डॉ. मधुसूदन की कविता : घोडे़ को धक्का मारती है बग्गी ?

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वैसे तो चमत्कार हुये हैं कई बार !

कई बार तर्क को नियमों ने तोड़ा है।

पर अब की बार, जो हुआ चमत्कार !

उस ने सारी सीमाओं को लांघा है।

हवा चलने से, पत्ते न हिले पेड़ों के,

पत्तें हिलने से, चली है आँधी।

अच्छा ?

भूचाल आने से, न गिरा मकान-

पर मकान गिरने से, आया है भूचाल।

हाँ ?

कौन सी तर्क की किताब में पढ़े हो?

कि प्रतिक्रिया को, क्रिया का कारण बताते हो?

गोधरा में रेल जली,

कारण ?

हिन्दू का प्रतिकार?

अरे सेक्य़ुलर पागलों,

मूरख सरदार बावलों।

ये तो बताओ,

कि घोड़ा बग्गी को खींचता है?

या घोड़े को धक्का मारती है बग्गी?

कठिन प्रश्न है।

ठीक सोच कर बताओ।

रेल जली ना होती,

तो दंगा होता ?

11 COMMENTS

  1. हमारे भारतमें ही ऐसा होता है की निर्दोष को सताने के लिए कानून का उपयौग किया जाता है और दोषी को कनुनका ढाल मिलता है. पुरे देश को बेच डाला उसको हमारे होम मिनिस्टर कुछ नहीं कह सकते लेकिन निर्दोष को दोषी बताने के लिए हमारे दोग्विजय जी कुछ भी कह सकते है. तिन चार हज़ार सालओ का राम मंदिर को गिराके मुसलमान उनके उपर ढाचा बना सकते है लेकिन हिन्दू तिनसो साल पुराना उस ढांचे को गिरा के अपना राम मंदिर को फिर स्व नहीं बना सकते.
    ऐसा है हमारे देश का न्याय!

  2. जिस सच्चाई का निरूपण आपने किया है , उसे विरूप कर सामने लाया जाता रहा है .ऐसा एक बार नहीं अनेक बार हुआ है .बिना तथ्यों को जाने ,केवल बनाई हुई बातों से बहकाने की कोशिश करना ,बहुत गलत नीति है .इससे विश्वास टूटता है और कटुता ही बढ़ती है .

  3. रेल जलना और दंगा होना दोनों ही दुर्भाग्य पूर्ण
    दोनों में ही निरपराध मरे और यह हमारी हिन्दू संस्कृति के अनुरूप नहीं है
    पर जो कुछ १००० साल से हिन्दुओं के विरुद्ध होता रहा है इस्लामिक लुटेरों के द्वारा वह भी उतना ही ख़राब है -संगठित हिन्दू समाज हे ऊसका उत्तर है

  4. बुद्धिमान पाठकों—-
    आप सभी प्रबुद्ध पाठक हो, बुद्धिमान हो। आप पारदर्शी मानसिकता को भी समझते ही हो।

    जब कोइ पाठक कुछ लिखता है, तो वह जिस विषय पर प्रकाश डालता है, कभी कभी, उस से भी अधिक, स्वयं की मानसिकता पर भी कुछ किरणें तो अवश्य बिखेरता है।
    हर ऐसे पाठक को महत्त्व देना, ना देना, आपका अधिकार है।

  5. सहज ढंग से सटीक बात कही आपने. दर असल हिन्दू प्रजा का हाल ये है की..हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम..वो क़त्ल भी करें तो कोइ कुछ नहीं कहता. जेहादी आघात और मिशनरी प्रपंच के ऊपर से दिमागी रूप से सठियाये सेकुलरों की फ़ौज ने हिन्दुओं को दोयम दर्जे का इंसान बनाकर रख दिया है.

  6. किसी टिपण्णी कार द्वारा दी गयी टिपण्णी पर i पर पुनः टिपण्णी करना अत्यंत अरुचिकर लगता है पर श्री र. सिंह जी ने जो ज्ञान समुद्र से मोती निकाल कर परोसे हैं उन पर कुछ कहे बिना रहा नहीं जा रहा. उदाहरणारथ (१) गोधरा स्टेशन पर जो हुआ वह “आदर्श प्रशासन ” में नहीं होना चाहिए था अब चूँकि आदर्श तो केवल काल्पनिक है इसलिए सामान्य प्रशासन में ऐसा होना अनुचित नहीं है यही ना? (२)जघन्यतम अपराध की प्रतिक्रिया एक दिन के लिए क्षम्य है.उसके बाद भी यदि चलती रहे तो अक्षम्य है.(३)सिंह जी ने अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा देखा की गुजरात प्रशासन ने दंगा रोकने का प्रयत्न ही नहीं किया . लगता है की जैसे ध्रितराष्ट्र को संजय महाभारत का आँखों देखा हाल सुना रहे थे सिघ महाशय को तीस्ता सीतलवाद हर्ष मंदर इत्यादिक से वैसी ही सुविधा प्राप्त हुई स्पष्ट है की सिघ महोदय को कभी पुलिस में रहकर दंगों पर नियंत्रण करने का अनुभव नहीं हुआ अतः वे समझते हैं की दंगों पर नियंत्रण चुटकी बजाने से हो सकता है अगर नहीं हुआ तो पूरा दोष प्रशासन का है

  7. ऐसे जो बात मैं कहने जा रहा हूँ,यह बहुतों को नागवार गुजरेगी.बहुत लोग अपने अपने तर्क देंगे,पर साफ़ साफ़ बात यह है की प्रतिक्रिया जब सहज होती है या यों कहिये कि जब तुरत होती है,तो उसमे प्रशासन को बहत हद तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता, इसलिए जनता के प्रथम दिवस के क्रोध को अगर गुजरात सरकार नहीं रोक सकी तो वह क्षम्य हो सकता है, पर जब प्रतिक्रिया स्वरूप तीन दिनों तक दंगा चलता रहे और उसको रोकने का प्रयत्न न हो तो प्रशासन को दोष मुक्त नहीं करार दिया जा सकता.ऐसे तो आदर्श प्रशासन में गोधरा स्टेशन पर जो हुआ,वह भी नहीं होना चाहिए था.

  8. डाक्टर मधुसूदन जी सादर नमस्कार, बहुत ही तार्किक बात आपने कही है। लेकिन नेताओं की बुद्धि और तर्क को तो यहाँ तुष्टीकरण की दीमक चाट गयी है और छद्म धर्म निरपेक्षता का पाला मार गया है । इनके लिए तो अब यही कहा जा सकता है-
    तू इधर उधर की बात न कर यह बता कि काफिला क्यों लुटा ।
    मुझे रहजनों से नहीं गरज तेरी रहबरी का सवाल है ।।

  9. मधुसूदन् जी ने जो प्रश्न पूछा है मुझे एक प्रकार से निरर्थक लगता है २००२ में गोधरा में हिन्दू यात्रियों को सुनियोजित ढंग से जिंदा जला दिया गया यह हमारे मीडिया की दृष्टि में चर्चा किये जाने योग्य नहीं है. मोदी प्रशासन ने दंगा नियंत्रण के उद्देश्य से जो कुछ किया उस पर भी तटस्थ पत्रकारों ने शोध करने के बाद मोदी को दोषमुक्त घोषित किया पर उस से क्या फर्क पड़ता है हमारे यहाँ पत्रकारों, टिप्पणीकारों के अपने अपने शिविर हैं और उनके सदस्य वही कहते रहेंगे जो उनके आकालोग चाहते हैं जिन्हें येन केन प्रकारेण मोदी विरोध का झंडा उठाये रहना है वे बराबर यही कहेंगे की हाँ श्रीमान हमने अपनी आँखों से आक्रामक बग्गी द्वारा घोड़े को टक्कर मारते देखा है

  10. बात तो आपने सही कही। सभी इस तथ्य को जानते हैं और समझते हैं लेकिन कह नहीं पाते। सत्ता के इन दलालों के पूर्वज वही लोग हैं जिन्होंने अपनी बहन अकबर को ब्याही थी और उम्मीद कर रहे थे कि उनके इस कृत्य के बाद भी महाराणा प्रताप उनके साथ बैठकर भोजन करेंगे।

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