लक्ष्मण जी का उपचार
( यहां पर यह बात ध्यान देने की है कि जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो उनका ह्रदय फट गया था। यदि आज ऐसी घटना हो जाए तो हमारे चिकित्सकों के पास ऐसा कोई उपाय नहीं है जो फटे हुए हृदय को ठीक कर सके। इससे पता चलता है कि हमारे आयुर्वेद के ज्ञाताओं के पास प्राचीन काल में कैसी कैसी औषधियां थीं ? यह बात भी पते की है कि उस समय अनेक योद्धा ऐसे होते थे, जिनका रातों-रात उपचार होता था और वह अगले दिन युद्ध में भाग लेने के लिए पहले दिन की भांति ही स्वस्थ होकर जाते थे। यदि आज किसी का ह्रदय फट जाए तो पहली बात तो यह है कि वह बच ही नहीं सकता और यदि बच भी जाए तो कम से कम एक वर्ष तक तो उसे भारी काम करने, अधिक सोचने, वजन उठाने या अनावश्यक तनाव लेने से चिकित्सकों के द्वारा रोका जाता है। जबकि यहां हम देख रहे हैं कि हृदय फटे लक्ष्मण को भी कई घंटे पश्चात बचा लिया जाता है।
कुछ ही घंटे के उपचार के पश्चात लक्ष्मण इतने स्वस्थ हो जाते हैं कि अगले दिन वह युद्ध के लिए जाते हैं। कितना दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य है कि हमारे इस आयुर्वेद को अभी तक भी देश की राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित नहीं किया गया है।)
वैद्य हमारे पूज्य थे , पूज्य थे उनके काम।
उपचार करें बिन लोभ के, धन्य थे ऋषि तमाम।।
रामचंद्र जी की वेदना
आंसू बहाते राम जी , हुए हताश निराश।
चारों ओर वानर खड़े , सारे बहुत उदास ।।
रामचंद्र जी प्रतिज्ञा करते हैं :-
प्रण किया श्री राम ने , बचे नहीं लंकेश ।
पापी के अब अंत को , देखे सारा देश ।।
अंत समय अब आ लिया , रावण छोड़े लोक।
स्थान सुरक्षित हो गया , जाएगा यमलोक ।।
क्रोध भरे श्री राम ने , धरा भयंकर रूप ।
देख भयंकर रूप को , भागा रावण भूप ।।
लक्ष्मण को मरा जान कर , रोने लगे श्री राम ।
सीता से या राज्य से , मुझे नहीं कोई काम।।
रामचंद्र जी कहते हैं :-
स्त्री मित्र संसार में , मिल सकते हैं खूब।
असंभव है संसार में , मिले सहोदर रूप।।
भाई में बसे आत्मा , बिन भाई जग सून।
एक मूल से ऊपजा , एक ही बहता खून।।
बिन भाई संसार में , जी ना सकता राम।
सब कुछ मेरा लुट गया, बचा नहीं कोई काम।।
इसी समय सुषेण जी लक्ष्मण जी की चिकित्सा करने के लिए उपस्थित हो जाते हैं। लक्ष्मण जी के चेहरे के तेज को देखकर ही वह कहने लगे कि :-
सुषेण बोले – नहीं मरे , लक्ष्मण आपके भ्रात।
मुख मंडल पर तेज है, दमक रहा है गात।।
धर्म हो जिसके साथ में, बाल न बांका होय।
पापी को संसार में , बचा न पावे कोय।।
हनुमान जी शीघ्र ही , करो आप प्रस्थान ।
पर्वत से लाओ औषधि , बचेंगे इनके प्राण।।
हिम पर्वत को उड़ चले, हनुमान बलवान ।
उखाड़ लिया पर्वत शिखर, सबको औषधि मान।।
सूंघ औषधि हो गए , स्वस्थ लखन बलवीर ।
आलिंगन किया राम ने , हुए बहुत गंभीर ।।
डॉ राकेश कुमार आर्य