खुद से देखो उड़ के यार
एहसासों से जुड़ के यार
जैसे गूंगे स्वाद समझते,
कह ना पाते गुड के यार
कैसा है संयोग यहाँ
सुन्दर दिखते लोग यहाँ
जिसको पूछो वे कहते कि
मेरे तन में रोग यहाँ
मजबूरी का रोना क्या
अपना आपा खोना क्या
होना जो था हुआ आजतक,
और बाकी अब होना क्या
क्यों देते सौगात मुझे
लगता है आघात मुझे
रस्म निभाना अपनापन में,
लगे व्यर्थ की बात मुझे
गीत नया तू गाना सीख
कोई नहीं बहाना सीख
बहुत कीमती जीवन के पल,
हर पल खुशियाँ लाना सीख
इक दूजे को जाना है
दुनिया को पहचाना है
फिर भी प्रायः लोग कहे कि
सुमन बहुत अनजाना है
मजबूरी का रोना क्या
अपना आपा खोना क्या
होना जो था हुआ आजतक,
और बाकी अब होना क्या
एक सुन्दर सा गीत , आभार