नदी के दो किनारों की तरह,
मै और तुम साथ साथ हैं।
हमारे बीच ये नदी तो,
प्रवाह है,
जीवन और विश्वास है।
हमारे बीच इसका होना,
हमें साथ रखता है, जोड़ता है,
न कि दूर रखता है।
मानो कि ये नदी हो ही नहीं,
तो क्या किनारे होंगे!
नदी पहाड़ पर हो या चौड़े मैदान में,
कितने ही मोड़ ले ले,
किनारे साथ चलते हैं।
अंत में,
नदी सागर में मिल जाती है,
जब नदी ही नहीं रही ,
तो किनारे कहां बचेंगे!