पुष्‍करणा सावा : एक दृष्टिकोण

श्‍याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

बीकानेर एक ऐसा शहर जहाँ परम्पराओं का निवास होता है, जहाँ के लोग अपनी संस्कृति और अपने रिवाजों के लिए जाने जाते हैं और उन्हीं रिवाजों और परम्पराओं में से एक परम्परा है बीकानेर में रहने वाले पुष्‍करणा समाज के लोगों का सामूहिक विवाहोत्सव – सावा। जी हाँ सावा एक ऐसी परम्परा जिसमें सैकड़ों शादियाँ एक ही दिन सम्पन्न हो जाती है। इस परम्परा के अंतर्गत पुष्‍करणा समाज के लोग एक दिन निश्चित कर अपने बेटे बेटियों की शादियाँ एक ही दिन सामूहिक रूप से सम्पन्न कर देते हैं। इस परम्परा में शादी के सारे कार्यक्रम एक निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सम्पन्न किए जाते हैं और उस दिन ऐसा लगता है जैसे सारा शहर ही मण्डप हो गया है और शहर के लोग बाराती। जहाँ देखो वहाँ दूल्हा, दूल्हन और बारातें ही नजर आती हैं।

यह परम्परा बीकानेर के पुष्‍करणा ब्राह्मण समाज में आज से नहीं बल्कि करीब सवा चार सौ साल से निभाई जा रही है। इस परम्परा को शुरू करने के पीछे क्या कारण रहे होंगे यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता पर ऐसा माना जाता है कि एक समय था जब पुष्‍करणा ब्राह्मण अपने राजाओं के साथ युद्ध पर जाया करते थे, (बीकानेर की बगीचीयों में लगे पुश्करणा ब्राह्मणों के पूर्वजों के चित्रों से यह स्पष्‍ट है कि पुष्‍करणा ब्राह्मण राजाओं की युद्ध में पूरी सहायाता किया करते थे), वह ऐसा समय था जब युद्ध वर्तमान समय की तरह नहीं बल्कि हाथों में हथियार पकड़ कर लड़े जाते थे और ऐसे युद्धों में समय भी बहुत लगता था। यह वह दौर था जब मनुष्‍य की साम्राज्यवादी अभिलाषा जोरों पर थी और राजा महाराजा अपने जीवन का एक बड़ा भाग इन युद्धों में लगा देते थे और इनके साथ आम सैनिक इनके सरदार और सब तरह के लोग भी युद्धों में अपना जीवन होम करते थे। माना जाता है कि ऐसे ही एक समय में बीकानेर के इन पुष्‍करणा ब्राह्मणों को लम्बा समय हो गया और इनके घरों में शादी विवाह जैसे संस्कार ही नहीं हो पाए। इन ब्राह्मणों ने राजा के सामने फरियाद करी और राजा ने उपाय सुझाया कि क्यों न ऐसा हो कि एक दिन निश्चित कर दिया जाए और उस दिन ब्राह्मणों के घर में शादी हो जाए और ऐसा करने के राजा के काम भी प्रभावित नहीं होंगे और शादी जैसा पवित्र संस्कार भी सम्पन्न हो जाएगा और माना जाता है कि ऐसे करके पुष्‍करणा ब्राह्मणों ने सावे ही शुरूआत की।

शुरूआत में यह सावा सात साल में एक बार मनाया जाता था फिर समय के साथ इसमें परिवर्तन हुआ और यह सावा चार साल में एक बार मनाया जाने लगा। वर्तमान में बढ़ती आबादी के कारण समय में फिर परिवर्तन हुआ और यह सावा अब दो साल में एक बार मनाया जाता है। इस सावे की तिथियाँ सावे वाले साल में दिपावली से पहले तय की जाती है। यह तिथियाँ पण्डितों के शास्त्रार्थ द्वारा तय की जाती है जिसमें पुश्करणा ब्राह्मण समाज के किराड़ू, ओझा, छंगाणी, जोशी सहित कईं जातियों के लोग हिस्सा लेते हैं। सामाजिक व्यवस्था के अनुसार यह इन पण्डितों को सावे की तिथियाँ तय करने के लिए पुश्करणा समाज के लालाणी व किकाणी व्यास समाज लोग वाकायदा आमंत्रित करते हैं और जब यह तिथियाँ तय हो जाती है तो धनतेरस के दिन पूरे समाज के सामने समारोहपूर्वक यह तिथियाँ घोषित की जाती है। इन तिथियों में हाथकाम, गणेश परिक्रमा, पाणिग्रहण संस्कार सहित बरी की तिथियाँ व ब्राह्मण बालकों के यज्ञोपवित धारण करने की तिथियाँ घोशित की जाती है। इसी के साथ पूरी दुनिया में रहने वाले पुश्करणा ब्राह्मणों में एक उत्साह दौड़ जाता है कि सावे के दिन बीकानेर जाना है।

वास्तव में सामूहिक शादियों का यह उत्सव सावा प्रतीक है ब्राह्मण समाज की प्रगतिशील सोच का और समाजवादी दृष्टिकोण का। जिस समाजवाद की कल्पना कार्ल मार्क्‍स, गाँधी ने की थी, जिस समाजवाद को स्थापित करने का संकल्प भारतीय संविधान में लिया गया है उस समाजवादी सोच के अनुसार शादियाँ करने की यह परम्परा बीकानेर के पुष्‍करणा समाज में सदियों पुरानी रही है। एक ही दिन सैकड़ों शादियाँ होने से धन का अपव्यय नहीं होता और कम खर्च में सारा काम हो जाता है। महंगाई के इस दौर में सदियों पुरानी यह परम्परा उन परिवारों के लिए जीवनदान है जिनकी आय कम है और जो शादी के लाखों रूपये खर्च करने में अपने आप को असमर्थ समझता है और उन धनाढय वर्ग के लिए भी वरदान है जो अपनी विशिश्ट पहचान बनाना चाहता है। एक दिन सैकड़ो शादी मतलब लगभग हर घर में शादी इसलिए न तो रूठना न मनाना न ज्यादा खर्च न ज्यादा दिखावा और न ही किसी प्रकार का आडम्बर। सभी एक ही जैसे चाहे अमीर हो या गरीब चाहे छोटा हो या बड़ा। साहब सावा है सो सावे की शादी परम्पराओं के अनुसार शादी।

सावे की जो सबसे बड़ा फायदा होता है वह यह है कि सावे में शादी करने वाला दहेज का लेन-देन बिल्कुल नहीं करता वैसे यहाँ यह बात मैं आपको बताना चाहूंगा कि पुष्‍करणा ब्राह्मण समाज में दहेज के लेन देन की प्रथा नहीं के बराबर रही है। आज भी इस समाज में दहेज हत्या या दहेज के कारण तलाक के मामले लाखों में कोई ही नजर आता है। सावे के कारण दहेज नहीं होना इस सामूहिक विवाह की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है।

बीकानेर के पुष्‍करणा ब्राह्मण आज पूरे भारतवर्ष में फैले हैं इसलिए सावे के दिनों में बीकानेर शहर लघु भारत का रूप धारण कर लेता है कोई बंगाल से आया होता है तो कोई महाराष्‍ट्र या गुजरात से कोई उड़ीसा से आता है तो कोई मध्यप्रदेश से। इस तरह पूरे शहर में खुशी का माहौल रहता है। देर रात तक शहर की सड़कों पर उत्सव का माहौल रहता है। पान की दुकानों पर, चौक के पाटों पर मेल-मिलाप के साथ साथ चर्चाओं व खाने पीने के दौर चलते रहते हैं। बीकानेर शहर का हर भवन बुक रहता है और सारा शहर रोशनी से नहाया होता है। औरतें मंगल गीत गाती है तो पुरूष तैयारियों में लगे रहते हैं। खुशी का यह माहौल सारे शहर को एकता के धागे में पिरोता है। सावे वाले दिन पारम्परिक विष्‍णु रूप में दूल्हे दौड़ते नजर आते हैं तो बाराती भी एक के बाद एक बारात में जाने की कोशिश करता है। बीकानेर के उत्साही युवक आजकल सावे के दिन तरह तरह के आयोजन

भी करते हैं जैसे बारहगुवाड़ चौक में विष्‍णु रूप में जो दूल्हा सबसे पहले आता है उसे सम्मानित किया जाता है और बाकी आने वाले दूल्हों का भी अभिनन्दन किया जाता है। इसी तरह का आयोजन साले की होली के चौक सहित कईं अन्य चौकों में भी होता है। वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा सावे के कारण सस्ती दरों पर चीनी, चावल व गेंहूँ, दूध के साथ ईंधन की व्यवस्था भी की जाती है तो समाज कल्याण विभाग द्वारा सामूहिक शादी के आयोजन मे शादी करने के कारण चार हजार पाँच सौ रूपये की आर्थिक सहायता भी की जाती है। इस तरह सावे का यह आयोजन अपने में कईं तरह के अन्य आयोजन भी समेटे होता है। इन दिनों में शहर में सांस्कृतिक कार्यक्रम, रंगोली प्रतियोगिता, ब्याह के गीत आदि के आयोजन भी किए जाते हैं।

सावे का प्रभाव सिर्फ पुश्करणा समाज के लोगों पर ही नहीं रहता है वरन् बीकानेर का रहने वाला हर व्यक्ति विवाह की इन खुशियों में शामिल होता है। विवाह के कारण हर वर्ग का व्यक्ति चाहे वह कपड़े का व्यापारी हो या खाने पीने की वस्तुओं का व्यापारी, दूध दही बेचने वाला हो या सब्जी वाला सब कोई इस सावे में अपने आप को खुश व उत्साह से भरा हुआ महसूस करता है। घरों में रंग रोगन से लेकर सफाई कर्मचारी तक की व्यवस्था शादी ब्याह में करनी होती है सो सावे के कारण यह सारा वर्ग अपने आप को व्यस्त करता है और दिल से इस सावे का स्वागत करता है। दूकानदार अपनी दुकानों को रंग बिरंगी रोशनी सहित कईं तरह से सजाते हैं। इस सावे के कारण शहर की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और संस्कृति जीवित हो उठती है। शुभ मुहुर्त होने के कारण अन्य जातियों के लोग भी इस दिन शादियाँ करते हैं।

सामूहिक शादी का यह उत्सव सावा बीकानेर के पुश्करणा ब्राह्मण समाज में ही होता है जबकि बीकानेर के अलावा पुश्करणा समाज के लोग जैसलमेर, जोधपुर, फलौदी, पोकरण सहित कई स्थानों पर रहते हैं परन्तु परम्परा का यह अनूठा आयोजन सिर्फ बीकानेर में ही मनाया जाता है। आज विभिन्न समाजों के लोग सामूहिक शादियाँ करते हैं शायद उनकी प्रेरणा का स्रोत यह उत्सव ही रहा है।

एक बात और जहाँ आम दिनों में शादियों में बारातों में सैकड़ों और हजारों लोग होते हैं वहीं इस दिन बारात में आपको दस से बीस लोग ही नजर आएंगे कारण साफ है कि सैकड़ों शादियाँ है हर घर में शादी है सो कौन किसके जाए सब अपने अपने घर में हो रही शादी में शरीक होते हैं। इसी तरह पण्डितों को भी समय नहीं मिलता क्योंकि आज पण्डित जी को एक ही रात में कईं जोड़ों का मिलन करवाना है सो पण्डित जी भी काफी व्यस्त रहते हैं और यही हाल बैण्ड वालों का टैण्ट वालों का होता है। मतलब जिधर देखो शादी शादी और बस शादी। ऐसा होता है माहौल बीकानेर का सावे वाले दिन।

इस बार यह सावा चौबीस फरवरी को हो रहा है अत: अगर आपकों इस माहौल में शामिल होना है तो आईए बीकानेर और साक्षी बनिए एक ऐसे आयोजन के जिसे देखकर आप यह जरूर कहेंगे वाह क्या बात है ! और एक बात सावे में निमन्त्रण की आवष्यकता भी नहीं होती बीकानेर में सो जहाँ अच्छा लगे वहाँ खाना भी खा सकते हैं आप और खिलाने वाले भी बड़े प्यार से खिलाएंगे।

 

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