गौरीशंकर दुबे
आलू-प्याज शाश्वत है, जैसे सूर्य-चन्द्र । कालजयी सब्जी हैं । समय-समय पर दोनों अपना रंग दिखाते रहते हैं। कभी आलू बेकाबू हो जाता है तो कभी प्याज बरसाती नदी की तरह विकराल रूप धारण कर लीलने को तैयार रहता है। आलू-प्याज का यह खेल अक्सर चुनावी समय में दिखाई देता है। प्याज तो इस खेल में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेता है। प्याज एक ऐसी सब्जी है जिसके बिना सब फीका है। लगभग दस – बीस प्रतिशत लोगों साधु संत अथवा ज़्यादा ब्राम्हणत्व दिखाने वालों को छोड़कर अस्सी प्रतिशत लोगों के भोजन बिना प्याज बेकार।
प्याज सबसे ज्यादा शक्तिशाली बम है। इसमें वह ताकत है कि वह तख्तापलट कर सकता है। सत्तासीन सड़क में आ जाते हैं। जो इसे तुच्छ समझा ,वह गया। सत्तासीन क्या जाने प्याज क्या है । अंतिम आदमी के थाली से बाहर हुआ कि सरकार बाहर। मामूली नहीं है प्याज। बिना प्याज के बड़ा, भजिया, आलूपोहा कोई भी सब्जी व्यर्थ। पेज – बासी, मुर्रा हाड़तोड़ मेहनत करनेवाले का स्वाद बेकार। मिठाई, पेट्रोल, विलासी वस्तुओं से उसे कोई मतलब नहीं , नमक-मिर्च और प्याज चाहिए । प्याज भी छिनकर सरकार चलती है क्या? आलू से कोई असर नहीं पर प्याज का लापता होना अच्छे दिन?
प्याज अच्छे – अच्छो को पानी पिला चुका है। सबकी हेकड़ी निकल जाती है। एक बार तो प्याज का विश्व में सबसे बड़ा स्टैचू बनाकर उसका रथयात्रा देशभर में निकल चुका है। मेरे नज़र में प्याज महान है। चाबुक है। बिगड़ैलो को लाईन में लाकर खड़ा कर देता है। सरकार सीधी सब सीधे। लाल-लाल, गोल-मटोल मटमैले बालों वाला ऊर्व्धाकार आसमान की ओर हाथों को उठाये समय-समय पर आकश छूने को लालायित रहता है। घर मोहल्ला शहर बाजार राज्य देश भर में हाहाकार मचा देता है।प्याज बाबा का खेल अद्भुत है। थाली से गायब होते ही पूरा का पूरा तंत्र उसे थाली में वापस लाने लग जाता है। रातों की नींद हराम हो जाती है। काम-काज संसद सरकार में केवल यही चर्चा । प्याज के सामने सोने की चमक फीकी पड़ जाती है। जहां प्याज भारत में उछला, सोना लुढ़का। सोने को कोई नहीं पूछने वाला । प्याज का महत्व बढ़ जाता है। कहीं – कहीं तो प्याज की स्थापना करके सुबह-शाम पूजा – पाठ शुरू कर देते हैं। शायद इसी से प्याजदेव प्रसन्न होकर पुन:सबकी थाली में वापस आ जाए।
सब्जियों में केवल प्याज ही है जिसे काटो तो आंसू निकलते हैं। प्याज और आंसू का अजीब संबंध है। दोनों की जुगलबंदी प्रसिद्ध है। आलू काटो तो आंसू नहीं आते,पालक काटो तो आंसू नहीं निकलते, गोभी, लौकी, मुनगा सलाद में आंसू नहीं निकलते। मात्र प्याज है जिसे काटो तो आंसू आते हैं। साल दो, तीन,चार सालों बाद प्याज ऐसे उछलता है कि सबके आंखों में आंसू आने लगते हैं । यह दैनिक , सामयिक , पाक्षिक, मासिक नहीं बल्कि चार पांच सालों में सतत होते रहता है। समस्या नयी नहीं, पुरातात्त्विक महत्व की है । आज जो प्याज रथयात्रा निकाला, वह जीता। प्याज की रैली जरूरी है। प्याज अपराजेय है। प्याज से कोई शत्रुता नहीं कर सकता । शत्रु विहीन है प्याज।
प्याज एक लोकतांत्रिक सब्जी है। आम लोगों की, अंतिम आदमी की सब्जी। प्याज ठीक-ठाक है तो लोकतंत्र ठीक है। प्याज गड़बड़ाया तो लोकतंत्र फेल। सार्वभौमिक, धर्मनिरपेक्ष सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगों को इसकी जरूरत होती है। एकता अखंडता का परिचायक है प्याज । सबको एक सूत्र में बांधकर रखने वाला प्याज, चाहे झालमुरी वाला हो या पावभाजी वाला, गुपचुप वाला। कांग्रेसी हो, भाजपाई, समाजवादी, शिवसैनिक आदि आदि। प्याज सस्ता है तो लोकतंत्र स्वस्थ समृद्ध है। प्याज महंगा हुआ लोकतंत्र बीमार। डेंगू , हैजा, मलेरिया ग्रस्त। प्याज लाइन में होना चाहिए नहीं तो लोकतंत्र की ट्रेन पटरी से नीचे। यह सब थोथी बकवास नहीं बल्कि दीर्घ शोध का निचोड़ है। प्याज ही सत्य, सुंदर शिव है।
गौरीशंकर दुबे