—विनय कुमार विनायक
कुछ रिश्ते बन कर आते हैं
कुछ रिश्ते बनाए जाते
बनकर आने वाले रिश्तों के प्रति
जिम्मेवारियां बहुत होती
तैयारियां कुछ नहीं होती
बस फर्ज वफादारियां निभाई जाती
पिता भ्राता को देखकर
अगर खिलखिलाने लगे बहन बेटियां
तो सुकून मिलता है
समझो निभ गई सारी जिम्मेदारियां
जबतक ब्याही गई बहन बेटियां
मुस्कुरा कर विदा होती
तो समझो मिट गई सभी दुश्वारियां
जब ब्याही गई बहन बेटियां
आंखें चुरा कर कुछ छुपाने लगती
तो समझो बनाए गए रिश्ते से
कुछ तनातनी होने की संभावना है
ऐसे में बहुत सावधानी की जरूरत होती
ऐसे तो बनाए गए रिश्तों के प्रति
बहुत कम जिम्मेवारी होती
अगर ऐसे रिश्ते आपसे दूरियां करने लगे
तो घबराने की जरूरत नहीं सिर्फ चुप्पी साध लो
ऐसे रिश्ते ऐसे ही होते बनाए गए रिश्ते
बनाए गए रिश्ते से बहुत उम्मीद नहीं की जाती
अगर चिट्ठी पत्री संदेश निमंत्रण नहीं मिले
तो दुखी होने की आवश्यकता नहीं दिल थाम लो
दुख तो तब भी नहीं होना चाहिए
जब जन्म के रिश्ते तुमसे प्यार नहीं करे
जब आंख चुराए हिकारत करने लगे
तो समझ लेना जरूर कोई मजबूरी होगी
मगर याद रहे जब नजरें चुराती बहन बेटियां बुलाए
तो अवश्य पहुंच जाना बिना निमंत्रण कार्ड के
क्योंकि बहुत मजबूत होते ऐसे रिश्ते
तोड़ने से भी नहीं टूटते रक्त के रिश्ते
सुख नहीं दुख बांटने के लिए होते जन्म के रिश्ते!
—विनय कुमार विनायक
“तोड़ने से भी नहीं टूटते रक्त के रिश्ते
सुख नहीं दुख बांटने के लिए होते जन्म के रिश्ते!”
बहुत सुन्दर। विनय कुमार विनायक जी को मेरा साधुवाद।