नई दिल्ली 05 अप्रेल। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के बीच खिचीं अघोषित तलवारों की खनक अब सडकों पर भी सुनाई देने लगी हैं। यद्यपि कमल नाथ ने उनके विभाग की परियोजनाओं के पूरा होने में अभी तक वन एवं पर्यावरण मंत्री के अडंगे की बात नहीं कही है, फिर भी जयराम रमेश का स्पष्टीकरण अपने आप में सब कुछ बयां करने के लिए काफी माना जा सकता है। गौरतलब है कि कमल नाथ पूर्व में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की महती जवाबदारी पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंम्हाराव के कार्यकाल में संभाल चुके हैं।
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के सातवें दीक्षांत समारोह में पत्रकारों से रूबरू केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने यह भरोसा दिलाया है कि उनका विभाग राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में कोई अडचन डालने की कोशिश नहीं कर रहा है। रमेश का कहना था कि पर्यावरण मंत्रालय और वन विभाग ने राष्ट्रीय राजमार्ग की 98 फीसदी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। उन्होंने आगे कहा कि जिन क्षेत्रों में बाघ संरक्षण केंद्र या घने जंगलों के बावजूद परियोजनाएं पारित हुईं हैं, उन्ही परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी गई है।
अपने उपर लगे इन आरोपों को उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया कि उनकी वजह से नेशनल हाईवे परियोजनाएं बाघित हो रही हैं। बाघ संरक्षण केंद्र अथवा घने वन क्षेत्रों में किन किन परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी गई है, के प्रश्न पर उन्होने बताया कि एक परियोजना मध्य प्रदेश में तो दूसरी असम में है, जिसे अनुमति नहीं दी गई हैं इन दोनो ही परियोजनाओं का खुलासा वे नहीं कर सके कि कौन सी परियोजना उनके द्वारा अटका कर रखी गई है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा वाले जिले सिवनी में फोरलेन निर्माण का काम मंथर गति से चलाया जा रहा है। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि सिवनी जिले की पश्चिमी सीमा पर अवस्थित छिंदवाडा जिला 1980 से केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की कर्मभूमि रहा है। वे यहां से सांसद चुने जाते रहे हैं।
सिवनी जिले में फोरलेन का काम प्रभावित करने और इस मार्ग को बरास्ता छिंदवाडा ले जाने के आरोप कमल नाथ पर लग चुके हैं। शेरशाह सूरी के जमाने की उत्तर को दक्षिण से जोडने वाली इस सडक को जीवनरेखा माना जाता रहा है। इस मार्ग को यहां से ले जाने और यहां से न गुजरने देने के लिए अनेक ताकतें सक्रिय हैं। गौरतलब होगा कि इस मार्ग का काम सिवनी के तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश से रोका गया था। इसके बाद लोगों ने उस आदेश को खारिज करवाने के बजाए दूसरे रास्ते अख्तियार किए जिससे मामला और उलझता चला गया। वर्तमान में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
बहरहाल जयराम रमेश के करीबी सूत्रों का कहना है कि दरअसल भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ पूर्व में वन एवं पर्यावरण मंत्री रह चुके हैं। पृथ्वी सम्मेलन में उन्होंने भारत का पक्ष बहुत ही वजनदारी से रखा था। पर्यावरण्ा एवं वन मंत्रालय अनेक अधिकारी आज भी कमल नाथ के मुरीद हैं। सूत्र बताते हैं कि कमल नाथ का हस्ताक्षेप आज भी वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में काफी अधिक है, जिससे जयराम रमेश खफा हैं, और यही कारण है कि जब भी भूतल परिवहन मंत्रालय की पूंछ उनके मंत्रालय में आकर फंसती है, वे उसमें पूरे नियम कायदों का हवाला देकर उसे लंबित कराने से नहीं चूकते हैं।
-लिमटी खरे