जेब कतरा -एक व्यंग –आर के रस्तोगी

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एक जेब कतरा जेब काटते पकड़ा गया
कुछ पुलिस वालो के वह हत्थे चढ़ गया
पुलिस वाले बोले,तू जेब काटता है क्यू
जेब कतरा बोला,तुम रिश्वत मांगते हो क्यू
पुलिस वाले बोले,हमारे थाने बिकते है
सरे आम सारे देश मे नीलाम होते है
हमे भी उपर वालो को देना पड़ता है
बिना दिए अच्छा थाना कहा मिलता है ?
जो ज्यादा बोली लगायेगा
वही अच्छा थाना ले जाएगा 
यही क्रम नीचे से ऊपर  तक चलता रहता है
जैसे गैस का गुब्बारा नीचे से ऊपर तक चलता रहता हें
इसी तरह रिश्वत का बाजार भी चलता रहता है
कभी ठंडा,कभी गर्म चलता रहता है
यह सुनकर,जेब कतरा भी बोला
हमारे एरिये भी थानों कि तरह बिकते है
जो ज्यादा पैसे देता है उसको बढया एरिया मिलता है
हर एरिया जेब कतरों मे बटे रहते है
पुलिस वाले भी उससे सटे रहते है
जेब काटता हु तो क्या गुनाह करता हू
जेब काट कर ही तो मै तुम्हारे हाथ गर्म करता हू
जेब मै नही,देश के नेता काट रहे है
देश की जेब काट कर ही तो विदेशो को धन भेज रहे है
असली जेब कतरे तो  नेता है,उनको पकडो तुम
अगर तुम मे दम है तो उनको जेल मे डालो तुम
इससे देश की जेब कटनी बंद हो जायेगी
और देश की जनता भी सुख की  चेन ले पायेगी
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आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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