सुलझा राम मंदिर विवाद, लोगों का भरोसा जीतने की राह पर केंद्र सरकार

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लिमटी खरे

भाजपानीत केंद्र सरकार की दूसरी पारी विवादों में दिख रही है, पर केंद्र सरकार के द्वारा जिस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं, जिस तरह की कवायद की जा रही है, उससे यही प्रतीत हो रहा है कि भाजपा के द्वारा लोगों का भरोसा जीतने की राह पकड़ ली गई है। विपक्ष और कांग्रेस के द्वारा किए जा रहे विरोध को लोगों का समर्थन तो मिल रहा है पर बहुतायत में लोग केंद्र सरकार के साथ ही दिख रहे हैं। एक के बाद एक जिस तरह के फैसले लिए जाकर उन्हें द्रढ़ता के साथ अमली जामा पहनाया जा रहा है उससे भाजपा का जनाधार बढ़ता दिख रहा है। दशकों से चल रहे राम मंदिर विवाद को देश की शीर्ष अदालत के द्वारा सुलझाया गया है। इसके बाद हाल ही में केंद्रीय मंत्रीमण्डल ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के नाम से एक न्यास बनाए जाने की घोषणा से लगने लगा है कि आने वाले समय में दशकों पुराना यह विवाद इतिहास में शामिल हो जाएगा। न्यास में 15 सदस्यों के रहने की बात कही गई है। न्यास के सदस्यों के चयन में बहुत ज्यादा सावधानी बरती जाने की जरूरत है। इसमें निहित स्वार्थ रखने वाले लोगों को स्थान नहीं मिलना चाहिए। यह भी तय किया जाना चाहिए कि मंदिर या न्यास के नाम पर अब सियासत न हो पाए।

भाजपानीत केंद्र सरकार के द्वारा एक के बाद एक फैसले लिए जा रहे हैं। यह सब कुछ नरेंद्र मोदी के द्वारा अपनी दूसरी पारी में किया जा रहा है। देश की शीर्ष अदालत के द्वारा राम मंदिर और बावरी मस्जिद के सालों पुराने विवाद को निपटाने के बाद केंद्र सरकार के द्वारा अब अपनी जवादेहियों का निर्वहन आरंभ कर दिया गया है। शीर्ष अदालत के द्वारा पिछले साल 09 नवंबर को अयोध्या मामले में अंतिम फैसला दिया था।

हाल ही में शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप ही केंद्रीय मंत्रीमण्डल के द्वारा श्री राम मंदिर के न्यास के गठन को मंजूरी दी जाकर इस न्यास का नाम श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र रखे जाने की बात कही है। इस न्यास के गठन के उपरांत शीर्ष अदालत के फैसले के प्रकाश में मुक्त हुई विवादित जमीन के साथ ही अयोध्या में सरकार के द्वारा इस न्यास को 67 एकड़ भूखण्ड दिया जाएगा।

सालों से इस मसले पर विवाद की स्थिति बनी हुई थी। सियासी दलों पर राम मंदिर विवाद पर सियासत किए जाने के आरोप भी लगते आए हैं। जबसे सोशल मीडिया का जादू सर चढ़कर बोला है उसके बाद से यह मामला सोशल मीडिया में भी जमकर चर्चाओं में रहा है। शीर्ष अदालत के द्वारा दिए गए फैसले के उपरांत इस मामले में गहमागहमी बढ़ी थी। उस दौरान कानून और व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने की आशंका के चलते देश के अनेक जिलों में निषेधाज्ञा भी लागू कर दी गई थी।

संसद सत्र चालू है। लोगों की नजरें इस बात पर टिकी दिख रहीं थीं, कि इस मामले में केद्र सरकार का अब क्या रूख रहता है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा राम मंदिर न्यास की घोषणा की बात संसद में कही गई है। प्रधानमंत्री की इस बात को लोग दिल्ली चुनावों से भी जोड़कर देख रहे हैं। हो सकता है कि दिल्ली चुनावों में वोट बटोरने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा यह समय चुना गया हो पर इस पहलू में एक बात महत्वपूर्ण है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद राम मंदिर के निर्माण की दिशा में जिस तरह शांतिपूर्वक तरीके से सामंजस्य बनाते हुए केंद्र सरकार के द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं वह स्वागतयोग्य मानी जा सकती है। वैसे भी शीर्ष अदालत ने तीन महीने के अंदर न्यास के गठन के आदेश दिए थे। वैसे प्रधानमंत्री के द्वारा संसद में दिए गए वक्तव्य से इस बात के संकेत भी मिलते हैं, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस मामले में संजीदा हैं, इसलिए अब इस मामले में गफलत की गुंजाईश कम ही दिख रही है।

ऐसा माना जाता है कि अयोध्या विवाद आज का नहीं है, यह पांच सदियों से लगातार ही जारी है। इतिहासकारों की मानें तो मुस्लिम शासक बाबर के द्वारा मंदिर को तुड़वाकर यहां मस्जिद बनाई थी। हलांकि इस तथ्य के प्रमाणिक दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। इतिहासकारों की मानें तो 1853 में पहली बार निर्मोही अखाड़े के द्वारा इस स्थान पर दावा किए जाने के बाद हिंसा फैली थी। 1857 में आजादी की जंग आरंभ हुई तब मामला कुछ हद तक शांत हुआ, इसके बाद 1859 में ब्रिटिश हुक्मरानों के द्वारा परिसर को दो भागों में विभक्त करते हुए दोनों ही समुदायों को यहां अपने अपने तौर तरीकों से पूजा और इबादत की अनुमति दी थी।

इसके बाद बीच बीच में दोनों ही पक्षों के द्वारा अपनी अपनी दलीलें दिए जाने के बाद 1992 में यहां ढांचा गिराए जाने के बाद मामला गहरा गया और 1993 में सरकार के द्वारा विवादित स्थल के आसपास लगभग 57 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया था। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा आयोध्या से लगभग 22 किलो मीटर दूर रौनाही नामक स्थान पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने का एलान किया है।

शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार न्यास के गठन की बात तो सामने आ गई है, पर अभी न्यासियों के बारे में कुहासा नहीं हट सका है। इसके न्यासियों के नाम सामने आने पर रार न बढ़े इस बारे में केद्र सरकार को एहतियात बरतने की जरूरत है। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को इसके लिए संतुलन बनाए रखने की जरूरत है। वैसे माना जा रहा है कि न्यास का गठन जितनी जल्दी होगा, यह उतना ही बेहतर होगा, ताकि मंदिर का निर्माण आरंभ हो सकेगा और इसके नाम पर होने वाली सियासत को भी रोका जा सकेगा। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा शीर्ष अदालत के फैसले के बाद यह कहा गया था कि यह किसी की हार या जीत नहीं है। वैसे भी मंदिर के निर्माण और उसके बाद मंदिर के सफल और सुचारू संचालन के लिए यह बेहद जरूरी है कि सभी के बीच समन्वय और संतुलन बनाए रखा जाए।जब न्यास का गठन हो जाएगा तब सरकार की दखलंदाजी इसमें कम हो जाएगी। न्यास बनने के बाद न्यास को इस बात पर विशेष ध्यान रखना होगा कि इसमें सियासत की गुंजाईश न के बराबर ही रहे, क्योंकि अब तक अध्योध्या विवाद के नाम पर जमकर सियासत करने के आरोप भी लगे हैं। शीर्ष अदालत के द्वारा 09 नवंबर 2019 को दिए गए फैसले के बाद दुनिया भर की नजरें भारत पर लगी हुई हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। देश की गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल दुनिया भर में दी जाती है। देश में अमन पसंद लोग रहते हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। राम मंदिर का निर्माण जिस प्रेम, सद्भाव और आपसी सहमति से किया जाए उसी तरह के भाव रौनाही में मस्जिद के निर्माण के लिए भी लोगों को दिखाना चाहिए। शीर्ष अदालत के द्वारा दिए गए फैसले का देश भर में सम्मान किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में देश में सभी धर्म, वर्ग, संप्रदाय आदि के लोग आपस में हिल मिलकर, समन्वय बनाकर इस तरह के सभी मामलों में एकता की मिसाल कायम करेंगे जो नज़ीर बनेगी।

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