मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना

बाबर व अकबर के शासन काल में हिन्दू दमन

भारत के लाखों करोड़ों वर्ष के इतिहास को गहरे गड्ढे में दबाकर भारतद्वेषी इतिहासकारों ने केवल और केवल मुगल काल को प्रमुखता देते हुए उसे कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि जैसे आज का भारत मुगलों के स्वर्णिम शासन काल की ही देन है । इनका ऐसा प्रयास देखकर यह लगता है कि यदि भारत वर्ष के इतिहास से मुगल काल को निकाल दिया जाए तो फिर भारतवर्ष के पास ऐसा कुछ भी नहीं बचेगा जिस पर वह गर्व और गौरव की अभिव्यक्ति कर सके।

यही कारण है कि मुगल वंश के सभी शासकों के हिन्दू विरोधी उत्पीड़नात्मक कार्यों को भुलाकर कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है जैसे उन्होंने भारत, भारतीयता और भारतीयों के लिए ही अपना जीवन खपाया और उनका शासन पूर्णतया लोक कल्याणकारी राज्य था। वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर तो कुछ और भी आगे बढ़कर कहती हैं कि मुगल विदेशी नहीं थे। बाबर तो विदेशी था, परन्तु उसके आगे आने वाले उसके वंशज पूर्णतया भारतीय थे। क्योंकि उनका जन्म भारत वर्ष में हुआ था। रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों की बुद्धि पर सचमुच तरस आता है । क्योंकि यही वह इतिहासकार हैं जो आर्यों, शक , हूण , कुषाण (जो कि वास्तव में मूल रूप से भारतीय ही थे) आदि को आज तक विदेशी मानते हैं जो कि बाबर से सदियों पहले कथित रूप से भारत आए थे। यदि उन्हें विदेशी मान भी लिया जाए तो भी वे भारतीय समाज और संस्कृति में इस प्रकार घुल मिल गए कि उन्हें आज अलग से खोजना भी लगभग असम्भव है।

‘जिन आर्यों के धर्म पर हम भारतीयों को नाज है ,
जिनकी मर्यादा विश्व में कल बेजोड़ थी और आज है ।
उनको विदेशी मानना इस राष्ट्र का भी अपमान है ,
जो लोग ऐसा कह रहे समझो वह कोढ़ में खाज हैं।।

यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण और हास्यास्पद तथ्य है कि यदि इन इतिहासकारों की सोच के अनुसार इन सभी को विदेशी मान भी लिया जाए तो उनके वंशज तो आज तक भी विदेशी ही हैं , जबकि मुगल शासक बाबर के वंशज उसके भारत आगमन के 5 वर्ष पश्चात ( अर्थात 1530 ई0 में जब बाबर मरा और उसका पुत्र हुमायूं गद्दी पर बैठा) ही तुरन्त भारतीय हो गए।
मुगलवंश का संस्थापक बाबर एक विदेशी लूट गिरोह का मुखिया था । वह जब भारत आया तो उसके पास भारत के प्रति लूट की योजना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। यही कारण था कि उसने भारत आने के पश्चात भारत को जमकर लूटा। भारत को सांस्कृतिक रूप से लूटने का भी उसने हरसम्भव प्रयास किया । इसी आक्रमणकारी के समय उसके सेनापति मीर बाकी खान के आदेश से अयोध्या स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री रामचन्द्र जी का मन्दिर भी तोड़ा था। यह घटना 1528 ईसवी की है।

बाबर भी चाहता था गाजी बनना

  बाबर की गाजी बनने की तीव्र इच्छा थी। बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने आपको मूर्तियों की नींव का खण्डन करने वाला कहा है। ऐसा करके ही वह गाजी की पवित्र उपाधि को प्राप्त कर सका था । गाजी की इस पवित्र उपाधि को प्राप्त करके उसे उतना ही चैन मिला था जितना एक कट्टर मुसलमान को मिलना चाहिए अर्थात हिन्दू विरोध और हिन्दू धर्म स्थलों के प्रति अश्रद्धा बाबर के भीतर एक संस्कार के रूप में पूर्व से ही विद्यमान थी । यही कारण था कि जिस समय अयोध्या स्थित रामचन्द्र जी का मन्दिर तोड़ा गया उस समय बाबर ने हजारों की संख्या में हिन्दुओं का नरसंहार किया था। कहा जाता है कि मन्दिर के तोड़े जाने से आहत हिन्दू लोगों ने बाबर की सेना का भरपूर विरोध किया था। जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दुओं ने अपना बलिदान दिया था।
बाबर के इस कुकृत्य के विरुद्ध हिन्दुओं ने पिछली शताब्दियों में लगभग छः दर्जन युद्ध लड़े हैं । जिसमें लाखों हिंदुओं का बलिदान हुआ है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात सारे तथ्यों के होते हुए भी शान्ति के मजहब को मानने वाले लोगों ने इस तथ्य को हर बार झुठलाने का प्रयास किया कि वहाँ पर कभी राम मन्दिर था। साम्प्रदायिक सोच और साम्प्रदायिकता के प्रति पूर्णतया समर्पित रहने की उनकी भावना ने उन्हें ऐसा करने से बार-बार रोका। इस पवित्र स्थल हेतु श्रीगुरु गोविंदसिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवरी तथा अन्य महान योद्धाओं और वीरांगनाओं ने भी संघर्ष कर बलिदान दिये हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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