गया है। पूरे प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल राज्य मे प्लास्टिक – कोलतार मिश्रित सड़क के निर्माण मेँ किया जाएगा। यह कचरा 138 किलोमीटर सड़क के निर्माण के लिए काफी है।
राज्य सरकार की चिंता केवल यही नही है कि पोलिथीन बैगों को कहाँ फेंका जाए इस कानून के अंतर्गत इस तरह के बैगों के बनाने, जमा करने, उपयोग करने, बेचने और बाँटने, सब पर रोक लग जाएगी। यह क़ानून उस विधेयक पर आधारित है जो भारतीय संसद मे पारित हो चुका है लेकिन हिमाचल प्रदेश पहला राज्य है जो इस पर अमल कर रहा है।
पिछले मई में दक्षिण अफ़्रीका की सरकार ने प्लास्टिक के बैगों के उपयोग करने वालों को दस साल की जेल की सज़ा का भय दिखा कर उस पर रोक लगा दी थी और आयरलैड मे प्लास्टिक के शौपिंग बैगों पर टैक्स लगा दिए जाने के बाद उसका उपयोग अपने आप काफ़ी कम हो गया।
मेरा तो मानना है की अन्य राज्यों को भी हिमाचल सरकार द्वारा पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए उठाए गए गंभीर कदम से सबक लेकर ऐसे सख्त कानून पास करने चाहिए, ताकी सम्पूर्ण देश के लोगों को रहने के लिए एक शुद्ध और संतुलित वातावरण मिल सके। और ये तभी संभव है जब हम सब भी सरकार की इस पहल मे सरकार का पूरा सहयोग दे।
वाकई में हिमाचल प्रेम कुमार जी के शासन में काफी फल फूल रहा है, प्रेम कुमार ने हिमाचल के लिए तारीफे काबिल कार्य किये हैं और अभी भी लगे हुए हैं. इतनी महत्वपूर्ण जानकारी से परिचित कराने के लिए लेखिका जी को बारम्बार धन्यवाद.
दूध् गुटखा दवाईया जैसे सामान को पैक करने के लिए हिमांचल प्रदेश में पॉलीथीन के स्थान पर क्या प्रयोग किया जा रहा है?