कविता

कविता: जब तिमिर बढ़ने लगे तो

जब तिमिर बढ़ने लगे तो दीप को जलना पड़ेगा

दैत्य हुंकारें अगर तो देव को हँसना पड़ेगा

दीप है मिट्टी का लेकिन हौसला इस्पात-सा

हमको भी इसके अनोखे रूप में ढलना पड़ेगा

रौशनी के गीत गायें हम सभी मिल कर यहाँ

प्यार की गंगा बहाने प्यार से बहना पड़ेगा

सूर्य-चन्दा हैं सभी के रौशनी सबके लिये

इनकी मुक्ति के लिये आकाश को उठना पड़ेगा

जिन घरों में कैद लक्ष्मी और बंधक रौशनी

उन घरों से वंचितों के वास्ते लड़ना पड़ेगा

लक्ष्य पाने के लिये आराधना के साथ ही

लक्ष्य के संधान हेतु पैर को चलना पड़ेगा

कब तलक पंकज रहेंगे इस अँधेरे में कहो

तोड़कर चुप्पी हमें अब कुछ न कुछ करना पड़ेगा