राम नीति को त्यागती कृष्ण नीति कोअपनाती भाजपा

डा. राधेश्याम द्विवेदी

वैदिक सनातन धर्म :- वैदिक धर्म भारतीय सभ्यता का मूल धर्म रहा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप मध्य एशिया तथा विश्व के अनेक देशों में हजारों वर्षों से चलता आ रहा है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये सनातन धर्म नाम मिलता है। सनातन का अर्थ है – शाश्वत या हमेशा बना रहने वाला अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। यह धर्म मूलत भारतीय धर्म है, जो किसी जमाने में पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। सनातन धर्म अपने मूल रूप हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। सिन्धु नदी के पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते थे जो स का उच्चारण ह करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। हिन्दी के विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। जब ब्रिटिश शासन में भारत की जनगणना हुई तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया। कृष्ण नीति भी काम नहीं आ रही है :- धर्म न्याय और नीति के पर्याय वैदिक व सनातन परम्परा के प्रमुख देव विष्णु के प्रमुख अवतार भगवान श्रीराम सुख समृद्धि के लिए इस महाद्वीप में ही नहीं अपितु विश्व के कोने कोने में स्थित मंदिर मंदिर और घर घर पूजे जाते हैं। मर्यादित आचरण के लिए स्मरण की जानेवाली इस आलोकिक शक्ति है उन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर पिछले कुछ सालों से इस देश की सियासत अमर्यादित हो गयी है। राम की मर्यादा नीति को सियासतदारों ने राज नीति बनाकर आदमी निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सत्ता की कुर्सी को हथियाने के लिए चालें चली जा रहीं हैं । राम ने अपने वसूलों व आदर्शों के लिए सत्ता की कुर्सी का परित्याग कर चैदह वर्ष का बनवास स्वीकार किया है। अब राम की मर्यादित नीति व राजनीति की जगह व महत्ता खत्म होती जा रही है। अब तो श्रीकृष्णकी नीति की आवश्यकता आ गयी है। इतना ही नहीं हमें तो कृष्ण नीति के साथ उसके अवनति के कारणों की झलक भी सत्तानसीनों में दिखलाई दे रही है। एक ना एक दिन इसका परिणाम अवश्य दिखेगा। भारत में कांग्रेस के साथ अनेक राजनीतिक दलों का उदय हुआ है इनमें ज्यादातर समय कांग्रेस ने ही शासन किया है वह तरह तरह के हथकंडे अपनाकर यहां की मूल संस्कृति को पूर्णतः तिलांजलि दे दिया है। कांग्रेस के साथ ही साथ अन्य अनेक पार्टियां का अस्तित्व भी बना। इनमें सर्वाधिक प्रभावशाली भारतीय जनसंघ थी। श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में भारतीय जनसंघ की स्थापना किया गया था। माननीय अटल विहारी वाजपेयी इसके संस्थापक सदस्य थे। बाद में इसका स्वरुप भारतीय जनता पार्टी के रुप में आया। 1975 में श्रीमती गांधी ने देश में आपातकाल लागू करवा दिया तथा सारे विपक्ष के नेताओं को रातोरात जेल में डलवा दिया। बाद में जे.पी आन्दोलन ने देश में नयी चेतना डाली थी। 1977 में गांधीवादी नेता श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सम्पूर्ण विपक्ष एक पार्टी एक निशान तथा एक कार्यक्रम के तहत ’’जनता पार्टी’के बैनर के नीचे देश चुनाव में भाग लिया और भारी मतों से सत्तासीन हुआ था। भारतीय जनसंध भी इसी में विलीन हो गया थां। उस समय श्री अटल विहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने थे। चूंकि यह सत्ता एक सिद्धान्त पर आधारित नहीं था इसलिए 1980 में इसमें विखराव आ गया। 06 अप्रैल 1980 को श्री अटल विहारी वाजपेयी के अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। श्री लालकृष्ण अडवानी ने राम मन्दिर के लिए रथ यात्रा करके पार्टी मे मजबूती प्रदान की थी। अटल और अडवानी ने इस पार्टी को बहुत आगे तक पहुंचाया था। वे संघर्ष के साथ एक लम्बी संसदीय परम्परा में सारी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे चलकर देश को एक कुशल नेतृत्व प्रदान किया था। प्रारम्भ में इसके केवल 2 सदस्य थे। 1991 में 120 तथा 1996 में 161 सदस्यो की संख्या हो गई थी। भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री अटल विहारी वाजपेयी ( 16.05.1996 से 01.06.1996. तक ) पहले 13 दिन के लिए सरकार बनाये । उनके पास आवश्यक बहुमत नहीं था और उन्होने जोड़ तोड़ नहीं किया और एक आदर्श परम्परा शुरू करते हुए अपनी सरकार का त्यागपत्र सौंप दिया। अटल व अडवानी की जोडी अप्रासंगिक :- अटल व अडवानी की युगल जोडी को पुनःस्थापित होने में आठ साल का लम्बा समय लग गया। नया चुनाव होने पर 182 सीटें पाकर भाजपा के श्री अटल विहारी बाजपेयी ने 19.03.1998 से एक बार फिर 13 माह के लिए प्रधानमंत्री बने ,परन्तु एडीएमके के जय ललिता द्वारा समर्थन वापस ले लेने तथा उड़ीसा के कांगेंसी मुख्यमंत्री श्री गिरधर गोमांग जो सांसद भी थे ,के मतदान में विपक्ष को मत देने के कारण उनकी सरकार चली गई। पुनः देश को 1999 में मध्यावधि चुनाव का सामना करना पडा। इस बार पुनः 182 साटें पाने के साथ उनका गठबंधन 306 सीटें अर्जित कर स्पष्ट बहुमत जुटा लिया था। उन्होंने 22 छोटे बडे़ दलों को साथ लेकर 22.05. 2004 तक 5 साल के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अधीन कुशल शासन का संचालन किया।स्वच्छ छवि लम्बा संसदीय अनुभव तथा सभी पक्ष विपक्ष को संतुष्ट करने की क्षमता ने उन्हें एक युगपुरूष के रूप में स्थापित करने का पूर्ण अवसर प्रदान किया था। उन्हें भारत रत्न के अलावा पद्म विभूषण पुरस्कार भी मिल चुका है। उनकी अपनी पार्टी से ज्यादा विपक्षी उनके विचारों तथा आचरणा के मुरीद थे। 2004 में स्वयं तो वह जीत गये थे परन्तु जनता का विश्वास पार्टी पर से उठ गया था। उन्हें पुनः सेवा का अवसर नहीं प्राप्त हुआ। उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था । दिसम्बर 2005 में उन्होने राजनीति सन्यास ले लिया था । पार्टी की अध्यक्षता वैंकटैया नायडू, लाल कृष्ण अडवानी तथा राजनाथ सिंह ने किया था। 2010 – 2013 तक श्री नितिन गडकरी और उसके बाद पुनः राजनाथ सिंह अध्यक्ष कार्यभार संभालते रहे।वरिष्ठ नेताओं का प्रभाव कम पड़ता देख, गुजरात के तीन बार से लगातार जीतने वाले मुख्यमंत्री माननीय नरेन्द्रभाइ्र्र दामोदरदास मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने का अवसर मिल गया। वर्तमान समय में 545 की संख्या वाले सदन में 280 भाजपा सदस्य हैं। 245 की संख्यावाले राज्यसभा में 47 भाजपाई सदस्य हैं। लोकसभा में कांगे्रस 44 ,एआईडीएमके 37, तृणमूल कांग्रेस 34, बीजू जनता 20, शिवसेना 18, तेलगूदेशम 16, तेलंगाना राष्ट्र समिति 11, सीपीआई एम 9, एनसीपी तथा लोक जनशक्ति 6-6 सीटें प्राप्त किये हुए हैं । विपक्ष के लिए कुल सदस्य संख्या 545 का दस प्रतिषत अर्थात 55 सदस्य अनिवार्य है जिसे कांग्रेस नही पा सकी है। 1989 के बाद से कोई भी पार्टी सदन में बहुमत हासिल नहीं कर पाई है। केवल 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 282 सीटें हासिल कर पाई। 2014 के चुनावों में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 336 सीटें जीतकर (जिनमें भाजपा की 282 सीटें शामिल थीं) ऐतिहासिक जीत दर्ज की। वर्तमान समय में लोकसभा में कुल 545 में 273 भाजपा के सदस्य है। राज्य सभा में कुल 245 की संख्या मे भाजपा के 73 सदस्य हैं। नरेंद्र मोदी का बर्चस्व बढ़ा :- साल 1950 में वडनगर गुजरात में बेहद साधारण परिवार में जन्मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संघ की तरफ खासा झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था. वे वर्ष 1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए. नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की. इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए. मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया. इसके बाद 1998 में उन्हें महासचिव बनाया गया. इस पद पर वो अक्टूबर 2001 तक रहे. लेकिन 2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई. मोदी के सत्ता संभालने के लगभग पांच महीने बाद ही गोधरा रेल हादसा हुआ जिसमें कई हिंदू कारसेवक मारे गए. वर्ष 2002 में गुजरात ही नहीं पूरे देश के इतिहास में वो काला अध्याय जुड़ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा नहीं था. गोधरा में एक ट्रेन में सवार 50 हिंदुओं के जलने के बाद पूरे गुजरात में जो दंगे भड़के उसका कलंक मोदी आज तक नहीं धो पाए हैं. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौर किया तो उन्होंनें उन्हें राजधर्म निभाने की सलाह दी थी। उन्हें तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे की ओर से समर्थन मिला और वे पद पर बने रहे. जब दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में मोदी ने जीत दर्ज की थी । इसके बाद 2007 एवं 2012 के विधानसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी रहे। नरेंद्र मोदी की सियासी शालीनता :- वर्ष 2012 तक मोदी का बीजेपी में कद इतना बड़ा हो या कि उन्हें पार्टी के पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा। 2014 के चुनावों में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 336 सीटें जीतकर (जिनमें भाजपा की 282 सीटें शामिल थीं) ऐतिहासिक जीत दर्ज की। वर्तमान समय में लोकसभा में कुल 545 में 273 भाजपा के सदस्य है। राज्य सभा में कुल 245 की संख्या मे भाजपा के 73 सदस्य हैं। मोदी सरकार को सत्ता में आये हुए चार साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर एक तरफ भाजपा जश्न मनाते हुए दिखाई दे रही है तो दूसरी तरफ विपक्षी दल मोदी सरकार को विफल करार देते हुए कड़ी आलोचना करते हुए नजर आ रहे हैं। इसी के चलते सोशल मीडिया पर भी मोदी सरकार की कड़ी निंदा होते हुए दिखाई दी है। सोशल मीडिया के यूजर्स ने मोदी सरकार के तीन सालों को केवल वादों के नाम का जुमला करार दिया है। इसी बीच सोशल मीडिया पर कई तरह की तस्वीरे भी वायरल हो रही है जिसमें सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जनता से किये गए वादों की सूची बताई जा रही है। उन्होने रोजगार देने का, 15 लाख रूपये देने का, एक के बदले दस सर लाने का, बुलेट ट्रेन चलाने का, स्मार्ट सिटी चलाने का, किसानों के कर्ज माफ करने का , राम मंदिर के निर्माण का, महंगाई को मार भगाने का, राम मंदिरनिर्माण का वादा तो किया पर पूरा नहीं हो सका। इसके साथ मोदी ने यह भी वादा किया था कि रुपये डॉलर के मुकाबले मजबूती हासिल करेगा और एक डॉलर 40 रुपये के बराबर होगा। इन सालों में महंगाई ने अपने ऐसे तेवर दिखाए है कि जनता की कमर टूट चुकी है। न पेट्रोल सस्ता हुआ और न ही रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों की कीमतों में कोई कमी दिखाई देने को मिली है उल्टा दाम बढ़ते ही जा रहे है। मोदी के बाद की भाजपा :- जबतक भाजपा वाजपेयी जी जैसों की विचारधारा पर चलती रही, वो राम के बताये मार्ग पर चलती रही। मर्यादा, नैतिकता, शुचिता इनके लिए कड़े मापदंड तय किये गये थे। परन्तु आजतक कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी।जहाँ करोड़ों रुपये के घोटाले घपले करने के बाद भी कांग्रेस बेशर्मी से अपने लोगों का बचाव करती रही, वहीं पार्टी फण्ड के लिए मात्र एक लाख रुपये ले लेने पर भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्षमण को हटाने में तनिक भी विलंब नहीं किया। झूठे ताबूत घोटाला के आरोप पर जार्ज फर्नांडिस का इस्तीफा ले लिया गया। कर्नाटक में येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही येदियुरप्पा को भाजपा ने निष्कासित करने में कोई विलंब नहीं किया गया। पूर्ववर्ती सरकारों ने भ्रष्टाचार के ऐसे वायरस डाल दिये हैं कि हम स्वयं भ्रष्ट हो गये हैं। हमें जहाँ मौका मिलता है, हम भ्रष्टाचार को बढावा देने से नहीं चूकते । पुलिस का चालान हो, या सरकारी विभागों में काम हो, हम कुछ ले देकर अपने काम को निपटाने में ही यकीन रखते हैं। जब होता है नरेन्द्र मोदी का पदार्पण हुआ मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नक्शे कदम पर चलने वाली भाजपा को वो कर्मयोगी कृष्ण की राह पर ले आना पड़ा हैं।कृष्ण अधर्मी को मारने में किसी भी प्रकार की गलती नहीं करते हैं। छल हो तो छल से, कपट हो तो कपट से, अनीति हो तो अनीति से। अधर्मी को नष्ट करना ही उनका ध्येय होता है। इसीलिए वो अर्जुन को सिर्फ कर्म करने की शिक्षा देते हैं। येदियुरप्पा को फिर से भाजपा में शामिल किया गया। विचारों की धुर विरोधी पीडीपी से गठबंधन करके कम से कम काश्मीर के अंदरूनी हालात से रूबरू तो हुआ पर सफलता नहीं मिली। सार यह है कि अभी देश दुश्मनों से घिरा हुआ है, नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जा रहे हैं। इसलिए अभी भी हम नैतिकता को अपने कंधे पर ढोकर नहीं चल सकते हैं। नैतिकता को रखिये ताकपर, और यदि इस देश को बचाना चाहते हैं तो सत्ता को अपने पास ही रखना होगा। वो चाहे किसी भी प्रकार से हो, साम दाम दंड भेद किसी भी प्रकार से बिना सत्ता के आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को चाहिए कि,कर्ण का अंत करते समय कर्ण के विलापों पर ध्यान ना दें । सिर्फ ये देखें कि अभिमन्यु की हत्या के समय उनकी नैतिकता कहाँ चली गई थी? कर्ण के रथ का पहिया जब कीचड़ में धंस गया तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, पार्थ देख क्या रहे हो, इसे समाप्त कर दो।संकट में घिरे कर्ण ने कहा, यह अधर्म है। भगवान कृष्ण ने कहा, अभिमन्यु को घेर कर मारने वाले और द्रौपदी को भरी दरबार में वेश्या कहने वाले के मुख से आज अधर्म की बातें शोभा नहीं देती। आज कांग्रेस जिस तरह से संविधान की बात कर रही है तो लग रहा है जैसे हम पुनः महाभारत युग में आ गए हैं। विश्वास रखो महाभारत का अर्जुन नहीं चूका था आज का अर्जुन भी नहीं चूकेगा। यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम ।। चुनावी जंग में अमित शाह जी जो कुछ भी जीत के लिए पार्टी के लिए कर रहे हैं वह सब उचित है। आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की तरह एक वोट का जुगाड़ न करके आत्मसमर्पण कर देना क्या एक राजनीतिक चतुराई थी ? अटलजी ने अपनी व्यक्तिगत नैतिकता के चलते एक वोट से अपनी सरकार गिरा डाली और पूरे देश को चोर लुटेरों के हवाले कर दिया। साम, दाम, भेद, दण्ड राजा या क्षत्रिय द्वारा अपनायी जाने वाली नीतियाँ हैं जिन्हें उपाय-चतुष्ठय (चार उपाय) कहते हैं। राजा को राज्य की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये सात नीतियाँ वर्णित हैं , उपाय चतुष्ठय के अलावा तीन अन्य हैं- माया, उपेक्षा तथा इन्द्रजाल। कांग्रेस ऐसा विपक्ष नहीं है जिसके साथ नैतिक खेल खेला जाए।

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