कवि और कल्पना

4
1216

कविता भी क्या चीज़ है कल्पना की उड़ान कवि को किसी दूसरी ही दुनियाँ मे पंहुचा देती है। एक कवि की दुनियाँ और एक उस व्यक्ति की दुनियाँ। यह इंसान कभी भी एक दुनियाँ से निकल कर दूसरी दुनियाँ मे ऐसे आता जाता रहता है जैसे कोई एक कमरे से दूसरे कमरे मे जाता हो। मनोविज्ञान की कुछ अधकचरी जानकारी होने से मुझे कभी कभी लगता है कि कंहीं कुछ कवि स्प्लिट पर्सनैलिटी के विकार से तो ग्रसित नहीं होते। ठहरिय, मै उदाहरण देकर समझाती हूँ।

हमारे एक भाई समान कवि मित्र हैं बहुत ही सुन्दर मर्मस्पर्शी कविता लिखते हैं। शब्दों का ऐसा जाल बुनते हैं कि पढ़ते ही वाह क्या ख़ूब लिखा है ज़बान पर आजाता है। श्रंगार के वियोग पक्ष मे उन्हे महारथ हासिल है। दरसल कभी किसी चौराहे पर किसी से बिछड गये थे, कई दशक पहले, पर कविता भाई साहब अभी तक उसी पर लिख रहें हैं। अरे भई, जिसके साथ आप ख़ुशहाल ज़िन्दगी बिता रहे, जो आपकी पत्नी है, आपके बच्चों की माँ है उसपर क्यो कुछ नहीं लिखते तो वो कहते हैं। –

‘’वो विषय हास्य कवियों का है। हास्य कवियों के पास विषय बहुत कम होते हैं और हास्य लिखना बहुत कठिन होता है इसलियें अन्य किसी भी रस मे कोई व्यक्ति पत्नी के विषय मे नहीं लिखेगा , यह प्रस्ताव अखिल भारतीय कवि परिषद सर्वसम्मति से अनुमोदित कर चुकी है।‘’

कवि भाई साहब को कभी ‘वो’ पहेली सी लगती हैं, कभी उनके साथ बिताये पल एक आध्यात्मिक यात्रा से लगते हैं,उनका आना सूर्योदय सा और जाना अमावस की रात जैसा लगता है।ये कवितायें पढकर मुझे लगता है कि ये कोई है भी या नहीं .. कभी थीं ही नही शायद, फिर मन का मनोवैज्ञानिक कहता है कवि महोदय को कहीं हैल्यूसिनेशन तो नहीं होने लगे हैं, क्योंकि कभी कभी इन्हे अपने शानदार सुसज्जित घर के पलस्तर उखड़ते दिखने लगते है, एकान्त का सूनापन महसूस होता है। कभी उनकी भीगी यादों मे डूब जाते हैं। कभी भाई उनके ख़्यालों मे जलप्रलय भी महसूस कर चुके हैं। कभी कभी किसी कविता के मेढ़ मेढे़ रास्तों मे भटकते हुए सवाल करते हैं कि तुम कैसी हो ? अरे, भाई साहब चौराहे पर छोड़ने से पहले उनका फोन नम्बर ले लिया होता। अगर वो हैं तो अच्छी ही होंगी, जब आप ज़िन्दगी मे आगे बढ गये तो वो भी अपने बच्चों की शादी की तैयारी कर रही होगी, अपने पति के साथ शैपिंग कर रही होंगी और यकीन मानिये आपको बिलकुल याद नहीं करती होंगी। कविता लिखने के चक्कर मे आप अब तक उन्हीं के विचारों मे गोते खा रहे हैं।

‘’भाई साहब मै आपके लियें बहुत चिंतित हूँ’’ मैने कहा।

“ मेरी प्यारी बहन,कवि की यही तो खूबी है कि वह कल्पना के माध्यम एक ही समय एक से अधिक जीवन जी लेता है । वह एक जीवन से दूसरे जीवन विचरता है जैसे कोई एक कमरे से दूसरे कमरे जाता है और फिर पहले कमरे में लौट आता है ।‘’

मैने कहा ‘’मैने तो सुना था वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान।‘’

‘’अरे बहना ये बीते वख्त की बात हैं आजकल जो दिखता है सब असली नहीं होता है बनावटी भी हो सकता है। ।‘’ भाई साहब बोले।

मैने कहा ‘’क्या कविता भी बनावटी होती है ?’’

‘’इसे बनावटी नहीं कहते कवि की कल्पना कहते हैं।तुम्हारी तरह नहीं जो सामने दिखा उस पर कविता लिख दी।अभी कछ दिन पहले तुमने तो ‘चींटी’ पर कविता लिखी थी कल को ‘कौकरोच’ पर लिख दोगी। कविता मे थोड़ा रोमांस होना चाहिये।‘’ भाई साहब ने समझाया।

‘’भाई, जीवन मे ही रोमांस नहीं है, कविता मे कैसे लाऊँ घरवालों ने जिससे शादी करदी उनके साथ ख़ुश हूँ । कोई चौराहे पर भी नहीं छूटा था।‘’ मैने कहा।

‘’कल्पना करो, नहीं तो लिखती रहो चींटी और मक्खी मच्छर पर कविता’’ भाई साहब ने जवाब दिया।

Previous articleटूटी है किसके हाथ में तलवार देखना…
Next articleव्याकुल भारत की अकुलाहट
बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

4 COMMENTS

    • सराहना और उत्साहवर्धक प्रेरणा देने वाली टिप्पणयाँ दते रहने के लियें बहुत बहुत धन्यवाद।

  1. वाह खूब ! लेख अच्छा लगा । अब “काकरोच” पर कविता लिखियगा ।
    बधाई ।
    विजय निकोर

    • कौकरोच पर कविता लिखना बहुत मुश्किल है, कोशिश करूँगी, व्यंग रचना पसन्द आई, आभार और धन्यवाद।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here