नकली सीता का वध
राक्षसी शक्तियां प्राचीन काल से ही युद्ध को येन- केन- प्रकारेण जीतने का प्रयास करती रही हैं। इसके लिए उन्होंने युद्ध में भी धर्म निभाने की भावना को पूर्णतया उपेक्षित किया। हमारे प्राचीन साहित्य में सकारात्मक या धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने वाली शक्तियों के द्वारा कहीं पर भी मायावी या छद्म उपायों का सहारा लेकर युद्ध जीतने का प्रयास नहीं किया गया। जिन अनैतिक उपायों का सहारा लेकर प्राचीन काल में राक्षस लोग युद्ध लड़ा करते थे, उसी परंपरा को कालांतर में मुसलमानों ने भी अपनाया। उन्होंने भी प्यार में और युद्ध में हर चीज को उचित माना। रामायणकालीन युद्ध में जब मेघनाद ने देखा कि उसकी पराजय हो सकती है तो उसने भी युद्ध में छद्म उपायों का सहारा लिया और एक नकली सीता का वध कर दिया। जिससे कि रामचंद्र जी का मनोबल तोड़ा जा सके।
स्वस्थ हुए श्री राम ने , करी धनुष टंकार।
शत्रु दल कंपित हुआ, मच गई हाहाकार।।
इंद्रजीत और राम का , हुआ भयंकर युद्ध।
देख सभी को लग रहा , हुईं दिशाएं क्रुद्ध।।
इंद्रजीत ने वध किया , एक नकली सीता खास ।
फटकारा हनुमान ने, नहीं थी ऐसी आस ।।
ऋषि कुल में पैदा हुआ , काम करे तू नीच।
जानबूझकर धर्म से , आंखें रहा तू मीच।।
इंद्रजित ने नकली सीता के वध का समाचार ऊंची आवाज में रामचंद्र जी के सैन्य दल को सुनाया । उसकी युक्ति काम कर गई। परिणाम स्वरूप रामचंद्र जी के सैन्य पक्ष में शोक छा गया । स्वयं रामचंद्र जी भी अत्यंत दु:खी हो गए। यद्यपि विभीषण जी जानते थे कि सीता जी का वध नहीं हुआ है और जिसे मरा हुआ दिखाया जा रहा है, वह नकली सीता है।
इंद्रजीत कहने लगा – तुम जिसके लेवणहार।
मार दिया – मैंने उसे , तुम भी रहो तैयार।।
जनक नंदिनी मर गई , हनुमत हुए निराश।
समाचार दिया राम को , होकर बहुत हताश।।
डूब गए तब शोक में , रघुनंदन श्री राम।
लक्ष्मण ने दिया धैर्य, सुधरेंगे सब काम।।
विभीषण सब कुछ जानते, साजिश का क्या राज ?
राम लखन समझा दिए , निर्भय हो करो काज ।।
समुद्र कभी नहीं सूखता, राम समझिए सार।
तुमको यह संभव नहीं, विधुर कहे संसार ।।
इंद्रजीत की योजना , वह करे यज्ञ संपन्न।
वानर सब रोते रहें , कोई ना हो प्रसन्न।।
विभीषण जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लक्ष्मण जी को बताया कि इंद्रजीत इस समय निकुम्भिला देवी के मंदिर में यज्ञ कर रहा है। इसके बाद वह देवों के लिए भी दुर्जेय हो जाएगा। इसलिए समय रहते हुए आपको ऐसा प्रयास करना चाहिए कि उसका वह यज्ञ संपन्न नहीं होना चाहिए अर्थात यज्ञ करते समय ही उसको युद्ध की चुनौती देनी चाहिए। इसी समय उसको समाप्त कर देना उत्तम रहेगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य