राजनीति

राहुल गाँधी की लोकप्रियता के मायने

–पंकज चतुर्वेदी

भारतीय उप-महाद्वीप में राजनितिक परिवारों से राजनेताओं के आने का सिलसिला बहुत पुराना है। पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो के परिवार से बेनज़ीर, दामाद आसिफ जरदारी तो है ही और अब नाती बिलावल और उसकी बहने बख्तावर और आसिफा भी पाक राजनीति जमात में शामिल होने को तैयार हैं, बस इनकी उम्र इन्हें रोक रही क्योकि ये सब अभी पाक की सरकारी राजनीतिक उम्र पच्चीस से छोटे हैं। ऐसा ही कुछ श्रीलंका में भी है जहाँ भंडारनायके दंपत्ति प्रधानमंत्री रहे, तो पुत्री चन्द्रिका कुमारतुंगे भी प्रधानमंत्री बनी एवं पुत्र अनुरा भंडारनायके संसद के अध्यक्ष से लेकर मंत्री के पद तक रहें।

बंगलादेश में संस्थापक मुजीब की पुत्री शेख हसीना वाजेद तो अभी सरकार की मुखिया है तो उनके पुत्र संजीब वाजेद जोय भी अपनी माँ की विरासत को सहेजने और सम्हालने के प्रयास में है। इसी तरह से हम ज़ियाउर्रहमान की पत्नी खालिदा ज़िया को भी इस फेहरिस्त में शामिल कर सकते हैं। उप-महाद्वीप के इन देशो में लोकतंत्र हमेश से ही कमजोर रहा है, कही सैनिक शासन तो कहीं आतंकवाद ने लोकतंत्रों को चुनौती दी है।

हमारा भारत लोकतंत्र के मामले में सौभाग्यशाली है, अनेक प्रहारों और चोटों के बाद भी हमारा लोकतंत्र आज भी मजबूत है।

इस सशक्त लोकतंत्र में गत दिवस भारत के एक बड़े मीडिया समूह द्वारा कराये गए आंकलन में, भारतीय जनमानस ने आपने जननेता के रूप में राहुल गांधी की स्थापना से अब भारत की राजनीति और राजनेताओ को अपनी दिशा और दशा बदलने का एक बड़ा संकेत दिया है। इस आंकलन के अनुसार राहुल गाँधी भारत के तमाम राजनीतिज्ञों में जनप्रियता के मामले में शीर्ष पर है।

भारत के सबसे बड़े राजनितिक परिवार से जुड़े होने वाले राहुल ने अनेको बार यह स्वीकार है कि उन्हें नेहरु-गाँधी परिवार का अंश-वंश होने का लाभ मिला है, पर इसके साथ साथ हमें यह भी स्वीकारना होगा कि इस विशेषाधिकार के बाद भी राहुल गाँधी ने स्वयं को भारत के जन मानस का नेता साबित करने के लिए कठोर परिश्रम और प्रयास किये है।

एक अरब से अधिक आबादी के इस देश में राजनीति करना बहुत आसान है ,पर जनता में लोकप्रियता प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। लेकिन अपनी विशिष्ट राजनितिक शैली के आधार पर राहुल गाँधी ने इस दिशा में बहुत प्रगति करी है।देश के उन्नीस राज्यों से लिए गए इन आंकड़ों में युवाओं, पुरुषों एवं महिलाओ सभी वर्गों में राहुल कि लोकप्रियता में जबरदस्त उछाल देख गया है।

राहुल ने राजनितिक बदलाव कि शुरुआत अपने ही दल से करी, और इस परिवर्तन एवं प्रयोग के लिए कांग्रेस कि राजनितिक –पौधशाला छात्र संगठन एन.एस.यू.आई .और युवा कांग्रेस पर विशेष ध्यान केंद्रित किया और बड़े नेताओ के पट्ठो के स्थान पर भारत के अनेक राज्यों में अब इन दोनों संगठनो में एक आचार संहिता के तहत विधिवत लोकतान्त्रिक पद्धत्ति से निर्वाचित साधारण और अराजनैतिक पृष्ठभूमि के प्रतिभाशाली युवक –युवतियाँ भी सामने आ रहे हैं। जिसका फायदा यह होगा कि आने वाले समय में कांग्रेस के नेता यही से निकलेंगे और यदि पौधशाला अच्छी और उन्नत है, तो परिणाम भी अच्छे होंगे। यद्यपि परिवर्तन कि प्रकिया सहज नहीं होती है, इसमें बहुत सी अड़चने और परेशानियां सामने आती है। फिर भी राहुल अपनी धुन के पक्के है और उन्होंने इस और बड़ी तेजी से कदम बढ़ाये है।

इसके साथ ही राहुल भारत भर में लगातार घूम घूमकर आम आदमी से सीधा संवाद स्थपित कर रहे है, तो कही किसी दलित या अदिवासी के घर भोजन और प्रवास ,और उनकी यही शैली उन्हें जनता में लोकप्रिय बना रही है। राहुल के विरोधी भले उनकी इस कार्य पद्धत्ति का मजाक बनाये, पर राहुल जानते है कि देश हित में क्या भला और क्या बुरा हैं। आज सुरक्षा कारणों से तमाम बड़े नेता जनता से सीधे नहीं मिल पाते और इसी कारण से वास्तविक जन-भावनाओं से अनभिज्ञ है। इस मामले पर राहुल ने गंभीरता से ध्यान देते हुए यह सुनिश्चित किया की जनता से सीधा संवाद कायम हो ताकि अपनी और अपने दल की कमजोरियों और मजबूतियों का ज्ञान एवं भान होता रहें।

आज भारत कि राजनीति इतनी मैली और सड़ी हो रही कि, पाक साफ बचे रहने बहुत मुश्किल होता जा रहा है। नैतिकता और उत्तरदायित्व जैसी चीजे आज विलोपित होती जा रही है और भ्रष्टाचार और अनैतिकता आज की राज-शैली का अहम हिस्सा बन चुकी है।लेकिन अब भारतीय जन मानस ऐसी राज शैली से ऊब चुका है और वोट लेकर हम पर राज करने वालो के स्वरुप में परिवर्तन का पक्षधर है। और इस परिवर्तन और राजनितिक स्वच्छता की अपेक्षों पर राहुल ने अपनी कार्य –प्रणाली से सफलता हासिल करी है।

उनके समकक्ष और समकालीन अन्य राजनितिक दलों के युवा अभी भी अपनी शैली और छाप निर्मित करने कि प्रक्रिया में राहुल से मीलो पीछे है।

लेकिन इस सब से यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि अब देश की राजनीति में राहुल गाँधी कि शैली और पद्धत्ति ही पनप सकती है, जो आम आदमी के इस सिपाही ने शुरू करी है और जिस जनता ने पूरा पूरा समर्थन भी दिया है। राहुल ने यह बहुत ही स्पष्ट कर दिया है कि वो सत्ता सुख के भूखे नहीं है अपितु देश सुखमय कैसे हो ये उनकी प्राथमिकता है। और शायद उनकी यही अदा भारतवासियों को लुभा रही है।

देखना यह है कि राहुल को देख कर देश के बाकी अन्य दल और उनसे जुड़े नौजवान राज नेता अब क्या रुख अपनाते है। यदि सकारात्मक रुख रहा तो एक स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता की शुरुआत हो सकती है, जहाँ देश को नैतिक मूल्यों वाले नेताओं की बीच देश हित और जनहित पर सार्थक संवाद सुनने को मिल सकते है।