राम मंदिर, धर्म और भारत की कुंडली

उज्जैन (मध्यप्रदेश) निवासी आदरणीय पंडित सूर्य नारायण व्यास वह मूर्धन्य विद्वान ज्योतिषी थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता का मुहूर्त 14 अगस्त की रात्रिकालीन अभिजीत (12 बजे ) या ये कहें की 15 अगस्त की सुबह 00 बजे का निकला था l 
स्वतंत्र भारत का जन्म 15 अगस्त 1947 को मध्यरात्रि दिल्ली में हुआ था और कुंडली इस प्रकार है:
भारत के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर वृष लग्न उदित हो रहा था। राहू – लग्न, मंगल – मिथुन, सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, शनि – कर्क, बृहस्पति – तुला और केतु – वृश्चिक राशि में विराजमान थे।
भारत की कुंडली के तृतीय भाव में महान प्रवज्र राजयोग बना हुआ है इसका सीधा सा अर्थ यह भी है कि भारत विश्व गुरू अवश्य बनेगा।
देश की कुंडली के तृतीय भाव में पांच ग्रह – सूर्य, शनि, शुक्र, बुध, चन्द्र मिलकर एक महान प्रवज्र राजयोग बनाते हैं। 
वैदिक काल से भारतवर्ष एक धर्मपरायण देश है। वैदिक ऋषियों और मनीषियों ने धर्म को बहुत गहरे में जाकर समझा और उसके मर्म को आम नागरिक तक पहुंचाया। वक्त और युगों के साथ समय बदलता गया और आज हम ऐसे दौर में पहुंच गये हैं
जहां धर्म पर संवाद तो बाद में होता है और पहिले न केवल बहस छिड़ जाती है बल्कि एक ऐसा वातावरण तैयार हो जाता है जहां कोई भी पक्ष किसी भी सीमा को लांघने से परहेज नहीं करता।
देश की वर्तमान राजनीति में धर्म का मुद्दा चाहे मंदिर बनवाने के नाम पर हो या मंदिर में दर्शन करने के नाम पर हो स्थितियां कुछ इस प्रकार से बनती हैं कि मानों धर्म तो कहीं पीछे छूट गया है और धार्मिक प्रपंच इतने गहरे हो जाते हैं जहां सोचना पड़ता है कि ये कैसा धार्मिक कार्य हुआ।
वाल्मिकी रामायण के आधार पर प्रभु श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी के दिन पुर्नवसू नक्षत्र के समय कर्क लग्न में हुआ था इस समय पांच ग्रह अपने-अपने उच्च राशि में स्थित थे। बृहस्पति चंद्रमा के साथ थे। 

उसी समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अवतार हुआ था इसी पर आधारित कुंडली को देखा जाये तो प्रभु श्रीराम का जन्म कर्क लग्न व कर्क राशि में हुआ था। भगवान श्री राम के गोचर कुंडली का अध्ययन किया जाये जो कुंडली में गृह सुखादि का भाव चतुर्थ भाव माना जाता है। कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी शुक्र है।
श्री राम की जन्म कुंडली में भवन सुख भाव में शनि होने से भवन होने के बाद भी भवनसुख का योग मध्यम एवं संघर्ष पूर्ण है।इसीलिए बचपन में पहले पिता के साथ रहते रहे। 15 वर्ष की उम्र में  विश्वामित्र जी ले गए फिर विवाह के बाद राज्य मिलना था तो बनवास हो गया । वहाँ जाकर जंगल में जब कुटी बनाई तो सीता हरण हो गया।जब बन से वापस आए तो सीता जी को बनवास हो गया।इसप्रकार जब गृहणी ही चली गई तो गृह सुख की आशा ही क्या बची ?        ज्योतिष की दृष्टि से यहाँ एक बात अवश्य है कि भवन भाव में  शनि उच्च राशि का है एवं भवनेश शुक्र भाग्य स्थान में उच्च राशि का है इसलिए राम जी कहाँ कितने दिन रह पाए या उन्हें गृहसुख कितना मिला या नहीं मिला  ये अलग बात है किन्तु उन्हें रहने के लिए जो  भवन या राज्य मिले वो एक  से एक भव्य अर्थात सुन्दर थे।अयोध्या का राज्य तो अपना था ही लंका और किष्किन्धा भी लोग देने को तैयार थे किन्तु श्री राम ने जीते हुए देश भी लिए ही नहीं।     यहाँ ज्योतिष की एक बात विशेष ध्यान देने लायक यह है कि जैसे अयोध्या का राज्य मिलने से पहले भी गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ श्री राम को  खुले आसमान में ही बितानी पड़ी थीं अब फिर से अस्थाई श्री राम मंदिर में गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ खुले आसमान में ही प्रभु श्री राम  को बितानी पड़ रही हैं।

आज से लगभग 4000 साल पहले भारत में बहुत कम मंदिर हुआ करते थे लेकिन पूरे भारतवर्ष में ऐसा कोई स्थान नहीं था जहां शिवलिंग ना हों। इसका एक सीधा सा अर्थ यह भी हुआ कि वैदिक काल और उसके आसपास हम भारतीय निर्गुण और निराकार ईश्वर में ज्यादा आस्था रखते थे।
शिवलिंग की रचना कुछ इस प्रकार की है कि उसमें पूरा ब्रह्माण्ड ही समाया हुआ है। करीब 2500 साल पहले सगुण और साकार ईश्वर कल्पना के चलते विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। जब देश में बौद्धिज्म और उसके साथ ही जैनिज्म का विकास हुआ तब देवताओं की प्रतिभाओं का प्रचलन जोर पकड़ने लगा।

लेकिन इस दौर में बुद्ध और महावीर की प्रतिमाएं अधिक मिलती हैं। शनैः-शनैः स्थितियां बदली और पुनः हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अस्तित्व में आने लगीं।
लगभग 1500 – 2000 वर्ष पूर्व दो प्रकार के मंदिर भारत में मिला करते थे। ज्योर्तिलिंगों का अपना एक महत्व है जो सदैव रहा है और इसी परंपरा में देवी की गुफाएं और मंदिर जो प्राचीन काल से अस्तित्व में हैं
उनका महत्व कभी नहीं घटा। पर्वत और नदियां सदैव से ही पूजनीय रही हैं और वहां पर समय-समय पर यज्ञ, पूजा, हवन, कुंभ आदि की व्यवस्था भी समय सारणी के हिसाब से चलती रहती थी। इसमें कुछ विशिष्ट मंदिर भी थे जहां कि गर्भ गृह में जाने के लिए भक्त को एक खास तरह कीप्रिपरेशन भी करना पड़ती थी।
जैसे कुछ मंदिर ऐसे थे जिनका जिक्र आजकल केरल में चल रहा है जहां 10 से 50 साल के भीतर की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। कुछ ऐसे भी मंदिर थे जहां भक्त जब संतान की कामना से जाता था तो उसको संतान प्राप्त होती थी। विशिष्ट कार्यों के लिए विशिष्ट मंदिरों का निर्माण इस देश में हुआ था।
इसी परंपरा में अधिकतर मंदिर प्रत्येक गांव के बाहर हुआ करते थे और ये मंदिर जो बड़े महत्वपूर्ण और एनर्जी के सेंटर थे। गांव के लोग और जो लोग उस गांव में आते थे वो अपनी सुविधा के अनुसार मंदिर के दर्शन करते थे और वहां पर कई तरह की समस्याओं का समाधान भी होता था जो धार्मिक भी थी और सामाजिक भी। सुबह – शाम साधारणतः लोग इन मंदिरों के दर्शन भी करते थे और पूजा पाठ भी।
लगभग 1000 – 1200 वर्ष पूर्व मंदिर घरों में बनने लगे थे और उनमें देवी-देवताओं की मूर्तियों को सुशोभित किया जाता था। मूर्ति निर्माण की कला भारत में बहुत पहले से विकसित हो चुकी थी। अगर आप किसी भी देवी-देवता की मूर्ति को गौर से देखें तो ये सारी मूर्तियां ना केवल संतुलित होती है बल्कि सीमेट्रीकल भी होती हैं।
मान लीजिए भगवान कृष्ण की खड़े हुए की मूर्ति आपके मंदिर में प्रतिष्ठित है। अगर आप सिर से पैर तक ठीक से अवलोकन करें तो कुछ चीजें आपके नोटिस में आएंगी जैसे मूर्ति के बाल सुन्दर और स्निग्ध मालूम पड़ेंगे।
अगर मूर्ति के सिर को तीन भागों में बांटे जिसमें पहला भाग माथा या भाल और दूसरा भाग जहां नेत्र, कान और आंख स्थित है और तीसरा मुंह का भाग, तो पूरा फेस सीमेट्रीकल होता था। सिर से लेकर गर्दन तक और सीने से लेकर कमर तक और कमर से लेकर पैरों तक के हिस्से सनुपात में बनाये जाते थे।
मूर्ति के हाथ और पैर अति सुन्दर होते हैं। ये सारी मूर्तियां शरीर के परफेक्शन को भी दर्शाती हैं। समुद्र शास्त्र की मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से संतुलित होता है तो ऐसे व्यक्ति को सुख-सुविधाओं की कमीं नहीं होती।
भगवान की मूर्तियों के साथ हमारी आस्था तो सनातन है और जब हम उन मूर्तियों के सामने सुबह-शाम बैठते, ध्यान करते थे, पूजा-पाठ करते थे तो उसमें ऐसा प्रयास रहता था कि मेरा शरीर भी प्रभु जैसा हो जाये और उनकी कृपा भी मुझ पर बनी रहें।
थोड़ा विषयांतर करते हुए देश की कुंडली और वर्तमान दशा की बात करना ठीक रहेगा। देश की कुंडली में सितम्बर 2015 से चन्द्रमा की 10 वर्षीय महादशा चल रही है जो सितम्बर 2025 में समाप्त होगी। चन्द्रमा तृतीय भाव में चार अन्य ग्रहों के साथ विराजमान है।
चन्द्रमा अहंकार और विचार दोनों का प्रतिनिधित्व करता है और अगर अहंकार ज्यादा हो जाये तो विचार गौण हो जाता है। अहंकार की समस्या यह है कि अहंकार रहित आदमी ढूंढना मुश्किल है और अहंकारी व्यक्ति अपने सिवाय दूसरे को महत्व नहीं देता।
देश की राजनीति कुछ इस प्रकार की हो गयी है कि एक राजनैतिक पार्टी दूसरी राजनैतिक पार्टी पर तंज नहीं कसती बल्कि छिछालेदर के मूड में रहती है और यह स्थिति हर पार्टी की है। प्रत्येक पार्टी सामने वाले से स्वयं को महान बताती है और सामने वाले को हर तरह से रददी सिद्ध करती है।
हम लोग यानि जन साधारण या तो अहंकार से पीड़ित या दूसरे के अहंकारों को झेलकर पीड़ित हैं। वैदिक काल से अब तक महान खोजों में से एक खोज संवाद की भी है और अब संवाद देखने को नहीं मिलता और अगर हम बदले नहीं तो 2025 तक क्या होगा श्रीराम ही बता सकते हैं।
10 अगस्त 2018 से 10 दिसम्बर 2019 तक चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा चल रही है। चन्द्रमा कुंडली में तृतीय भाव में है और बृहस्पति छटे भाव में। भारतवर्ष की कुडली में बृहस्पति अत्यधिक कमजोर है।
जहां चन्द्रमा अहंकार को पौषित करता है वहीं कमजोर बृहस्पति धार्मिक उन्माद देता है। 10 अगस्त के बाद देश में मंदिर – मस्जिद को लेकर और इस मुद्दे पर विभिन्न धर्मों के विचार को लेकर जिस तरह का माहौल बना हुआ है इसमें अभी उन्माद आना बाकी है।
प्राचीन काल में धर्म और राजनीति एक हुआ करते थे लेकिन वर्तमान युग में राजनीति और धर्म दो अलग इकाई बन गये हैं। हमारी समझ से सारे विवाद का बीजारोपण इसी पाॅइंट से होता है। 

ज्योतिषी गणना के आधार पर ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने कहा कि कश्मीर में 20 अगस्त 2019 तक माहौल तनावपूर्ण रहने की आशंका है। 10 नवंबर 2019 तक पड़ोसी देश, भारत के इस फैसले का विरोध करता रहेगा।
 ज्योतिषीय गणना के अनुसार अगले वर्ष 24 जनवरी 2020 को जैसे ही शनिदेव स्वराशि में प्रवेश करेंगे, यह स्थिति पूर्ण रूप से भारत के पक्ष में बनेगी।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया गया कि आगामी 5 नवंबर 2019 से गुरु धनु राशि में प्रवेश करेंगे व अगले साल 24 जनवरी 2020 से न्यायप्रिय शनि देव के स्वराशि में प्रवेश के साथ ही 6 माह के भीतर ही राम मंदिर पर भी बड़े फैसले देखने को मिलेंगे। मंदिर तो बनना ही चाहिए और वहीं बनना चाहिए जहां के निमित्त है।

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