श्री राम का अयोध्या के लिए प्रस्थान
रावण वध, विभीषण राज्याभिषेक और सीता जी की अग्नि परीक्षा के पश्चात जब वह रात्रि व्यतीत हुई और प्रात:काल हुआ तब शत्रु नाशक श्री राम सुखपूर्वक उठे। उस समय विभीषण हाथ जोड़ तथा ‘आपकी जय हो’ ऐसा कह कर बोले – आपके स्नान के लिए उत्तम अंगराग (उबटन) विविध प्रकार के वस्त्र और आभूषण तथा विविध प्रकार के दिव्य चंदन एवं भांति-भांति की पुष्पमालाएं आई हैं । आप इन वस्तुओं को ग्रहण कर मेरे ऊपर कृपा करें। तब रामचंद्र जी ने उन्हें पुष्पक विमान से यथाशीघ्र अयोध्या नगरी पहुंचाने का निवेदन किया। इसी स्थान पर कहा जाता है कि रामचंद्र जी ने लक्ष्मण से कहा था कि:-
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अर्थात अब सोने की लंका भी मुझे अच्छी नहीं लगती लक्ष्मण। क्योंकि जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। वास्तव में ऐसा कोई प्रसंग या श्लोक वाल्मीकि कृत रामायण में नहीं है।
पुष्पक विमान से राम जी , चले अयोध्या धाम।
सफल मनोरथ हो गए , पूर्ण हुए सब काम।।
विभीषण के अनुरोध पर, वानर दल हुआ साथ।
सभी अयोध्या चल दिए, जहां भरत से भ्रात।।
( सुग्रीव के कहने पर तारा और उसकी सहेलियों ने भी अयोध्या चलने का निर्णय लिया। वे सभी यथाशीघ्र तैयार होकर पुष्पक विमान के निकट आकर खड़ी हो गईं। इसके पश्चात विमान की प्रदक्षिणा कर उस पर सवार हो गईं।)
तारा और उसकी सखी , रस्ते से हुईं संग।
सभी अयोध्या चल पड़ीं , मन में लिए उमंग।।
राह बीच चलते हुए , राम करें संवाद।
सीता को बतला रहे , जो कुछ आता याद।।
कहां मिले सुग्रीव उनको, कहां मिले हनुमान।
प्रसंग सारे बता दिए , सही देख स्थान।।
बुरा समय सिर पर चढ़े, बिगड़ें बनते काम।
दुनिया भी कहती बुरा, बुरा नहीं इंसान।।
संवारो निज संसार को, यही राम संदेश।
राम चरित्र अपनाइए , यही सरल उपदेश।।
संकेत किया श्री राम ने, देख अयोध्या धाम।
वानर दल हर्षित हुआ, सुना अवध का नाम।।
सही समय श्री राम जी , पहुंच गए निज देश।
पवन पुत्र को कह दिया , भरत को दो संदेश।।
नंदीग्राम में जा दिया, हनुमत ने संदेश।
भरत अति प्रसन्न थे , पाकर यह संदेश।।
डॉ राकेश कुमार आर्य