तंबाकू निषेध कोरा दिखावा नहीं, संकल्प बने

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विश्व तंबाकू निषेध दिवस, 31 मई, 2020 पर विशेष
– ललित गर्ग –

विश्व जहां कोरोना महामारी से जूझ रहा है, वहीं ऐसी ही गम्भीरतम महामारी है तम्बाकू और उससे जुड़े नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन में निरन्तर वृद्धि होना। वैश्विक स्तर पर तंबाकू उपभोग कम करने वाली प्रभावी नीतियों के लिए वकालत करने और तंबाकू उपभोग से जुड़े स्वास्थ्य और अन्य जोखिमों को उजागर करने के लिए प्रतिवर्ष 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्ष 1987 में तंबाकू प्रकोप और निवारण योग्य  मृत्यु एवं उसके कारण होने वाले रोगों के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया था। पूरे विश्व के लोगों को तंबाकू मुक्त और स्वस्थ बनाने हेतु तथा सभी स्वास्थ्य खतरों से बचाने के लिये तंबाकू चबाने या धूम्रपान के द्वारा होने वाले खतरों से सावधान करने के लिये इस दिवस की प्रासंगिकता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
तंबाकू सेवन से करीब 25 तरह की जानलेवा शारीरिक बीमारियां और करीब 40 तरह के कैंसर होने की संभावनाएं हैं। डब्ल्यूएचओ की घोषणा के आधार पर इस समय समूचे विश्व में हर साल 50 लाख से अधिक व्यक्ति धूम्रपान के सेवन के कारण अपनी जान से हाथ धो रहे हैं। अगर इस समस्या को नियंत्रित करने की दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो साल 2030 में धूम्रपान के सेवन से मरने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रतिवर्ष 80 लाख से अधिक हो जायेगी। विडम्बना है कि मौत का अंधेरा सामने दिखाई दे रहा है, फिर भी इसका प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। विशेषतः युवा पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में तम्बाकू का आदी हो चुका है। बीड़ी-सिगरेट के अलावा तम्बाकू के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है। सरकार की नीतियां भी दोगली है। एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे आदर्श हो सकता है? कैसे स्वस्थ हो सकता है? कैसे प्रगतिशील हो सकता है? यह समस्या केवल भारत की ही नहीं है, बल्कि समूची दुनिया इससे पीड़ित, परेशान एवं विनाश के कगार पर खड़ी है।
पूरे विश्व में तंबाकू का सेवन पूरी तरह से रोकने या नशे की विकृति को कम करने के लिये व्यापक प्रयत्नों की जरूरत है। तंबाकू इस्तेमाल के नुकसानदायक प्रभाव के संदेश को फैलाने के लिये वैश्विक तौर पर लोगों का ध्यान खींचना इस दिवस का लक्ष्य है। इस अभियान में कई वैश्विक संगठन शामिल होते हैं जैसे राज्य सरकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन आदि विभिन्न प्रकार के स्थानीय लोक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं। लेकिन यह विडम्बनापूर्ण है कि सरकारों के लिये यह दिवस कोरा आयोजनात्मक है, प्रयोजनात्मक नहीं। क्योंकि सरकार विवेक से काम नहीं ले रही है। शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए? हाल ही में हमने कोरोना लाॅकडाउन के दौरान शराब की बिक्री को खोलने की विवशता एवं उसके घातक परिदृश्यों को हमने देखा। नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण हम एक स्वस्थ नहीं, बल्कि बीमार राष्ट्र एवं समाज का ही निर्माण कर रहे हैं।
कितने ही विश्वप्रसिद्ध खिलाड़ी, गायक, सिनेमा कलाकार नशे की आदत से या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं या बरबाद हो चुके हैं। नशे की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की ये प्रतिभाएं कीर्तिमान तो स्थापित कर सकती हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पा रही हैं। नशे की ओर बढ़ रही युवापीढ़ी बौद्धिक रूप से दरिद्र बन जाएगी। जीवन का माप सफलता नहीं, सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं?
जब हम कोरोना जैसी महामारी को समाप्त करने के लिये वैश्विक स्तर वातावरण निर्मित कर सकते है तो तंबाकू सेवन के प्रयोग पर बैन या इसे रोकाने के अभियान को क्यों नहीं जीवंत कर पा रहे हैं? क्योंकि तम्बाकू कई सारी बीमारियों का कारण बनता है। तंबाकू का सेवन कई रूपों में किया जा सकता है जैसे सिगरेट, सिगार, बीड़ी, मलाईदार तंबाकू के रंग की वस्तु (टूथ पेस्ट), क्रिटेक्स, पाईप्स, गुटका, तंबाकू चबाना, सुर्ती-खैनी (हाथ से मल के खाने वाला तंबाकू), तंबाकू के रंग की वस्तु, जल पाईप्स, स्नस आदि।
तम्बाकू का उपयोग करने से मरने वालों की संख्या चैंकाती रही हैं। कितने ही परिवारों की सुख-शांति ये तम्बाकू उत्पाद नष्ट कर रहे हैं। बूढ़े मां-बाप की दवा नहीं, बच्चों के लिए कपड़े-किताब नहीं, पत्नी के गले में मंगलसूत्र नहीं, चूल्हे पर दाल-रोटी नहीं, पर नशा चाहिए। अस्पतालों के वार्ड ऐसे रोगियों से भरे रहते हैं, जो अपनी जवानी नशे को भेंट कर चुके होते हैं। ये तो वे उदाहरणों के कुछ बिन्दु हैं, वरना करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार धूम्रपान की लत से हर साल लगभग 60 लाख लोग मारे जा रहे हैं और इनमें से अधिकतर मौतें कम तथा मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं। डब्ल्यूएचओ के अध्यक्ष पद पर अब भारत आसीन है, इस गंभीर समस्या से निजात दिलाने का रोडमैप सामने आना ही चाहिए। क्योंकि डब्ल्यूएचओ के द्वारा केवल चिन्ता व्यक्त करने से काम नहीं चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने ही होंगे। क्योंकि उसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 92 देशों के 2.3 अरब लोगों को धूम्रपान पर किसी न किसी तरह लगाए गए प्रतिबंधों से लाभ हुआ है।
तम्बाकू का कहर समूची मानवता को लील रहा है, सिगरेट या बीड़ी का धुआं किसी मजहब और प्रांत को नहीं पहचानता, किसी आरक्षण या राजनीतिक झुकावों को नहीं जानता। वह किसी अमीर और गरीब में भी भेद नहीं करता, उसका सबके लिए एक ही मेसेज है, और वह है मौत। किन्तु दुर्भाग्यवश इस गलत आदत को स्टेटस सिंबल मानकर अक्सर नवयुवक अपनाते हैं और दूसरों के सामने दिखाते हैं। कई ऐसे हॉलिवुड सिंगर्स हैं जिन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि अधिक धूम्रपान करने से उनकी आवाज खराब हुई। इससे प्रजनन शक्ति कम हो जाती है। यदि कोई गर्भवती महिला धूम्रपान करती है तो या तो शिशु की मृत्यु हो जाती है या फिर कोई विकृति उत्पन्न हो जाती है। लंदन के मेडिकल जर्नल द्वारा किये गये नए अध्ययन में पाया गया कि धूम्रपान करने वाले लोगों के आसपास रहने से भी गर्भ में पल रहे बच्चे में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉ. जोनाथन विनिकॉफ के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता-पिता दोनों को स्मोकिंग से दूर रहना चाहिए।
स्कूलों के बाहर नशीले पदार्थों की धडल्ले से बिक्री होती है, किशोर पीढ़ी धुए में अपनी जिन्दगी तबाह कर रही है। हजारों-लाखों लोग अपने लाभ के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। चमड़े के फीते के लिए भैंस मारने जैसा अपराध कर रहे हैं। बढ़ती तम्बाकू प्रचलन की समस्या विश्व की सबसे भयंकर समस्या के रूप से मुखर हुई है। लगता है विश्व जनसंख्या का अच्छा खासा भाग नशीले पदार्थों के सेवन का आदी हो चुका है। अगर आंकड़ों को सम्मुख रखकर विश्व मानचित्र (ग्लोब) को देखें, तो हमें सारा ग्लोब नशे में झूमता दिखाई देगा। कोरोना एवं आतंकवाद की तरह नशीले पदार्थों की रोकथाम के लिए भी विश्व स्तर पर पूरी ताकत, पूरे साधन एवं पूरे मनोबल से एक समन्वित लड़ाई लड़नी होगी। वरना कुछ मनुष्यों की धमनियों में फैलता हुआ यह विष विश्व स्वास्थ्य को निगल जाएगा और लाखों-लाखों प्रयोगशालाओं में नई दवाओं का आविष्कार करते वैज्ञानिक समय से बहुत पिछड़ जाएंगे। एक दिन तम्बाकू निषेध दिवस मनाने से नशा मुक्ति की सशक्त स्थिति पैदा नहीं की जा सकती पर नशे के प्राणघातक परिणामों के प्रति ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। 

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