मेरे गाँव,मेरे देश,तुम बहुत याद आते हो
जब ढूँढना पड़ता है, एक छांव
वो नल, जो बिन पैसे की ही प्यास बुझाती है
तब मेरे गाँव, तुम बहुत याद आते हो
निगाहें टिक गयी ,उन आते जाते लोगों देखकर
पर हृदय में कोई रुदन करता है
कि क्यूँ …
मैं भी आज इसका किस्सा हूँ
तब मेरे गाँव ,तुम बहुत याद आते हो
मुस्कुराना चाहती थी “आज” यही तो दुनियाँ है
एडवांस दुनियाँ जिसका हिस्सा आज मैं भी हूँ
पर भीतर कोई गुमसुम सा रहता है
कि कहीं और लेके चलो मुझे
जहां मुस्कुराने का दाम, सिर्फ मुस्कुराहट ही हो
ये अप्राकृतिक चीज़ें मुझे, प्राकृतिक होनें नहीं देती
तब मेरे गाँव ,मेरे छांव ,तुम बहुत याद आते हो
जब सीधे साधे लोगों को ये शहर, नासमझ का दर्जा देता है
निश्छल भावनाओं को भी जब ,लोग तमाशाई का नाम देते है
तब मेरे गाँव तुम बहुत याद आते हो
कितनी बदली है ये दुनियाँ ,आज समझ में आता है
जब आदमी में आदमियत को खोजती हूँ
जब अकेले घर में, बातें खुद से ही करने पर
आंखो में आँसू आ जाते हैं
तब मेरे गाँव ,मेरे छांव तुम बहुत याद आते हो
कुछ तो खोया है मेरा ,जो शहर में नहीं मिलता
कुछ को पाने में ,खुद को ही खो रहीं हूँ मैं
जब ऐसी बातों से मन घबराता है
तब मेरे गाँव ,मेरे छांव ,तुम बहुत याद आते हो
कभी –कभी ठहर जाना चाहती हूँ
कोई निंगाह ऐसी ढूंढती हूँ
जो ये कह दे कि ….. हाँ
बस यहीं रुक जाओ ,ठहर जाओ
तब मेरे गाँव ,मेरे छांव ,तुम बहुत याद आते हो