जांच एजेंसियों के काम में राजनीतिक हस्तक्षेप से आतंरिक सुरक्षा पर उठे सवाल

भूपेन्द्र धर्माणी

स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में उलझी मनमोहन सरकार अब सरकारी जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को लेकर उठ रहे प्रश्नों में उलझती प्रतीत हो रही है। देश के बडे प्रदेशों उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक को लेकर देश के विभिन्न राजनीति दलों के नेताओं में मची होड में आगे निकलने की तेजी दिखाई है। इस अभियान में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा पिछले लगभग एक वर्ष से लगातार भगवा आतंकवाद को लेकर छेडे गए अभियान ने पार्टी के अंदर ही एक नई बहस प्रारंभ कर दी है। इसी पृष्ठभूमि में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा देश में आतंकवाद का एक नया नामकरण किए जाने से कांग्रेस के भीतर ही कांग्रेस महासचिव की भगवा आतंकवाद की रट को लेकर संगठन में विरोधी स्वर भी अब जोर पकडने लगे हैं। इसी बीच संघ के महासचिव (सरकार्यवाह) सुरेश (भैया जी) जोशी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख राजनीतिक हितों के लिए जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। ये सभी तथ्य राजनीतिक हितों के लिए राजनेताओं की कार्यप्रणाली को लेकर अनेक प्रश् खडे करता हैं, जिससे देश की जांच एजेंसियों में राजनीतिक हस्तक्षेप से देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर भी प्रश् उठने लगे हैं।

जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को लेकर जिस प्रकार संघ के महासचिव जोशी ने प्रश् उठाए हैं, उससे कांग्रेस एक बार पुन: जांच एजेंसियों के राजनीतिक हितों के लिए दुरुपयोग के आरोपों में घिरती दिख रही है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव द्वारा जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली का जिस प्रकार विस्तृत उल्लेख कर जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर प्रश् खडे करते हुए विस्तृत निष्पक्ष जांच की मांग की है वास्तव में चौंकाने वाली है। संघ नेता ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में हालांकि कांग्रेस का कहीं भी सीधा उल्लेख करने में संयम दिखाया है और जांच एजेंसियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए जो चार प्रश् खडे किए हैं उनका उत्तर देश का प्रत्येक नागरिक जानना चाहेगा कि आखिर जनवरी 2009 में आतंकवाद निरोधक दस्ते द्वारा न्यायालय में दाखिल आरोप पत्र के साथ दिए गए सबूतों में संघ नेताओं को मारने की साजिश रचे जाने का खुलासा होने के बावजूद इस षडयंत्र को दबाया क्यों गया और इसकी विस्तृत जांच क्यों नहीं की गई? संघ नेता ने हाल ही में समाचार पत्रों में छपी खबरों का उल्लेख करते हुए सितम्बर 2008 में कर्नल पुरोहित द्वारा दयानंद पांडे के इशारे पर संघ नेता इन्द्रेश कुमार को मारने की साजिश रचने का सैन्य खुफिया रिपोर्टों का जो हवाला दिया वह इस मामले की गम्भीरता को दर्शाता है। संघ ने इन गम्भीर प्रश्नों को उठाते हुए जांच के दायरे में षडयंत्रकारियों के साथ जुडे लोगों तथा उनके सहयोगियों की वास्तविक राजनीतिक भूमिका की जांच की मांग कर देश के सत्तादल की भूमिका पर ही प्रश् खडे किए हैं। इसी प्रकार का खुलासा तहलका द्वारा छापी गई टेपों में किया गया जिनमें दर्शाया गया है कि दयानंद पांडे, कर्नल पुरोहित के तीसरे सहयोगी डा. आर पी सिंह भी संघ नेताओं को मारने की साजिश में सम्मिलित रहे, परन्तु आश्चार्यजनक रूप से आज तक किसी भी जांच एजेंसी ने उनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर पूछताछ तक नहीं की। अपने पत्र लिखने का उद्देश्य बताते हुए संघ नेता ने मालेगांव, अजमेर और हैदराबाद बम विस्फोटों के सिलसिले में की जा रही वर्तमान जांच प्रक्रिया को जानबूझकर विकृत्त करने, उसे सही मार्ग से हटाने तथा उसका राजनीतिकरण करने की कोशिशों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने के प्रयासों की ओर ध्यान आकृष्ट करना बताया है। संघ नेता का यह आरोप कि इस प्रकरण में मात्र एक सच्चाई पूरे झूठ का पर्दाफाश कर देगी कि महाराष्ट्र आतंकवादी निरोधक दस्ते के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण है कि मालेगांव केस के मुख्य षडयंत्रकारी कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडे मालेगांव विस्फोट की साजिश को अंजाम देने के साथ-साथ संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह (महासचिव) वर्तमान में संघ प्रमुख मोहन भागवत तथा संघ के वरिष्ठ नेता इन्द्रेश कुमार को जान से मारने का षडयंत्र रच रहे थे। उन्होंने पत्र में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते के एक अधिकारी द्वारा संघ के एक प्रमुख नेता को मालेगांव केस के उक्त आरोपियों की इस साजिश से अवगत कराए जाने का उल्लेख किया गया है। उन्होंने पत्र में पूछा है कि आखिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उन तत्वों के साथ कैसे जोडा जा रह है जो सदैव इसके विरुध्द रहे और उल्टे इसी के नेताओं को जान से मारने का षडयंत्र रच रहे थे। संघ नेता द्वारा यह प्रश् उठाया गया है कि महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते द्वारा संघ नेताआें को जान से मारने के षडयंत्र की जांच को क्यों छोड दिया गया और कहीं ऐसा तो नहीं कि इस पूरे षडयंत्र के उजागर हो जाने से मालेगांव षडयंत्रकारियों के साथ संघ को लपेटने की जो साजिश चल रही है वह असफल हो जाती? संघ नेता ने इस पूरे मामले की चर्चा गत वर्ष महाराष्ट- विधानसभा में होने के बावजूद राज्य तथा केन्द्र सरकारों की रहस्यमयी चुप्पी का उल्लेख कर इस पूरे मामले में सत्तादल की इसमें सहभागिता का संकेत दिया है। संघ नेता ने इस चुप्पी के पीछे छुपे राजनीतिक सम्बंधों तथा एजेंडे का पता चलाने के लिए गहराई से जांच की आवश्यकता पर बल दिया है जिससे दयानंद पांडे और कर्नल पुरोहित की गतिविधियों का खुलासा हो और पूरी सच्चाई देशवासियों के सामने आ सके। इस पृष्ठभूमि में देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार-बार विभिन्न मामलों में देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल खडे करना और एजेंसी के सरकार के दबाव में उसी दिशा में जांच करना जिस दिशा में सरकार चाहती है जैसी टिप्पणियां देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति चल रहे खिलवाड के मामले को और भी गम्भीर बनाती हैं। कहीं ऐसा तो नहीं देश में चल रहे आतंकवाद को लेकर भारत सरकार कहीं अमेरिका के दबाव में बहक गई हो और सरकार के इशारे पर जांच एजेंसियां आतंकवाद की घटनाओं में उन्हीं लोगों को लपेटने में लगी हैं, जो इन घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। नहीं तो कोई कारण नहीं कि आतंकवादी जिन संघ नेताओं को मारने की साजिश रच रहे हों और इसके प्रमाण जांच एजेंसियों के पास हों उसी संगठन को बम विस्फोटों के लिए दोषी ठहराया जाए। इसके पीछे कहीं यह नीति तो काम नहीं कर रही कि इस प्रक्रिया द्वारा कांग्रेस को मुसलमानों को लुभाकर उनके चंद वोट मिलेंगे और अमेरिका को चर्च द्वारा इस देश में चलाए जा रहे मतांतरण के अभियान हेतु खुली छूट एवं शक्ति?

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