आर्य समाज वासी मुम्बई का वेद प्रचार सप्ताह हुआ संपन्न :
मुम्बई। ( विशेष संवाददाता ) यहां पर स्थित आर्य समाज वासी में वेद प्रचार सप्ताह, ऋग्वेद यज्ञ और हिंदी दिवस समारोह संपन्न हो गया है। इस अवसर पर आर्य समाज वाशी के साइंटिस्ट प्रधान श्री भीम जी रुपाणी द्वारा डॉ राकेश कुमार आर्य की पुस्तक ’26 मानचित्रो में भारत के इतिहास का सच’ का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर वक्ता के रूप में उपस्थित रहे सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि वैदिक चिंतन में ही राष्ट्र राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता का सही स्वरूप प्रकट होता है। वेद का राष्ट्रवाद वास्तव में मानवतावाद और सबको एक ही परिवार का सदस्य देखने में विश्वास रखता है। उन्होंने कहा कि हमारे यजुर्वेद में जिस प्रकार की वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना का चिंतन प्रस्तुत किया गया है वह संसार के किसी अन्य धर्म ग्रंथ में उपलब्ध नहीं होता। उसमें व्यक्त किया गया चिंतन संपूर्ण मानवता को सुख और शांति प्रदान कर सकता है।
उन्होंने अपने गंभीर राष्ट्र चिंतन को प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस समय शास्त्र और शस्त्र का समन्वय कर देशघातक लोगों के विरुद्ध लामबंद होने की आवश्यकता है। इसके लिए सज्जन शक्ति अपनी संगठन शक्ति का परिचय देने के लिए आगे आए।
डॉ आर्य ने इतिहास की गंभीर प्रस्तुति देते हुए कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज पहले व्यक्ति थे जिन्होंने चित्तौड़ को अंग्रेजों के चंगुल में जाने से बचाया था । स्वामी जी महाराज के गुरु बिरजानंद और उनके भी गुरु पूर्णानंद और उनके भी गुरु आत्मानंद जी के सानिध्य में रहकर स्वामी दयानंद जी महाराज ने इतिहास का गंभीर अध्ययन किया था । जिन्होंने पिछले 150 वर्ष का इतिहास स्वामी दयानंद जी को जीते जागते स्वरूप में बता दिया था। इसी का परिणाम हुआ कि स्वामी दयानंद जी महाराज ने 1857 की क्रांति का सूत्रपात किया। उन्होंने उसी समय कह दिया था कि देश को आजाद करने में 100 वर्ष लगेंगे। डॉ आर्य ने कहा कि आज भी हमें अपने देश के गौरवशाली इतिहास को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। जिससे युवा पीढ़ी के भीतर अपने महापुरुषों के प्रति श्रद्धा का भाव पैदा हो। डॉ आर्य ने कहा कि उनकी पुस्तक ’26 मानचित्रो में भारत के इतिहास का सच’ में भारत के वैभवपूर्ण साम्राज्यों के मानचित्रो को प्रकट किया गया है। जिनके रहते भारत ने अपने गौरव में अभिवृद्धि की और विशाल विशाल साम्राज्य स्थापित कर भारत की संस्कृति को दूर-दूर तक फैलाने में सहायता प्रदान की।
यज्ञ के ब्रह्म रहे आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक ने कहा कि वेद का संगठन सूक्त हमें राष्ट्र धर्म और संस्कृति के प्रति संगठित होकर काम करने की प्रेरणा देता है। उन्होंने संगठन सूक्त की बड़ी मनोहारी व्याख्या करते हुए कहा कि जब तक देश के लोग संगठित होकर देश ,समाज और राष्ट्र के लिए काम करने के लिए प्रेरित रहे ,तब तक भारत विश्व गुरु के पद पर विराजमान रहा। जब हमारा संगठन शक्ति के प्रति समर्पण का भाव ढीला पड़ गया तो देश में अनेक प्रकार की विसंगतियों और विविधताएं कुकुरमुत्तों की भांति पैदा हुईं। आज भी हम इन विभिन्नताओं को सहेजने का काम कर रहे हैं । आज हम को चाहिए कि प्रत्येक प्रकार की विभिन्नताओं को समाप्त कर एक देव एक देश के प्रति समर्पण का भाव पैदा करें।
आचार्य श्री ने कहा कि देश के नेता जिस प्रकार की छद्म धर्मनिरपेक्षता की नीति का सहारा लेकर वोट की राजनीति के माध्यम से देश का बेड़ा गर्क कर रहे हैं वह देश के लिए बहुत ही अशुभ संकेत है । हमें इस प्रकार की मनोवृत्ति से सजग रहना है और देश की आर्य संस्कृति को हानि पहुंचाने वाले लोगों के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है।
आचार्य नागेश शर्मा ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वेद का निर्मल ज्ञान ही मनुष्य के भीतर की चल रही घातक मनोवृत्ति को समाप्त करने में सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ , ईर्ष्या , घृणा , द्वेष जैसी प्रवृत्तियां जब तक मनुष्य के भीतर काम करती रहती है तब तक मनुष्य अहंकारशून्य नहीं हो पाता। अहंकार शून्यता की स्थिति को प्राप्त करने के लिए भगवत भजन, वेद का प्रतिदिन स्वाध्याय और उस पर अमल करने की प्रवृत्ति को अपनाना आवश्यक है। इसके लिए हमारे ऋषि महर्षियों ने हमें दोनों समय संध्या करने का भी आदेश दिया है। संध्या के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर की दुष्प्रवृत्तियों को देखता है। सम्यक ध्यान करता है और दोषों को दूर करने के लिए संकल्पित होता है। साइंटिस्ट श्री भीम सिंह रुपाणी ने इस अवसर पर सभी उपस्थित महानुभावों का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि डॉ आर्य का साहित्य लेखन निश्चय ही युवा पीढ़ी के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। जिससे हम अपने अतीत के गौरव को समझने में सफल हुए।
आर्य जगत की सुप्रसिद्ध विदुषी भजनोपदेशिका श्रीमती अलका आर्या ने अपने भजनोपदेशन के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि वेद का राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रचिन्तन व्यक्ति के चित्त को निर्मलता प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज ने निर्भीकता का प्रदर्शन करते हुए काशी में जाकर लोगों को हिला कर रख दिया था और उनकी पाखंडी मनोवृति पर करारा प्रहार किया था। स्वामी जी की निर्भीकता का ही परिणाम था कि उस समय पाखंडी लोगों के बड़े-बड़े गढ़ नष्ट हो गए थे। इस कार्यक्रम का संचालन आर्य समाज के प्रधान भीम सिंह रुपाणी ने किया जबकि देवेश आर्य और जिले सिंह चौधरी ने भी अपना योगदान दिया।
ज्ञात रहे कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद जी महाराज ने 7 अप्रैल 1875 को मुंबई में ही आर्य समाज की स्थापना की थी। अब जबकि संपूर्ण देश में ही नहीं विदेशों में भी स्वामी दयानंद जी महाराज की 200 वीं जयंती मनाई जा रही है तब उनके प्रति समर्पित आर्य समाजवासी का यह कार्यक्रम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह और भी अधिक महत्वपूर्ण है कि इस आर्य समाज के सभी पदाधिकारी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं। यही कारण है कि यहां पर हिंदी भाषण प्रतियोगिता का इतना शानदार आयोजन किया गया कि सभी दर्शक दंग रह गए।