राजिम कुंभ विश्व इतिहास में दर्ज

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अनामिका
समय आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला जाता है. समय इतिहास लिखता भी है और इतिहास में दर्ज भी हो जाता है. 13 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ में जब कुंभ के आयोजन की कल्पना की गई थी, तब इस बात की कल्पना थी कि छत्तीसगढ़ की उस धरा को जहां भगवान श्रीराम के श्रीचरण पड़े हों, जिसका अपना गौरवशाली सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास है, उस धरा पर एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन का श्रीगणेश किया जाए. इस दृष्टि के साथ अर्धकुंभ का आयोजन आरंभ हुआ. श्रेष्ठतम साधु-संतों ने इसे जांचा और परखा. धर्म और संस्कृति की तुला पर जब आयोजन खरा उतरा तो इसकी अनुमति दी गई. इसके बाद तो राजिम कुंभ के नाम से आयोजन उत्तरोत्तर अपनी श्रीवृद्धि की हो चल पड़ा. इस वर्ष राजिम कुंभ को विश्व रिकार्ड में दर्ज होने का गौरव भी प्राप्त हुआ है. माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक लगने वाला कुंभ भारत के पांचवें कुम्भ कल्प मेला के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है. कुंभ मेले में उज्जैन, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, ऋषिकेश, द्वारिका, कपूरथला, दिल्ली, मुंबई जैसे धार्मिक स्थलों के साथ देश के प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के अखाड़ों के महंत, साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों का आगमन होता है.
महज 13 साल में राजिम कुंभ  विश्व रिकॉर्ड गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गए हैं. इसमें पहला वल्र्ड रिकॉर्ड दो दिन पहले 7 फरवरी 2018 को बना है, जिसमें करीब 3 लाख 61 हजार दीपक एक साथ जलाए गए थे. वहीं दूसरा वल्र्डड रिकॉर्ड बीते 8 फरवरी 2018 को 2100 लोगों द्वारा एक साथ शंखनाद कर बनाया गया है. गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के एशिया हेड डॉ. मनीष बिश्नोई ने इस बात की पुष्टि भी कर दी है. राजिम कुंभ के प्रभारी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इस उपलब्धि पर कहा कि विश्व शांति, पर्यावरण और नदियों को बचाने का संदेश देने के लिए ये आयोजन किए गए थे. इससे राजिम कुंभ की दिव्यता और भव्यता का भी विश्व में प्रसार होगा. साथ ही इससे राजिम कुंभ की महिमा भी बढ़ेगी. उल्लेखनीय है कि पहले रिकॉर्ड के लिए शासन ने ढाई लाख दीपक जलाने की तैयारियां की थी, लेकिन लोगों ने मिलकर 3 लाख 61 हजार दिए जलाए. ठीक इसी तरह दूसरे वल्र्ड रिकॉर्ड के लिए शासन ने 1500 शंखनाद का टारगेट रखा था, लेकिन उसमें भी 2100 लोगों ने शंखनाद दिया.
देश के प्रसिद्ध ‘प्रयाग तीर्थ’ की तरह छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ कल्प भी अपनी विशेष पहचान बना चुका है. इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम की जैसी महत्ता है कुछ वैसा ही महत्व राजिम के तीन नदियों महानदी, सोंढूर व पैरी नदी का संगम है. त्रिवेणी संगम तट पर लगने वाले राजिम कुंभ कल्प में 15 दिनों तक लाखों लोग दर्शन, स्नान करने उमड़ते हैं. पिछले 31 जनवरी माघ पूर्णिमा से शुरू हुआ राजिम कुंभ कल्प महाशिवरात्रि तक चलेगा. इस बार मेले में 1500 शंखनाद और ढाई लाख प्रज्ज्वलित दीप आकर्षण का केन्द्र रहेगा.
भगवान राजीव लोचन की तीर्थस्थली में सैकड़ों साल से माघ पूर्णिमा पर राजिम मेला लगता आ रहा है. प्रदेश के धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने राजिम मेले को 2005 में भव्य रूप से आयोजित करने का निर्णय लिया. मात्र 13 सालों में ही राजिम मेला राजिम कुंभ के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है. राज्य बनने के बाद 2005 में मेले को दिया गया राजिम कुंभ. मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मुताबिक, उन्होंने महसूस किया कि धर्म नगरी राजिम की ऐतिहासिक -धर्मिक महत्ता से देश-दुनिया को अवगत कराने की आवश्यकता है. छत्तीसगढ़ की यह पावन भूमि प्रभु राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि होने के साथ-साथ प्रभु राम का वन गमन मार्ग भी रहा है. धर्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्रीरामचन्द्र और माता सीता ने अपने वनवास के सर्वाधिक 10 वर्ष छत्तीसगढ़ की धरा पर बिताए है. इससे जुड़ी कई किवदंतियां प्रचलित है. प्रमुख रूप से किवदंती है कि राजिम के त्रिवेणी संगम में कुलेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना माता सीता द्वारा वनवास के दौरान किया गया है.
यह भी उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में राजिम की मान्यता प्रयागराज इलाहाबाद की तरह है. यहां संगम में अस्थि विसर्जन, पिंडदान आदि कर्मकांड कराये जाते है. मेरा मानना है कि साधु-संत एक एम्बेसडर की तरह होते है. उनके माध्यम से दुनियां ऐसे धर्मिक स्थलों के महत्व को जान पाती है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ को धर्मिक पर्यटन के नक्शे में उभारना, सांस्कृतिक विकास आदि सब बातों को लेकर मेरे हृदय में जो विचार पिछले कई वर्षों से चल रहे थे उसके फलित होने का अवसर मुझे मिला था. यह विचार था सदियों से त्रिवेणी संगम राजिम में होते आ रहे वार्षिक राजिम मेले को उसकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बेहतर व्यवस्था और भव्य स्वरूप के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए.
राजिम कुंभ कल्प को प्रसिद्धि यहां होने वाले सात दिवसीय संत समागम की वजह से मिली है. देश के बड़े-बड़े संत-महात्मा, महामंडलेश्वर, नागा साधु, हरिद्वार, वाराणसी, ऋषिकेश, अयोध्या समेत सभी धार्मिक स्थलों के आश्रमों व अखाड़ों के साधु-संत यहां आ चुके हैं. अपने गुरुजनों के प्रवचन सुनने व दर्शन लाभ लेने देशभर से भक्त राजिम कुंभ में अवश्य पधारते हैं. त्रिवेणी संगम के बीच स्थित प्राचीन कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम ने कुलेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना की थी. प्राचीन काल में इस क्षेत्र को कमल क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. यह भी मान्यता है कि जब सृष्टि की उत्पत्ति हुई थी तब भगवान विष्णु की नाभि से निकला कमल इसी जगह पर था. और ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी. इसके चलते इस जगह का नाम कमल क्षेत्र पड़ा. राजिम कुंभ छत्तीसगढ़ का प्रतिष्ठा आयोजन बन चुका है. देश-दुनिया में राजिम कुंभ की पहचान अलग से है. इस बार पर्यावरण संरक्षण के साथ नदियों को बचाने का जो संकल्प लिया गया है, वह अनुकरणीय है.

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सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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