प्रधानमंत्री शायरी छोड़ देश को सच्चाई से रूबरू कराएं

qसिद्धार्थ शंकर गौतम

संसद के दोनों सदनों में कोल आवंटन ब्लॉक घोटाला मामले में गतिरोध समाप्त होते न देख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विपक्ष के भारी हंगामे के बीच प्रश्नकाल के बाद लोकसभा में अपना बयान दिया। दरअसल प्रधानमंत्री आज से ईरान के दौरे पर जा रहे हैं इसलिए जाने से पहले वह इस मामले पर अपनी सफाई देना चाहते थे। हालांकि शोर-शराबे के बीच उनका बयान दब गया किन्तु सूत्रों के अनुसार उन्होंने कोयला आवंटन पर सरकार की तरफ से सफाई दी और कैग की रिपोर्ट विवादास्पद बताते हुए इसके औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगाए| उन्होंने कहा कि उन पर लगाए गए आरोप निराधार हैं। प्रधानमंत्री ने इसके बाद संसद भवन के बाहर शायराना अंदाज में मीडिया में भी बयान दिया। ‘मेरी खामोशी न जाने कितने सवालों की आबरू रखती है..’ के साथ उन्होंने एक बार फिर कैग की रिपोर्ट को खारिज किया। उन्होंने विपक्ष से आह्वान किया कि वह संसद में बहस चलने दे ताकि लोगों को इस मामले पर जवाब मिल सके। इस बीच खबर है कि प्रधानमंत्री राज्य सभा में बयान देने के साथ ही राष्ट्र के नाम संबोधन भी दे सकते हैं और यदि ऐसा हुआ तो २जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद यह दूसरा अवसर होगा जबकि प्रधानमंत्री सीधे तौर पर जनअदालत में अपना पक्ष रखेंगे| अस्पुष्ट सूत्रों के अनुसार वह यह कहकर कैग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का खंडन कर सकते हैं कि १.८६ लाख करोड़ के नुकसान के ‘भ्रामक’ आकलन में ‘खामियां’ हैं। वैसे प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा थी कि कम से कम वे मीडिया के समक्ष तो कुछ ऐसा तथ्यात्मक पक्ष प्रस्तुत करते जिससे सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में उतरने के प्रमाण मिलते| प्रधानमंत्री ने अपने बचाव में उतरकर एक तरह से खुद को मामले में संदेही बना डाला है| वैसे यह विडंबना ही है कि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की चर्चा हेतु उपयुक्त मंच से इतर इस मुद्दे की हर कहीं चर्चा होने के साथ ही जमकर छीछालेदर हो रही है| कैग की रिपोर्ट को संदेहास्पद बताने से राष्ट्र और जनता का आखिर क्या भला होगा? क्या खुद को पाक साफ़ कर देने और विपक्ष पर चर्चा से दूर भागने का आरोप लगाने वाले मनमोहन सिंह से देश की जनता यही उम्मीद करती है?

 

इससे पहले भी प्रधानमंत्री समेत सरकार द्वारा कैग की रिपोर्टों को खारिज किया जाता रहा है और न्यायालय के हस्तक्षेप से उन्हें हर बार शर्मसार होना पड़ा है| तो क्या प्रधानमंत्री चाहते हैं कि कोल ब्लॉक आवंटन मामले का सच भी न्यायालय द्वारा आए? यदि कैग की रिपोर्ट पर आपत्ति ही जताना है और उसे संदेहास्पद ही साबित करना है तो विभिन्न घोटालों में इसकी जांच प्रक्रिया द्वारा जनता की कमाई का करोड़ों रूपया क्यों फूंका जा रहा है? पिछले एक सप्ताह से जारी संसद का गतिरोध क्या मानसून सत्र की बलि लेगा? ये चंद सवाल हैं जिनका जवाब माननीयों के वर्तमान आचरण में झलकता है| वहीं संसद न चलने देने के मुद्दे पर अब भाजपा अलग-थलग पड़ती नज़र आ रही है। हर मुद्दे पर भाजपा के साथ खड़ा रहने वाले अकाली दल ने कहा है कि इस मामले में सदन के भीतर चर्चा की जानी चाहिए। जदयू पहले से ही सदन में चर्चा के पक्ष में है| हालांकि भाजपा प्रधानमंत्री के इस्तीफे से कम कुछ मंजूर नहीं करने के रुख पर अड़ गई है| लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने बाकायदा कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले पर खुली बहस की चुनौती भी दे डाली जिसका दिग्विजय सिंह ने जवाब भी दिया कि वे बहस हेतु तैयार हैं और सुषमा जी जगह व समय तय कर लें| यहाँ दिग्विजय सिंह का कहना सही जान पड़ता है कि लोकसभा में विपक्ष की नेता अपनी पार्टी को चर्चा में शामिल न करवाकर मुझसे बहस करना चाहती हैं तो मैं तैयार हूँ पर इस मामले पर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी चुप्पी तोडनी चाहिए| राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का कहना है कि चूँकि भाजपा के कई मुख्यमंत्री इस घोटाले में फंसे हुए हैं लिहाजा वह चर्चा से बच रही है| वजह जो भी परन्तु भाजपा का संसद न चलने देना और अपनी मांग पर अड़े रहना कुछ तो है की स्थिति उत्पन्न कर रहा है| स्पष्ट तौर पर प्रतीत होता है कि पक्ष-विपक्ष दोनों ही अपनी गलतियों पर पर्दा ड़ाल ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर रहे हैं जिससे दोषारोपण की राजनीति में मूल मुद्दे को बिसरा दिया जाता है| यानी सब मिलजुल कर आम जनता को मूर्ख बनाने में लगे हैं| यक़ीनन संसद और उसके बाहर चल रही राजनीतिक नूराकुश्ती के बीच मूल मुद्दा परिदृश्य से गायब होता जा रहा है जो उचित नहीं| देश की जनता को जानने का अधिकार है कि जिन्हें उसने चुनकर अपना नीति-नियंता बनाया, आखिर उसके सर्वांगीण विकास से इतर माननीय किस विकास में लगे हुए हैं? संसद को राजनीतिक नौटंकी का स्थान कहने वाले सच साबित होते दिख रहे हैं| कुल मिलाकर पक्ष-विपक्ष का रवैया जनता के प्रति निराशाजनक ही है जिसने लोकतंत्र के मंदिर में संविधान का खून करते हुए गलत परिपाटी को जन्म दिया है|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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