प्रश्न संविधान के मंदिर की मर्यादा का

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सत्रहवीं लोकसभा अस्तित्व में आ चुकी है। इस बार की लोकसभा में जहाँ कई नए चेहरे चुनाव जीत कर आए हैं वहीं कई अतिविवादित लोगों को भी देश की जनता ने निर्वाचित किया है। बहरहाल,जनभावनाओं का सम्मान करते हुए तथा निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा को प्रेषित की गई निर्वाचित सांसदों की नई सूची के अनुसार पिछले दिनों नव निर्वाचित सांसदों ने शपथ ली। परन्तु अफ़सोस की बात यह है कि इस बार सांसदों का लोकसभा की सदस्यता ग्रहण करना जितना विवादित व शर्मनाक रहा उससे निश्चित रूप से देश के संविधान का मंदिर समझी जाने वाली भारतीय संसद अत्यंत शर्मिंदा हुई। सबसे पहला विवाद तो भोपाल से चुनी गई भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर की शपथ को लेकर हुआ जबकि उन्होंने अपना नाम प्रज्ञा सिंह ठाकुर लेने के बजाए संस्कृत में शपथ लेते हुए कुछ इन शब्दों में शपथ की शुरुआत की -‘मैं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर स्वामी पूर्ण चेतनानंद अवधेशानंद गिरि लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेती हूँ ‘  । प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा अपना उक्त पूरा नाम लिए जाने पर विपक्षी सदस्यों द्वारा टोका टाकी शुरू कर दी गई और उनके इस नाम का विरोध किया गया।  विपक्षी सदस्य  प्रज्ञा सिंह ठाकुर  द्वाराअपने  नाम के साथ अपने गुरु का  नाम जोड़े जाने का विरोध कर रहे थे। जबकि लोकसभा के अधिकारियों ने उनसे अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम जोड़ने का अनुरोध किया। ग़ौरतलब है कि मध्य प्रदेश के भिण्ड ज़िले में जन्मी प्रज्ञा ठाकुर के पिता का नाम सी पी ठाकुर है जबकि अवधेशानंद गिरि उनके अध्यात्मिक गुरु हैं। 
               लोकसभा में विवादों का सिलसिला यहीं नहीं थमा बल्कि इसके अगले दिन भी संविधान का यह मंदिर धर्म का अखाड़ा बनता दिखाई दिया। जिस संसद में केवल जयहिंद या भारत माता की जय के नारों की गूँज सुनाई देनी चाहिए थी अथवा अनुशासनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो निर्वाचित माननीयों द्वारा केवल शपथ पत्र में दिए गए निर्धारित वाक्यों व शब्दों मात्र का ही उच्चारण किया जाना चाहिए। उसी संसद में राधे राधे ,जय मां दुर्गा ,जय श्री राम ,अल्लाहु अकबर तथा हर हर महादेव के नारे सुनाई दिए। अफ़सोस की बात तो यह है कि संसद में इस प्रकार का उत्तेजनात्मक वातावरण पैदा करने वाले बेशर्म माननीयों को उस समय बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में राजनीतिज्ञों की असफलता का वह  कुरूप चेहरा भी याद नहीं आया जिसने कि लगभग 150 मासूम बच्चों की जान ले ली। ऐसे सभी अनुशासनहीन सांसद देश के संविधान की धज्जियाँ उड़ाने में व्यस्त थे। कल्पना की जा सकती है कि जब शपथ ग्रहण के दौरान ही अर्थात संसद के पहले व दूसरे दिन ही इनके तेवर ऐसे हैं तो आने वाले पांच वर्षों में इनसे क्या उम्मीद की जानी चाहिए। शिकायत इस बात को लेकर भी है कि जिस समय माननीयों द्वारा शपथ ग्रहण के दौरान इस प्रकार की असंसदीय नारेबाज़ी की जा रही थी अर्थात अनुशासन की  धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं उस समय लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर भी असहाय दिखाई दे रहे थे तथा उनहोंने भी सदस्यों के इस असंसदीय व्यवहार की न तो आलोचना की न ही उनहोंने इसे रोकने का अनुरोध किया। 
                पश्चिम बंगाल में हुआ इस बार का लोकसभा चुनाव अन्य राज्यों के चुनाव की तुलना में सबसे अधिक विवादित व हिंसक रहा। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में चुनाव को ऐसा रूप दे दिया था गोया भाजपा भगवान श्री राम की पक्षधर है और वहां की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस राम विरोधी है। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में चुनावप्रचार के दौरान भी न सिर्फ़ जय श्री राम के नारों का भरपूर प्रयोग किया बल्कि कई जगह अपने जुलूसों में भगवान राम व रामायण के  विभिन्न पात्रों को भी भगवा वेश भूषा में प्रस्तुत किया। गोया पूरे चुनाव को धार्मिक रंग देने की कोशिश की गई। निश्चित रूप से इसी रणनीति के परिणामस्वरूप भाजपा को पश्चिम बंगाल में 18 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। जय श्री राम के नारों की गूंज संसद में उस समय भी बार बार सुनाई दे रही थी जबकि पश्चिम बंगाल के भाजपाई सांसद लोकसभा की सदस्य्ता की शपथ ले रहे थे। हुगली से भाजपा के सांसद लॉकेट चटर्जी ने तो शपथ लेने के बाद जय श्री राम ,जय मां दुर्गा,जय माँ काली के भी जयकारे जय हिन्द व भारत माता की जय के साथ लगवा दिए। उधर गोरखपुर के निर्वाचित सांसद रवि किशन का नाम आते ही सदन हर-हर महादेव के नारों से गूंजने लगा. शपथ के बाद रविकिशन ने भी उत्साह में आकर हर-हर महादेव, जय पार्वती तथा गोरखनाथ की जय के नारे लगवाए. उसके बाद उन्होंने लोकसभा के सदस्यता रजिस्टर पर अपने हस्ताक्षर किये. यहां तक की सांसद हेमा मालिनी ने भी शपथ के अंत में राधे-राधे का जयघोष किया. पिछले लोकसभा में अनेक विवादित बयानों के लिए अपनी पहचान बनाने वाले साक्षी महाराज ने संस्कृत भाषा में शपथ ली और अंत में जय श्री राम का उद्घोष किया. परन्तु जब वे शपथ ले चुके, उस समय संसद में मंदिर वहीँ बनाएंगे के नारे भी गूंजने लगे.                 जय श्री राम और वन्दे मातरम जैसे नारों की गूँज केवल उसी समय नहीं सुनाई दी जबकि कई भाजपाई सांसद शपथ ले रहे थे बल्कि यह जयकारे उस समय भी लगाए गए जबकि हैदराबाद के एम् आई एम् के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का नाम शपथ लेने हेतु पुकारा गया। साफ़तौर से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नशे में चूर नवनिर्वाचित सत्तारूढ़ सांसदों द्वारा विपक्षी सांसदों को छेड़ा या चिढ़ाया जा रहा हो ।  जैसे ही ओवैसी शपथ लेने के लिए आगे बढ़े, उसी समय संसद में जय श्री राम और वन्दे मातरम के नारे गूंजने लगे।  देश की संसद को ‘धर्म संसद ‘ बनते देख ओवैसी भी स्वयं को विवादों से नहीं बचा सके। उन्होंने भी अल्लाहु अकबर का नारा लोकसभा में उछाल दिया।  ओवैसी को देखकर जय श्री राम का नारा लगाने वालों से ओवैसी ने इशारों से और अधिक नारा लगाने के लिए भी कहा।  परन्तु साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुझे देखकर ही भाजपा के लोगों को जय श्री राम की याद आती है।  यदि ऐसा है तो यह अच्छी बात है और मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं है।  परन्तु अफ़सोस इस बात का है कि उन्हें बिहार में हुई बच्चों की मौत याद नहीं आ रही है।  ऐसी ही स्थिति संभल से निर्वाचित सांसद शफ़ीक़ुर रहमान बर्क़ के शपथ के दौरान भी पैदा हुई।  उन्होंने भारतीय संविधान को तो ज़िंदाबाद कहा परन्तु वन्दे मातरम कहने पर ऐतराज़ जताया।  उनकी इस बात से असहमति जताते हुए सत्ताधारी भाजपा सदस्यों ने शेम शेम के नारे लगाए।  केवल सोनिया गाँधी की शपथ के दौरान न केवल कांग्रेस सदस्यों बल्कि सत्ताधारी व  विपक्षी समस्त सांसदों ने तालियां बजाकर सोनिया गाँधी द्वारा हिंदी में शपथ लिए जाने का ज़ोरदार स्वागत किया। 
                     17 वीं लोकसभा की शुरुआत के पहले ही दिनों में जब माननीयों की अनुशासनहीनता के ऐसे रंग ढंग दिखाई दे रहे हों तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस सद्भावनापूर्ण अपील पर कितने खरे उतरेंगे जो उन्होंने संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद केंद्रीय कक्ष में दिए गए अपने पहले भाषण में की थी।  देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रज्ञा ठाकुर जैसी उस सांसद के निर्वाचन पर ही आश्चर्यचकित है जो कि ना केवल मालेगाँव बम ब्लास्ट की आरोपी रही हैं बल्कि शहीद हेमंत करकरे को श्राप दिए जाने तथा नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताये जाने जैसे अतिविवादित बयानों के लिए भी सुर्ख़ियों में रही हैं।  आने वाले पांच वर्षों में यह सांसद देश के समक्ष अनुशासन की कैसी मिसाल पेश करेंगे, इसका ट्रेलर शुरुआती दिनों में ही देखा जा चुका है। निश्चित रूप से यदि यह माननीय इसी तरह बेलगाम रहे तो देश के संविधान के  मंदिर की मर्यादा पर ज़रूर प्रश्न चिन्ह लग सकता है। 
निर्मल रानी 

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