बारिश और तुम

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मैं एक तलब तुम्हें फ़रियाद कर रहा था
मगर तुम्हारे तसव्वुर मुझे विरान बना दिया
ये चंचला इस कदर मुझे डरा रही
तुम्हारी यादों को बातिल सा बता रही
तुम कभी बनकर आओ बारिश मेरे पास
मैं हर उस बूंद को तुम्हारी इत्र समझ
एहसाह कर लूंगा,
इन वाताओ में उठी अजब हलचल
शायद तुम्हारी फ़रियाद कर रहा
तुम मेरे रूह में इस कदर लीन हो जाओ
मुझे राख कर , तुम तल्लीन हो जाओ
तुम मुझे इस कदर सता रही
मुझे क्यों तुम खुद से अलग बता रही
तुम्हारी जिस्म, रूह , कैफियत में मैं
क्यों इस वाकिफ को , अल्हड़ को
नावाकिफ बता रही
सुन रही मेरी यातना को
इतना भी आघात करो नही
मैं परवश तुम्हारी मुहब्बत में,
सब ख़्वाब तबाह कर आया कही

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