क्वारंटाईन की परंपरा आज की नहीं!

0
188

लिमटी खरे

कोरोना कोविड 19 वायरस के प्रकोप के चलते क्वारंटाईन या हाऊस आईसोलेशन का चलन बहुतायत में हो रहा है। मीडिया में इन दोनों शब्दों का प्रयोग होने से आज की युवा पीढ़ी के मन में उपज रहे ये नए शब्द कौतुहल पैदा कर रहे हैं। युवा पीढ़ी का कौतुहल इस बात का घोतक है कि हमने उन्हें अपनी पुरातन संस्कृति, संस्कार, किस्से, कहानियों आदि से किस कदर महरूम रखा है।

दरअसल क्वारंटाईन अर्थात संगरोध विश्व के लिए नई बात नहीं है। भारतीय इतिहास में भी यह काफी पहले से ही दर्ज रहा है। इक्कीसवीं सदी के पहले जब भी संक्रामक रोगों का हमला होता था उसके बाद क्वारंटाईन का प्रयोग किया जाता था, क्योंकि उस दौर में इस तरह के रोगों के लिए न तो दवाएं थीं, न ही उपचार। इसके चलते रोगी और स्वस्थ्य व्यक्ति के बीच इसके फैलाव को रोकने का यही कारगर उपाय होता था।

भारत देश में भी जन्म से लेकर मृत्यु तक क्वारंटाईन के लिए सूतक शब्द का प्रयोग होता आया है। बच्चे के जन्म के उपरांत जच्चा बच्चा दोनों को लगभग एक माह तक प्रथक कक्ष में रखकर नवजात और उसकी माता को हर तरह के संक्रामक से बचाने के लिए तरह तरह की औषधियों की धूनी दी जाती है, इन औषधियों से जच्चा बच्चा को स्नान भी कराया जाता है।

क्वारंटाईन की तरह में अगर जाया जाए तो यह लैटिन भाषा का एक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ चालीस होता है। उस दौर में चालीस दिनों तक किसी भी संक्रामक रोग से ग्रसित रोगी को चालीस दिनों तक अन्य स्वस्थ्य व्यक्तियों से प्रथक रखा जाता था।

बीसवीं सदी के लगभग मध्य तक वैश्विक व्यापार एवं आवागमन के लिए पानी के जहाज ही मुख्य साधन हुआ करते थे। उस दौर में जब किसी के गंभीर या संक्रामक रोग से ग्रसित होने की जानकारी मिलने पर उस व्यक्ति अथवा जहाज को चालीस दिनों तक बंदरगाह पर लाने की मनाही हुआ करती थी। इस दौर में जहाज पर सवार लोगों या गंभीर अथवा संक्रामक बीमारी से ग्रसित रोगी को चालीस दिनों तक चिकित्सकीय सहायता या अन्य जरूरी चीजों को जहाज तक भेजा जाता था। जहाज बंदरगाह से दूर ही लंगर डालकर खड़े रहा करते थे।

इतिहास को अगर खंगाला जाए तो इंग्लेण्ड को जब प्लेग नामक रोग ने अपनी चपेट में लिया, उसके बाद क्वारंटाईन करने का आगाज हुआ था। आज भी समुद्रों में दो देशों की जलसीमाओं में क्वारंटाईन की जांच के बाद ही प्रवेश दिए जाने का प्रावधान है। अगर किसी जहाज में कोई संक्रामित मरीज है तो जहाज पर पीला झंडा फरहाकर इसकी सूचना दी जाती है। हवाई यात्रा में भी संक्रामक रोग संबंधी टीका लगाए जाने का प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही किसी देश की सीमा में प्रवेश दिए जाने का प्रावधान है।

इतिहास में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि महात्मा गांधी अपनी अर्धांग्नी एवं बच्चों के साथ जब समुद्र मार्ग से दक्षिण आफ्रीका पहुंचे तब उन्हें भारत में प्लेग के फैलने के कारण क्वारंटाईन कर दिया गया था। बापू ने इस आदेश का सम्मान किया और क्वारंटाईन की अवधि में अपने आपको एकांतवास में ही रखा।

देखा जाए तो कोरोना कोविड 19 के संक्रामण के चलते अब भारतीय परंपरा पर एक बार फिर वैश्विक मुहर लगी है। गले लगकर, गाल से गाल स्पर्श कराकर, हाथ मिलाकर अभिवादन या स्वागत करने की पश्चिमी सभ्यता को देश ने मानो अंगीकार कर लिया है। इस वायरस के संक्रामण के चलते अब पूरा विश्व भारत में स्वागत करने की परंपरा अर्थात नमस्ते को अपना रहा है। पुरातन काल में घर से निकलते और घर वापस आने के उपरांत घर के बाहर ही स्नान की परंपरा थी। यह परंपरा भी आज सारगर्मित होती दिख  रही है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

Previous articleमुलाकात
Next articleकोरोना पर लगाम के लिए धारा 188 मजबूत ‘हथियार’
लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here