पूर्वोत्तर भारत की स्वतंत्रता सेनानी रानी गाइदिन्ल्यू

वीरेन्द्र परमार

जेलियांगरोंग तीन नागा जनजातियों की सामूहिक संज्ञा है I इन जनजातियों के लोग पूर्वोत्तर के तीन राज्यों असम, मणिपुर और नागालैंड में निवास करते हैं I ‘जेलियांगरोंग’ शब्द तीन नागा जनजातियों का मिश्रण है-जेम, लियंगमई और रोंगमेई I ZEME, LIANGMAI & RONGMEI– इन तीनों जनजातियों के नाम के अंग्रेजी अक्षरों ZE, LIANG, RONG को मिलाकर ZELIANGRONG बना है I ‘जेलियांगरोंग’ कोई एक जनजाति नहीं बल्कि कई जनजातियों की सामूहिक संज्ञा है I नागालैंड के पेरेन, मणिपुर के तमेंगलांग, सेनापति, चूराचांदपुर, इंफाल घाटी, असम के सिलचर शहर, हाफलोंग और लखीमपुर के कुछ भागों में इस समुदाय के लोग निवास करते हैं I इस समुदाय के लोग अनेक देवी-देवताओं के प्रति निष्ठा रखते हैं I इनके सर्वोच्च ईश्वर का नाम ‘’तिंगकाव रगवंग’’ है I 1 इनका विश्वास है कि ’तिंगकाव रगवंग’’ से बड़ा कोई भगवान या शक्ति नहीं है I वह सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं I उन्होंने ही जन्म और मृत्यु की रचना की है I वे सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हैं I उन्होंने ही इस सृष्टि की रचना की है I अतः संसार के सभी लोग उनकी संतान हैं I उन्होंने सभी देवी-देवताओं का सृजन किया है I उनका कोई निश्चित रूप और आकार नहीं है I वे अनेक रूपधारी हैं I वे कोई भी रूप व आकार ग्रहण कर सकते हैं I उन्हें अनेक नामों से संबोधित किया जाता है I पारंपरिक विधि से ‘’तिंगकाव रगवंग’’ की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए गीत गाए जाते हैं I जेलियांगरोंग समुदाय का विश्वास है कि ’तिंगकाव रगवंग’’ और उनके उपासकों के बीच देवताओं के सात भाइयों का समूह सेतु का कार्य करता है I इन सप्त बंधु देवताओं के नाम हैं- रगवंग, विष्णु, छंचाई, नपसिनमेई, चरकीलोंगमेई, कोकलु, करगोंग I इन सप्त बंधुओं के अतिरिक्त भी जेलियांग समाज में अनेक देवी-देवताओं की अवधारणा है I जेलियांग जनजाति के लोग स्वदेशी धर्म में आस्था रखते हैं जिसका नाम “हेरका” धर्म है I 2001 की जनगणना के अनुसार लगभग 23,000 लोग इस सनातन धर्म “हेरका” के प्रति आस्थावान हैं I सतयुग में जेलियांग नागा लोग ईश्वर प्रदत्त धर्म “हेरका” को मानते थे I उस समय सभी जीव-जंतु और मनुष्य एक साथ रहते थे और एक ही भाषा बोलते थे I हजारों वर्ष बीतने के बाद हाइपो जादोनंग ने एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन चलाया जिसे “हेरका” (शाब्दिक अर्थ “शुद्ध” होता है) कहा जाता है I “हेरका” धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करने में रानी गाईदिनलियू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई I 2 जिस समय मणिपुर के नागा समुदाय में ईसाई और वैष्णव धर्म का प्रसार करने की कोशिश की जा रही थी उस समय जदोनांग ने परंपरागत नागा विश्वास प्रणालियों को मानकीकृत किया I “हेरका” धर्म ने सर्वोच्च “तिंगकाव रगवांग” की पूजा पर बल दिया। पारंपरिक धर्म में इस देवता को सृष्टिकर्ता देवता के रूप में स्वीकार किया गया था, लेकिन यह अनेक देवताओं में से एक था और दैनिक जीवन में इसका बहुत महत्व नहीं था। जदोनंग ने तिंगकाव रगवंग को एक सर्वज्ञानी और सर्वव्यापी भगवान के रूप में वर्णित किया I उन्होंने तिंगकाव रगवंग को आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत के रूप में वर्णित किया I उन्होंने लोगों को नियमित प्रार्थना करने और उनकी स्तुति में भजन गाने के लिए प्रोत्साहित किया । अन्य पारंपरिक देवताओं का सम्मान किया गया, लेकिन उन्हें कम महत्व दिया गया । एकेश्वरवाद की यह अवधारणा ईसाई धर्म और शायद इस्लाम से प्रभावित थीं I पारंपरिक धर्म में मंदिर निर्माण की धारणा नहीं थी, लेकिन जदोनंग ने “काव काई” नमक ‘हेरका’ मंदिर निर्माण को प्रोत्साहित किया I प्रत्येक अवसर पर किए जानेवाले अनुष्ठानों को भी उन्होंने नियंत्रित किया I जदोनैंग ने मानवीय मूल्यों पर बल दिया I उन्होंने बलि प्रथा को भी न्यूनतम कर दिया । ‘हेरका आंदोलन” को धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में वर्णित किया गया है I इसे रानी गाइदिन्ल्यू आंदोलन के नाम से भी जानते हैं I रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के लोंगकाऊ नामक ग्राम में हुआ था I वे अपने माता-पिता की सातवीं संतान थीं I उनके पिता का नाम लोथोनांग तथा माता का नाम केलुवतलिन्लीयू था I तेरह वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करना है I उन्होंने अल्पायु में ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर दिया था । ईसाई मिशनरियों के द्वारा आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का भी उन्होंने जमकर विरोध किया । तेरह वर्ष की उम्र में वर्ष 1927 में रानी गाइदिन्ल्यू की मुलाकात हाईपू जदोनांग से हुई I जदोनांग सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार तथा अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे I रानी उनसे बहुत प्रभावित हुईं और उन्होंने निर्णय कर लिया कि वे जादोनांग का अनुसरण करेंगी I उन्होंने हाईपू जदोनांग के साथ ‘हेरका आंदोलन’ से जुड़ने का निर्णय किया I यह आंदोलन अंग्रेजों द्वारा नागा लोगों पर हो रहे अत्याचार-उत्पीडन के खिलाफ था I हेरका आंदोलन में शामिल योद्धा क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न थे I मणिपुर की राजनीति, संस्कृति और सामजिक जीवन में रानी गाइदिन्ल्यू का उल्लेखनीय योगदान है I उन्होंने मणिपुरी समाज में जागरूकता का संचार करने के लिए निरंतर कार्य किया I उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और मणिपुर के लोगों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी I रानी गाइदिन्ल्यू मणिपुर की प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं I अंग्रेजों ने 28 जनवरी 1931 को छल से जादोनांग को गिरफ्तार कर लिया I रानी गाइदिन्ल्यू ने अपनी भाषा में जादोनांग को सावधान कर दिया था, लेकिन लखीपुर थाने के तत्कालीन दारोगा अली ने उन्हें पकड़ने के लिए अपने कुचक्र का पूरा जाल फैला दिया था I जादोनांग के गिरफ्तार होने के बाद रानी गाइदिन्ल्यू ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा था-“स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है I अंग्रेजों के क्रूर शासन का अंत करना तथा ईसाई मिशनरियों से अपने धर्म की रक्षा करना हमारे जीवन का लक्ष्य है I आपकी गिरफ़्तारी के बाद भी यह युद्ध निरंतर चलता रहेगा I हमारे वीर योद्धा जादोनांग को अंग्रेजों ने छल से पकड़ लिया है I इसका खामियाजा अंग्रेजों को भुगतना पड़ेगा I आप भारत माता के सच्चे सपूत हैं I देश आप पर गर्व करेगा I”3 29 अगस्त 1931 को अंग्रेजों ने जादोनांग को फाँसी दे दी I जादोनांग को फांसी देने पर नागा समुदाय में आक्रोश उत्पन्न हो गया जिस आक्रोश को रानी ने सही दिशा दी I एक सभा में रानी ने युवकों को संबोधित करते हुए कहा-“हमारे सामने बैठा हुआ प्रत्येक युवक एक वीर जादोनांग है I यह दुःख व्यक्त करने का समय नहीं है, बल्कि जादोनांग द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता आंदोलन को आगे ले चलने के लिए कुर्बानी देने का समय है I जागो, उठो और स्वतंत्रता की रक्षा हेतु उबलते हुए इस महासमर में कूद पड़ो I”4 इसके उपरांत रानी गाइदिन्ल्यू के नेतृत्व में आंदोलन ने जोर पकड़ लिया I वे लोगों के सामने बेबाकी से अपने विचार प्रस्तुत करती थीं I उनकी ईमानदारी, देशभक्ति, प्रतिभा और सदाचरण से लोग बहुत प्रभावित थे I एक बार सभा को संबोधित करते हए उन्होंने कहा-“हमारा सनातन धर्म खतरे में है I इस पर चारों ओर से आक्रमण हो रहे हैं I हमारी आज़ादी भी खतरे में पड़ गई है और अंग्रेज हम पर शासन कर रहे हैं I इन गोरों को भगाने और अपने धर्म व संस्कृति की पहचान को बचाने के लिए हमें निजी कार्यों से ऊपर उठकर ऐसा कार्य करना है जिससे हमारी आज़ादी बनी रहे और हमारी संस्कृति और सनातन धर्म को विकसित किया जा सके I वास्तव में यही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए I”5 अंग्रेजों ने प्रति वर्ष गृह कर के रूप में तीन रुपए का भुगतान करने का आदेश जारी किया था जिसका रानी ने जोरदार विरोध किया और लोगों को आह्वान किया कि वे गृह कर का भुगतान नहीं करें I लोगों ने ब्रिटिश सरकार को गृह कर देना बंद कर दिया जिससे सरकार नाराज हो गई I रानी गाइदिन्ल्यू का आंदोलन पूरे जेलियांगरोंग समाज में फ़ैल चुका था I रानी का अन्य नागा समुदाय जैसे अंगामी, आओ इत्यादि जनजातियों पर भी व्यापक प्रभाव था I शीघ्र ही दिमासा, बंगाली और हिंदू धर्म को माननेवाले समाज में भी वे लोकप्रिय हो गईं I
रानी गाइदिन्ल्यू ने विभिन्न नागा कबीलों को एकजुट किया और अंग्रेजों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाकर लड़ाई तेज कर दी I ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित धर्म परिवर्तन के विरुद्ध भी उन्होंने आवाज बुलंद की I उनके तेजस्वी व्यक्तित्व और ओजस्वी भाषण के कारण अनेक आदिवासी उन्हें देवी का अवतार समझते थे I उस इलाके में अंग्रेजो का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था, दूसरी ओर रानी गाइदिन्ल्यू अपनी लड़ाई को और धार दे रही थीं I आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने आदिवासियों के अनेक गाँवों में आग लगा दी I जब अंग्रेजों ने रानी और उनके साथियों के खिलाफ जोरदार मोर्चा खोल दिया तो वे अपने साथियों के साथ भूमिगत हो गई I रानी गाइदिन्ल्यू में आदिवासी लोगों की अटूट निष्ठा थी I अंग्रेजों के विरुद्ध रानी ने अपनी युद्ध शैली को बदल दिया और छापामार युद्ध करने लगी I वे छापामार युद्ध औए अस्त्र-शस्त्र संचालन में अत्यंत कुशल थीं I रानी गाइदिन्ल्यू ने एक ऐसे किले का निर्माण किया जिसमें उनके चार हजार साथी रह सकें I रानी गाइदिन्ल्यू गुरिल्ला युद्ध में कुशल थीं I वह गुरिल्ला युद्ध कर अंग्रजों की सेना के छक्के छुड़ा देती थीं I कम सेना और सीमित संसाधनों के बावजूद वे अंग्रजी सेना पर भारी पड़ती थीं I शत्रुओं पर आक्रमण कर जंगलों में छिप जाना उनकी कुशल रणनीति का अंग था I वे भूमिगत होकर लड़ाई लड़ रही थीं और एक स्थान पर अधिक दिनों तक नहीं ठहरती थीं I मणिपुर, नागालैंड और असम तीनों राज्यों में उनका प्रभाव भी था और उनके असंख्य अनुयायी भी थे I उनका आंदोलन एक साथ दो मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहा था I एक ओर वह जेलियांगरोंग समाज में धार्मिक सुधार करने के लिए संघर्ष कर रहा था तो दूसरी ओर वह अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए भी शंखनाद कर रहा था I जादोनांग की फांसी के बाद हेरका आंदोलन सम्पूर्ण नागा पहाड़ी और उत्तरी कछार पहाड़ी में फ़ैल चुका था I अंग्रेज अधिकारियों ने सर्वत्र अपने जासूस बिठा रखे थे I इसलिए उन्हें पल-पल की खबर मिल रही थी I अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचलने एवं रानी को गिरफ्तार करने की योजना बनायी I अंग्रेजों ने सर्वप्रथम हेरका धर्म को बदनाम किया, शैतान व पिशाच कहकर हेरका धर्म का मजाक उड़ाया ताकि उस धर्म को माननेवाले लोगों का मनोबल गिर जाए I अंग्रेजों ने रानी गाइदिन्ल्यू के विरुद्ध भी अफवाह उड़ाई कि वे मानव की बलि देती हैं तथा आदमी का रक्त पीती हैं, लेकिन अंग्रेजों की बातों पर किसी ने विश्वास नहीं किया I रानी का व्यक्तित्व असाधारण था और उनकी वाणी में ओज के साथ-साथ सम्मोहन था I इसलिए लोग रानी को देवी की तरह पूजा करते थे I रानी की प्रेरणा से भारी संख्या में लोग स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो रहे थे I वर्ष 1932 में असम राइफल्स की एक टुकड़ी रानी और उनके साथियों को पकड़ने के लिए भेजी गई I अंग्रेजों ने रानी और अन्य आंदोलनकारियों को जीवित या मृत पकड़ने का आदेश दिया था I आंदोलनकारियों और अंग्रेज सेना के बीच कई बार मुठभेड़ भी हुई I रानी गाइदिन्ल्यू को पकड़ना आसान नहीं था I वे अपना नाम और वेशभूषा बदल-बदलकर घूम रही थीं, साथ-साथ वे नागा समुदाय के युवकों को अपने दल में शामिल भी कर रही थीं I उन्हें पकड़ने के लिए चालाक अंग्रेज अधिकारियों ने पुरस्कार की भी घोषणा कर दी I हेरका आंदोलन से हजारों की संख्या में नागा और गैर-नागा लोग जुड़ गए थे, परंतु चर्च इस स्वदेशी आंदोलन के विरोध में थे I ईसाई मिशनरी स्कूलों में पढ़े युवक भी रानी का विरोध कर रहे थे I उन्हें यह समझा दिया गया था कि रानी ईसाई धर्म प्रचार का विरोध करती हैं I अंग्रेजों ने अनेक नागा युवकों और गाँव बूढ़ा को हेरका आंदोलन एवं रानी से संबंधित ख़ुफ़िया सूचना देने के लिए काम पर लगा दिया था I रानी गाइदिन्ल्यू पुलोमी गाँव में रहकर गोपनीय रूप से आंदोलन का संचालन कर रही थीं I डॉ हरालू भी पुलोमी गाँव का निवासी था और रानी गाइदिन्ल्यू एवं हेरका आंदोलन का प्रबल विरोधी था, लेकिन उसका छोटा भाई के. हरालू रानी का अनुयायी एवं उनका प्रबल समर्थक था I डॉ हरालू जेमी जनजाति का था और ईसाई धर्म का अंध अनुकरण करता था I अंग्रेजों ने उसे रानी की जासूसी करने के लिए तैनात कर दिया था I 18 अक्तूबर 1932 को धोखे से अंग्रेजों ने रानी को गिरफ्तार कर लिया I उनके साथ उनके छह प्रमुख कमांडरों को भी गिरफ्तार कर लिया गया I गिरफ्तार हो जाने के बाद डॉ हरालू ने निर्लज्जतापूर्वक रानी गाइदिन्ल्यू के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा जिसे रानी ने उसे धिक्कारते हुए ठुकरा दिया I जब रानी की गिरफ़्तारी का समाचार के. हरालू को प्राप्त हुआ तो वह अपने बड़े भाई डॉ. हरालू पर आग बबूला हो गया I वह अपने बड़े भाई डॉ हरालू को मारने के लिए उद्दत था, परंतु उसे रोक दिया गया I उसने कहा कि कुछ धन के लोभ में डॉ हरालू का इतना नैतिक पतन हो गया कि उसने रानी गाइदिन्ल्यू जैसे देशभक्त को गिरफ्तार करा दिया I रानी पर मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई I पंडित जवाहरलाल नेहरु वर्ष 1937 में शिलांग में रानी से मिले और उन्हें “पर्वत की बेटी” की उपाधि दी I पंडित जवाहरलाल नेहरु रानी की देशभक्ति, साहस और उत्साह से बहुत प्रभावित थे I मात्र बाइस वर्ष की आयु में ही रानी गाइदिन्ल्यू ने जिस बुद्धिमत्ता और युद्ध कौशल का परिचय दिया था वह चमत्कार से कम नहीं था I 15 अगस्त 1947 को जब देश स्वतंत्र हुआ तो प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के आदेश से रानी को तुरा जेल से रिहा किया गया I रानी ने अपने जीवन के चौदह स्वर्णिम वर्ष कारावास में व्यतीत किए I उन्होंने पूर्वोत्तर के गुवाहाटी, आईजोल, तुरा और शिलांग जेल में अपनी सजा के 14 वर्ष व्यतीत किए I रानी गाइदिन्ल्यू अपनी मांगों को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से भी मिलीं और ‘जेलियांगरोंग प्रशासनिक इकाई” के गठन की वकालत कीं I उन्होंने ‘जेलियांगरोंग जनजाति’ को एक अलग समुदाय के रूप में मान्यता देने की मांग भी उठाई I वर्ष 1972 में रानी को ‘’ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार”, वर्ष 1982 में पद्मभूषण और वर्ष 1983 में ‘’विवेकानंद सेवा पुरस्कार’’ दिया गया I 17 फ़रवरी 1993 को 78 वर्ष की आयु में अपने गाँव में रानी का देहावसान हो गया I वर्ष 1996 में मरणोपरांत उन्हें ‘बिरसा मुंडा पुरस्कार’ दिया गया I रानी की देश सेवा और त्याग की स्मृति में भारतीय जनसंचार संस्थान में रानी गाइदिन्ल्यू के नाम पर एक महिला छात्रावास का नाम रखा गया है I उनकी स्मृति में 1996 में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया I उन्हें नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है I भारत सरकार ने उन्हें ‘श्री शक्ति पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया I पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गाँधी, श्री राजीव गाँधी और श्री मोरारजी देसाई इन चार प्रधानमंत्रियों के साथ रानी गाइदिन्ल्यू का व्यक्तिगत परिचय था I ये चारों रानी को बहुत सम्मान देते थे I रानी की मांग थी कि असम, नागालैंड और मणिपुर के जेलियांगरोंग क्षेत्रों को नागालैंड में मिला लिया जाए, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं किया जा सका I वर्ष 1969 में असम के जोरहाट में विश्व हिन्दू परिषद का एक सम्मलेन आयोजित किया गया था जिसमें रानी गाइदिन्ल्यू शामिल हुई थीं I विश्व हिन्दू सम्मलेन को संबोधित करते हुए रानी ने कहा-“यहाँ आकार हिन्दू समाज का दर्शन कर हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है I नागालैंड में हमारे धर्म और संस्कृति पर खतरा उत्पन्न हो गया है I हमारे लोगों को धर्मान्तरित किया जा रहा है I छोटे-छोटे बच्चों को भी उनके माँ-बाप की जानकारी व अनुमति के बिना ईसाई बनाया जा रहा है I आतंकवादी भी धर्मांतरण करवा रहे हैं I अतः इस समस्या के समाधान के लिए हमें मिलकर काम करना होगा I

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वीरेन्द्र परमार
एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन I प्रकाशित पुस्तकें :- 1. अरुणाचल का लोकजीवन(2003) 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009) 3.हिंदी सेवी संस्था कोश(2009) 4.राजभाषा विमर्श(2009) 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010) 6.डॉ मुचकुंद शर्मा:शेषकथा (संपादन-2010) 7.हिंदी:राजभाषा,जनभाषा, विश्वभाषा (संपादन- 2013) प्रकाशनाधीन पुस्तकें • पूर्वोत्तर के आदिवासी, लोकसाहित्य और संस्कृति • मैं जब भ्रष्ट हुआ (व्यंग्य संग्रह) • हिंदी कार्यशाला: स्वरूप और मानक पाठ • अरुणाचल प्रदेश : अतीत से वर्तमान तक (संपादन ) सम्प्रति:- उपनिदेशक(राजभाषा),केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड, जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय(भारत सरकार),भूजल भवन, फरीदाबाद- 121001, संपर्क न.: 9868200085

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