स्व एवं संस्कृति से जुड़ने को प्रेरित करती कविताएं

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पुस्तक-समीक्षा

सिर्फ एहसास काफी है
-ः ललित गर्ग:-

कविता मानव की अनुभूतियों, भावनाओं और कल्पनाओं का साकार रूप है। इसमें भाषा के माध्यम से जीवन की अभिव्यक्ति होती है। जहां तक जीवन की पहुंच है, वहां तक कविता का क्षेत्र है। कविताओं ने सबसे अधिक मनुष्य के उत्थान की कामनाएं की हैं- जिन कविताओं से हमारी रुचि न जागे, हमारी संवेदनाएं आंदोलित न हो, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें शक्ति का संचार न हो, अतीत के जीवन की यथार्थताओं का प्रकाश उपलब्ध न हो, हमें अपनी ही बात का अहसास न कराये और जो हमें अपनी संस्कृति एवं माटी से न जोड़े- उन कविताओं अर्थपूर्ण नहीं कहा जा सकता। ‘सिर्फ एहसास काफी है’ कवयित्री एवं शब्दों की जादूगरनी सोनू सिंघल का नवीन काव्यसंग्रह है, जिसमें उन्होंने अपने अतीत के जीवन एवं गांवों की जीवनशैली के यथार्थ को उकेरा है। उनकी कविताएं समृद्ध सांस्कृतिक एवं पारिवारिक जीवन से रू-ब-रू कराती है। यह एक अनूठा और विलक्षण कविता संग्रह है जिसमें 97 कविताएं हैं, जो एक मौलिक सोच से जुड़ी होने के साथ-साथ जीवन-प्रेरक, जीवन को एक नई दिशा देने के साथ जीवन के सुखद अनुभवों का अहसास कराती है। सोनू सिंघल जीवंत भावों की कवयित्री होने के साथ-साथ प्रमुख चिंतक एवं समाजकर्मी है।
खुशी की बात है कि सोनू सिंघल का रचनाकार बदलते जीवन के बीच अतीत के जीवन एवं उसके सुखद, शांत एवं सहज जीवन को महसूस कराता है। उनकी कविताएं समय की संवेदना को महसूस करती-कराती है और उसकी पहचान भी तय करती है, जो जीवन की खुशबू, जीने की उमंग एवं भविष्य की मनुष्यता के अनुकूल कुछ करने का उपक्रम हैं। सृजनशीलता में जीवन के इतने सारे तत्वों को ढाल पाना आसार काम नहीं है, इसके लिये जीवन में और रचना में भी संघर्ष करना पड़ता है, ऐसा संघर्ष सोनू सिंघल ने भी किया है, जो उनकी कविताओं को मार्मिक एवं तेजपूर्ण बनाता है। उन्होंने अपने जीये गये जीवन को भारतीय संदर्भों में सशक्त प्रस्तुति दी है। किस तरह गाँव में जब सुबह होती है तो मुर्गे की ब़ाग के साथ लोग उठ जाते हैं। चारों तरफ चहल-पहल, पंछियों की चहचहाहट, पनिहारिनों का पनघट जाना, बड़े-बुजुर्गों का कुआँ, तालाब, नदी में प्रातः स्नान करके आना, घर में पूजा-पाठ करना, पालतू पशुओं का आदर-सम्मान से बाँधना-छोड़ना, उन्हें चराना, चारों तरफ उड़ती हुई मिट्टी की खुशबू,, सुबह उठकर आसपास के सभी बड़े बुजुर्गों का अभिवादन करना, गहन रात्रि में तारों को निहारना, सबसे हँसकर बात करना, हाल-चाल पूछना, बच्चों का अपने आसपास के बच्चों के साथ खेलना-कूदना, बहुत ही सुंदर था अतीत का जीवन। सोनू सिंघल की कविताओं में संस्कृति, संस्कारों एवं अतीत के जीवन से गुजरना एक सुखद अनुभव है, क्योंकि इन कविताओं को पढ़ने पर पाठक को अपना अतीत सामने नजर आने लगता है। इन अनुभूति की प्रभावी प्रस्तुति करती ये कविताएं समय की शिला पर अपने निशान छोड़ती चलती है।
जीवन के सारे बंधन प्रेम से सिंचित किये जाते हैं। जहां प्रेम की नदियां की तरल धार नहीं, वहां सारे बंधन सूखी सरिता की तरह दम तोड़ जाते हैं। जीवन की जंग केवल प्रेम का समीकरण से जीती जा सकती है। सोनू सिंघल की इस स्थापना से इंकार नहीं किया जा सकता-इकट्ठा कर तेरी-मेरी/सारी खुशियों की/जोड़ लेती हूं/वो लम्हें जब कभी/मैं तुझसे रूठी/उन्हें घटा लेती हूं/दोनों की मुस्कुराहटों को कर बराबर/उलझनों का भाग दे देती हूं/जिनकी ताबीर/अभी बाकी है/ख्वाइशों से गुणा कर लेती हूं/इस तरह तेरे मेरे प्रेम/और विश्वास का/समीकरण बिठा लेती हूं।
जीवन की एक कटु वास्तविकता है दूसरों की कमियों पर नजर रखना, दूसरों पर पत्थर चलाना, लेकिन अपने बारे में कुछ न जानना। इतना भी समय न निकाल पाना कि दो पल अपने अंतर्मन में झांक सकें, खुद को जान सकें। होकर भी कुछ नहीं का स्वाभाविक प्रयोग इस कविता को धारदार बना देता है-रोज पेट पालने के लिए/घर से निकलती मां/कभी उदास/कभी खिली-खिली सी/कभी वक्त के थपेड़ों को सहती/उम्र के हर पड़ाव में/उलझ कर रह जाती। परवरिश अपने/बच्चों की करने के लिए/घर-घर बर्तन मांजती/झाड़ू-पोछा लगाती।
एकबारगी यह लग सकता है कि सोनू सिंघल का काव्य आत्म केन्द्रित है, लेकिन गहराई से अवगाहन करने पर यह अहसास पुख्ता होता है कि इनकी कविता में जीवन के विभिन्न रंग अपनी छटा बिखेरते नजर आते हैं। जीवन की उदात्तता ही मानव को ऊंचाई प्रदान करती है। इन पंक्तियों में भाव, कल्पना और विचार का सौंदर्य अनुस्यूत है-वक्त के साथ अब/मैं बदलने लगी हूं/तनिक अपने मन की/सुनने लगी हूं/जुल्फों को अदा से/बिखेरने लगी हूं/मंद-मंद मुस्काने लगी हूं/अपने अरमानों के लिए/खुलकर जीने लगी हूं/हर उस लम्हे को जो खोया/उसे पाने लगी हूं।
बचपन की सादगी, निश्छलता किसका मन नहीं मोह लेती। सारी कायनात की बादशात एक तरफ, बचपन का आनंद एक तरफ। रोना और खिलखिलाना दोनों ही बेजोड़ और दुर्लभ। विचार कीजिए इस ऊंचाई की कविताएं कितनी लिखी गई होंगी। वो लड़की कब बड़ी हो गई। बचपन में उड़ती थी तितली-सी/चहकती थी चिड़िया सी/मिट्टी के घरौंदे बनाती/खिलौने के लिए मचल जाती/लड़कों से दादागिरी किया करती/न जाने कब बड़ी हो गई।
अपने प्रथम काव्य संग्रह में अनेक कविताओं को लिखकर इस बात का प्रमाण दिया है कि उनकी कविता को एक सुनिश्चित दिशा मिल गई है। उनके विचार का कवि नित नए विस्तार को खोजता प्रतीत होता है जब वे कहती हैं-
वक्त के साथ अब मैं भी कुछ बदलने लगी हूं
अपने मन की बात सुनने लगी हूं।
सोनू सिंघल सत्य, शिव एवं सौन्दर्य की उपासिका हैं। वे सत्य की आराधना करती हैं, क्योंकि सत्य का साक्षात्कार करना उनकी मंजिल है। वे शिव की उपासना करती हैं, क्योंकि वे अपने जीवन को मंगलमय देखना चाहती हैं। वे सौन्दर्य की साधना करती हैं, क्योंकि सौन्दर्य की सत्य एवं शिव के साथ प्रतिबद्धता है। सौन्दर्य का संबंध रंगरूप से नहीं, कलात्मकता से हैं। प्रस्तुत संग्रह की कविताएं सत्य, शिव एवं सौन्दर्य का बोध कराती है। यह बोध गांव के भोलेपन का भी है, यह बोध अतीत के सहज एवं शांतिपूर्ण जीवन का भी है। यह बोध स्त्रीमन की वेदनाओं एवं करूणा का भी है। कविताएं सहज एवं सरल है, जो पाठकों को सुलाती नहीं, जगाती है। अतीत के जीवन से साक्षात्कार कराती है। अतीत के जीवन की यादों में गौता लगवाती है। यही इन कविताओं की मूल शक्ति है, आत्मा है।
इस काव्य संग्रह में अतीत जीवन के सुख है, दुःख है। अतीत की स्मृति है। अपनों के प्रति प्रेम है। जीवन के सकारात्मक पक्ष है तो नकारात्मक पक्ष भी है। जिसमें उत्साह है, आनन्द है, सहजता है। जीवन को किस तरह शांत एवं सहज बनाया जा सकता है, उसकी प्रेरणा भी है। सोनू सिंघल की कविताओं का एक उजला पक्ष यह भी है कि जीवन को ठीक-ठीक कैसे समझा जाये। कैसे जाना जाये। जीवन जीने की कला क्या है? अतीत के आलोक में वर्तमान को कैसे सुखद बनाया जाये।
आज के बदलते दौर में जीवन की शक्ल भी बदल रही है। नई तकनीक, नई सोच, नई विधाएं जीवन को गढ़ रही हैं। इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का बाहुल्य है। तरह तरह के सुविधावादी उपकरण हर व्यक्ति के पहुंच में है। सोनू सिंघल की कविताओं ने एक अपूर्व वातावरण का निर्माण किया। ये कविताएं जहां पारिवारिक जीवन में खुशहाली का माध्यम है तो व्यापार में उन्नति की प्रेरक भी है। इन कविताओं में जहां व्यक्तित्व विकास की नई दिशाओं को उद्घाटित किया वहीं जीवन की अनंत संभावनाओं को भी उजागर किया। नये मूल्य, नये मापदण्ड, नई योग्यता, नवीन क्षमताएं, आकांक्षाएं और नये सपने-बदलाव की इस तेज रफ्तार जिन्दगी ने अतीत को भूला दिया है। जिसके कारण जीवन समस्याओं से घिरा है। इस तेजी से बदलती जिंदगी में सकारात्मकता को स्थापित करने में इस पुस्तक की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इंसान घर बदलता है, लिबास बदलता है, रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी परेशान क्यों रहता है? क्योंकि वह अपनी जड़ों से कट रहा है, अपने अतीत से कट रहा है। इस पुस्तक की कविताओं में यह कोशिश की गई है कि इंसान बदलें, उसकी सोच बदलें, उसका व्यवहार बदलें लेकिन बदलने की उसकी दिशा सदैव सकारात्मक हो ताकि वह जिंदगी के वास्तविक मायने समझ सके।
अनुभूति, यथार्थ और भाषा का मणिकांचन प्रयोग ‘सिर्फ एहसास काफी है’ संग्रह कविता के क्षेत्र में अपनी पदचाप से नया आश्वासन लेकर आया है जो सोनू सिंघल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है। कवयित्री की सूक्ष्मदृष्टि, गांव-संस्कृति पगी पावनता, जीवन के अबाध प्रवाह हर क्षण के छलछलाते आनन्द को बिखेरती नजर आती है। भाषा का माधुर्य, प्रतीकों का सफल प्रयोग, जीवन के विविध बिम्बों का संयोजन हर अनुभव को सरस बना देता है। कवयित्री की यही कामना है कि मेरे आंगन में ही नहीं, सबके आंगन में अतीत की यादांे की जीवंतता बनी रहे, अतीत की जीवनशैली एवं जीवनमूल्य पल्लवित हो, पुष्पित हो और उसकी हर शाखा पर आपकी खुशियों की, आनंद की, आपके मंगलयम होने की लताएं लहराएं। कवयित्री ने लिखा भी है कि ‘जिन्दगी की पाठशाला में भी हर दिन कुछ-न-कुछ आत्मसात होता है। कभी यादें मीठे पानी-सी तो कभी आंखों से बहते अश्रु के नमक-सी, जिन्दगी के अनुभवों से भी हम बहुत कुछ सीखते हैं संवेदनशील और सृजनकर्ता हम वहीं से बनते हैं।’ आज के आपाधापी के युग में प्रस्तुत संकलन की कविताएं स्व से जुड़ने, संस्कृति से जुड़ने की प्रेरणा है, जिसके यथार्थ एवं जीवंत भावों की तरलता हृदय को भिगो जाती है। इनकी पूरी कविताओं से गुजरने पर पाठक अंतरंगता एवं तादात्म्य स्थापित कर लेने के साथ अभिभूत हो जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय संस्कृति, जीवनशैली, स्त्रीमन एवं अतीत के जीवन के प्रभाव को नए संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है। यह कृति व्यक्ति, समाज और देश के आसपास घूमती विविध समस्याओं के सटीक समाधान जीवन के सन्दर्भ में प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक हर इंसान के आगे बढ़ने की कामना करती है। जो आम पाठक के साथ-साथ काव्य प्रेमियों के लिए उपयोगी है। आशा है इस संग्रह का काव्य प्रेमियों में स्वागत होगा।
प्रेषकः

(ललित गर्ग)

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