चुनावी नतीजों से पहले उत्तराखंड की राजनीति में चल रही है बर्फीली हवाएं

नई दिल्ली : उत्तराखंड में अभी बर्फ पिघली नहीं है, मौसम सर्द है और राजनीति भी। हाल में हुए चुनाव में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी खेमे में शह और मात का खेल चल रहा है। ऐसे कयास लग रहे हैं कि बीजेपी की हालत ठीक नहीं और मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की सीट पर भी खतरा है, कहीं बीजेपी हार जाए और उसका ठीकरा खंडूरी पर न गिरे इसके लिए खंडूरी ने बीजेपी आलाकमान को लगातार बता रहे हैं कि हार का कारण भीतरघात है।

उधर , पार्टी आलाकमान खंडूरी के तर्क को सीधे सीधे मानने को तैयार नहीं है। इस चुनाव में नारा दिया गया था “ खंडूरी है जरूरी” जिससे पार्टी के आलानेता खफा हैं। सूत्रों का कहना है कि खंडूरी खेमे ने इस नारे के जरिए पार्टी कि अहमियत को कम कर दिया और एक व्यक्ति को आगे कर दिया जोकि बीजेपी में कभी नहीं हुआ है। हालांकि पार्टी में हुए भीतरघात को भी गंभीरता से लिया जा रहा है और जिस नेता ने भी पार्टी के खिलाफ काम किया है उसे सजा मिलेगी ऐसा भी एक माहौल बन रहा है।

दरअसल, चुनाव से कुछ महीनों पहले मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को हटाकर बीसी खंडूरी को एक बार फिर राज्य की बागडोर सौंपी गयी, एक बदलाव ने पार्टी में कई खेमे बना दिए, निशंक गुट, खंडूरी गुट, बच्ची सिंह रावत गुट और भगत सिंह कोशियारी गुट। जाहिर है, बीजेपी एक जुट नहीं हो पाई और उसकी चुनावी रणनीति हलकी रही। कहीं न कहीं दबी जबान में बेजीपी कार्यकर्ता मान रहे हैं कि ठीक चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का बदला जाना भी सही संकेत नहीं थे और चुनाव में जिन विकास के कामों का जिक्र हुआ वो पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल के ही थे तो ऐसे में निशंक का हटाना पार्टी कि लिये घातक साबित हो सकता है।

उधर, कांग्रेसी खेमे में अभी से जीत की आस जग गयी है। वो ये मानकर चल रहे हैं कि बीजेपी सरकार में नहीं लौटेगी और कांग्रेस ही सरकार बनाएगी, तो ऐसे में मुख्यमंत्री के नाम को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। केन्द्रीय नेता हरीश रावत से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का नाम सुर्ख़ियों में है और अभी से नेताओं ने 10 जनपथ यानी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सिपहसलारों की घेराबंदी शुरू कर दी है।

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