राजनीति चालू आहे , चलो सड़क नापते है !

                       प्रभुनाथ शुक्ल 

फिट रहना बेहद ज़रूरी है। वह सरकार हो या बस। अपन के मुलुक में फिट रहने का आजकल हर कोई मंत्र बाँटता है। यह विधा स्किल डेवलपमेंट में आती है। सरकार भी फिट और हिट रहने के लिए बाकायदा योगमंत्र बांटती रहती हैं। अपने राजनेता ट्वीटर पर वीडियो भी अपलोड करते रहते हैं। कोरोना काल में फिट और हिट का मंत्र सब की जुबान पर है। राजनेता, अभिनेता, खिलाड़ी और डाक्टर, आयुर्वेदाचार्य सब अपनी तरफ़ से ज्ञान बाँटते दिख जाएंगे। घर में रखे बुद्धू बक्से पर तो दिन भर यह मंत्र मुफ़्त में बाँटा जाता है। कहा जाता है की तंदुरूस्ती लाख नियामत है। अपने बाबा तो ट्वेंटी फोर ऑवर एक्टिव मोड पर रहते हैं। टीवी की एंकराईन की हल्की मुस्कराहट की भनक पाते ही बाबा जी अनुलोम- विलोम से शुरू हो कर यू से जेड तक बन जाते हैं। क्योंकि  कोरोना काल में इम्युनिटी बढ़ाने सवाल है। 

आजकल इंसानों के साथ बसों का भी फिटनेस माँगा जाने लगा है। क्योंकि इस दौर में फिटनेस और इम्युनिटी की सख्त ज़रूरत है। सरकारें कभी फिटनेस से समझौता नहीँ करती हैं। वह एक्स्ट्रा इनर्जी रखती हैं क्योंकि उन्हें विपक्ष के तीखे वार को झेलना पड़ता है। वह जानती हैं कि सियासत के इस दौर में फिटनेस ज़रूरी है , वरना चालाक विपक्ष से उबरना मुश्किल है। क्योंकि आजकल विपक्ष जादुई करामात से भरा है। वह तिल को ताड़ और ताड़ को तिल बनाना अच्छी तरह जानता है। वह बसों को टेम्पो, टेम्पो को बाइक और बाइक को स्कूटी बनाने में माहिर है।  इस तरह की अचानक आयीं सियासी आपदाएं सरकार को मुश्किल में डालती हैं। फ़िर सरकार को दोष देना उचित नहीँ है। 

देखिए! आजकल सरकारें जनता से कम विपक्ष से अधिक परेशान हैं। क्योंकि जनता तो बेचारी है और कोरोना की मारी है। लेकिन विपक्ष की साजिश से लड़ने के लिए सरकार की इम्युनिटी दुरुस्त होनी चाहिए। विपक्ष सरकारों को बदनाम करने की जुगत खोजती रहती है। वह बस को टेम्पो इसी तरह बनाती रहती है। अब सरकार सतर्क न रहती तो जाने क्या हो जाता। सरकार की इसी सतर्कता से विपक्ष की साजिश बेनकाब हो गई। अरे भाई सवाल मजदूरों की सुरक्षा का है। मजदूरों की सुरक्षा सरकारों का दायित्व है। जिंदा न सही तो मुर्दा ही सही उन्हें घरों तक पहुँचाना राष्ट्रीय कर्तव्य है। क्योंकि चुनावों के दौरान किए गए वादों का यह पवित्र मौसम है। 
आप क्या चाहते हैं कि सरकार राजनीति के बजाय सिर्फ मजदूरों को भेजने पर अपना ध्यान देती। लेकिन कोई हादसा हो जाता तो विपक्ष सरकार पर तीखा हमला बोल देता। राजनीति का नया दौर शुरू हो जाता। सरकार जब तक हादसे और मामले की जांच का आदेश देती उसके पहले विपक्ष बसों की दूसरी सूची पेश कर देता कि हमने तो सारी की सारी बसें उपलब्ध कराई थी। यह हादसा कैसे हुआ। निश्चित रुप से यह सरकार की साजिश हो सकतीं है। फ़िर सरकार तो सरकार होती है। विपक्ष की यहीं जिम्मेदारी तो सरकार पूर्व में निभा कर आती है। क्योंकि आज की सरकार भी कल की विपक्ष होती है। शायद विपक्ष यह बात समझने में नाकाम रहा है। 

इसिलए सरकार बार- बार बसों के फिटनेस की माँग करती हैं। सरकारों को विपक्ष की गहरी साजिश हमेशा सतर्क मोड पर रखती है। उसे पता है कि दो माह के कोरोना काल में सरकार इतनी बस उपलब्ध नहीँ करा पाई तो विपक्ष कहाँ से बसों की कतार खड़ा कर दिया। वह अपने नाक पर मख्खी कैसे बैठने देगी। विपक्ष की तरफ़ से बसों की सूची आने भर की देर थी। पोस्टमॉर्टम तो पल भर में हो गया। फ़िर सियासत का डंडा एक दूसरे पर चलने लगा। अरे भाई! चले भी क्यों ना। सवाल गरीब मजदूरों की सुरक्षा और अधिकार का है। 

गरीब और मजदूरों के नाम की पवित्र माला जप सरकारें बनती बिगड़ती रहीं हैं। फ़िर बसें दूसरे राज्य से आई थी। वहां विपक्ष की सरकार हैं। सरकारी सूत्रों का कहना था कि बसें कोरोना संक्रमित हो सकतीं थी। बेचारे मजदूर भी इस साजिश का शिकार हो सकते थे। सरकार की फजीहत सो अलग से होती। लिहाज़ा सरकार ने फिटनेस की जांच करा कम से कम ख़ुद को तो सुरक्षित कर लिया। उधर बेचारे मज़बूर मजदूर सड़क नापने को मजदूर थे। उनका कहना था कि अभी चलते रहो क्योंकि राजनीति चल रहीं है। जब बस चलेगी तो देखा जाएगा। राजनीति के लिए यह आपदा में अवसर तलाशने का वक्त है। अभी चुनाव दूर हैं इसलिए हम मजदूर कम मज़बूर अधिक हैं। समझे साधो! 

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